17 वीं लोकसभा का चुनाव-परिणाम : भारत के पुनरुत्थान का सोपान




१७वीं लोकसभा के सम्पन्न चुनाव के परिणाम से यह प्रमाणित हो गया कि नियति का निर्माण-चक्र अपनी रीत-नीति व गति से ऐसे चल रहा है, जैसे किसी अतिक्रमण-ग्रस्त इलाके में स्थित मकानों-दुकानों-भवनों को ढाहते-रौंदते हुए कोई बुल्डोजर कहर बरपा रहा हो । महर्षि अरविन्द और युग-ऋषि श्रीराम शर्मा के कथ्य बिल्कुल सत्य घटित हो रहे हैं । भारत फिर से खडा हो रहा है, अनीति-अन्याय व अराष्ट्रीयता पर आधारित अवांछित राजनीतिक स्थापनायें ध्वस्त हो रही हैं । देश के वैचारिक वायुमण्डल में भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान की तरंगें तेजी से तरंगित हो रही हैं । रामकृष्ण परमहंस के जन्म से १७५ साल बाद का संधिकाल समाप्त होने के साथ वर्ष-२०११ से ही ध्वंस-निर्माण की यह प्रक्रिया अंधे को भी साफ दिखने लगी है । ‘सनातन धर्म (हिन्दूत्व) ही भारत की राष्ट्रीयता है’ यह सत्य अनायास ही प्रमाणित होता जा रहा है और यह राष्ट्रीयता अंगडाई लेती हुई दिख रही है । राष्ट्रीयता-विरोधी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर साम्प्रदायिक (मुस्लिम) तुष्टिकरण करते हुए अनर्थ बरपाने वाली राजनीतिक शक्तियों और उनके चट्टे-बट्टे बुद्धिबाजों के द्वारा अछूत घोषित कर जिस नरेन्द्र मोदी को राजनीति से ही मिटा देने के बावत ‘भगवा आतंक’ जैसे षड्यंत्र क्रियान्वित कर साधु-महात्माओं-साध्वी-संतों-योगियों-संयासियों तथा तमाम राष्ट्रवादी संगठनों व उनसे सम्बद्ध लोगों को कठघरे में खडा किया जा रहा था, उन्हीं नरेन्द्र मोदी के हाथों आज से ठीक पांच वर्ष पहले देश की केन्द्रीय सत्ता की बागडोर आ जाने के बाद तथाकथित धर्मानिरपेक्षतावादियों की समस्त कांग्रेसी जमात शोक-संतप्त हो गई थी । मोदी के हाथों सत्ता गवां देने की शोकाकुलतावश ये लोग अपने कारिन्दों के माध्यम से पूरे पांच साल स्यापा बरपाते-सुनाते रहे । उस दौरान कभी ‘असहिष्णुता में वृद्धि’ का बेतुका राग आलापते रहे, तो कभी ‘अभिव्यक्ति पर पाबंदी’ का बेतुका ताल ठोंकते हुए देशवासियों को ‘सरकारी पुरस्कार-सम्मान वापसी’ नामक प्रहसन दिखा-सुना कर यह समझाते रहे कि भाजपा के सत्तासीन होने और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश में बहुत बडा अनर्थ कायम हो गया है । लेकिन देश की जनता ऐसे तमाम व्यर्थ के बकवादों का भावार्थ व निहितार्थ समझती रही और प्रान्तीय विधान-सभाओं के चुनावों मे भी उन लालबुझक्कडों की पहेलियों का करारा जवाब देते हुए उनकी थोथी धर्मनिरपेक्षता को नकार कर भाजपा-मोदी के कांग्रेस-मुक्त अभियान को आगे बढाती रही । बीतते समय के साथ उतर प्रदेश में उसी भगवाधारी योगी का राज कायम हो गया, जिसे तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों की कांग्रेस-मण्डली ने कभी ‘भगवा आतंक’ नामक अपने षडयंत्र की परिधि में लाकर स्वयं का ‘सफेद आतंक’ बरपाया हुआ था और साथ ही संघ-परिवारी हिन्दू संगठनों का चरित्र हनन करने की कुत्सित कोशिश की थी । हिन्दुत्व-प्रेरित राष्ट्रीयतावादी राजनीति की राह से सत्ता के शीर्ष पर आसीन हुई भाजपा के चतुर्दिक विजय-अभियान को अवरुद्ध करने के निमित्त विरोधियों ने राष्ट्रवाद की कोई इतर वैचारिक अवधारणा प्रस्तुत करने के बजाय बौद्धिक व्याभिचार फैला कर मोदी को घेरने के बावत किसिम-किसिम के वितण्डावाद खडे कर दिए थे । समाज के एक वर्ग पर प्रभाव रखने वाले कुछ फिल्मी कलाकारों और कला क्षेत्र के कतिपय स्थापित विशेषज्ञों को राष्ट्रवादी भाजपा-सरकार की वजह से ‘देश में डर का माहौल’ कायम हो जाने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संविधान व लोकतंत्र खतरे में पड जाने के जो दृश्य दिख रहे थे और उनके द्वारा उन काल्पनिक स्थितियों से जनमानस को भरमाने के लिए मीडिया के सहारे जो तत्सम्बन्धी बयान, विचार , भाषण व विमर्श फैलाये जा रहे थे , सो इसी वितण्डावाद के विविध-विषयक आकार-प्रकार थे । कांग्रेस आदि समस्त विरोधी पार्टियों का वह वितण्डावाद बढते-बढते इतना बढ गया था कि भाजपा-मोदी सरकार के हर काम का विरोध करने लगा था और विरोध करते-करते भारत राष्ट्र , भारत सरकार व भारतीय सेना के विरोध में भी उतर आया था । इतना ही नहीं, उस वितण्डावाद के सहारे भारत माता का विरोध , वन्दे मातरम का उपहास , गौ-हत्या की खुली वकालत एवं समान नागरिक कानून की मुखालफत व बांग्लादेसी-रोहिंग्याई घुसपैठ को संरक्षण तथा अलगाववादी जिहादी आतंकवाद का समर्थन और भारत को टुकडे-टुकडे करने वाले गिरोह को सहयोग करने वालों का एक पक्ष निर्मित कर उसकी पोषक बन गई कांग्रेस और उसकी मण्डली । फिर तो देश के तमाम भ्रष्टाचारी, अपराधी, व्याभिचारी व सत्तालोलुप राजनीति के चुके हुए सारे खिलाडी भी उसके साथ जुडते गए , तो उस भीड से उत्साहित हो कर हिन्दुत्व-प्रेरित राष्ट्रीयता की विरोधी पार्टियों ने भाजपा-मोदी को चुनावी घमासान में हराने के बावत जो एक तथाकथित महागठबन्धन बना लिया, उससे देश में सत्य-असत्य व सदाचार-भ्रष्टाचार आधारित रा्ष्ट्रीय बनाम अराष्ट्रीय राजनीति के दो ध्रूव ही निर्मित हो गए । राष्ट्रीयतावादी राजनीति के ध्रूव में सत्तासीन भाजपा के विरुद्ध कांग्रेस अराष्ट्रीयतावादी राजनीतिक ध्रूव की मुखिया बन बैठी । देखते-देखते इन्हीं दो धूवों के पक्ष-विपक्ष में तमाम राजनीतिक शक्तियों का ध्रूवीकरण हो गया , तब एक प्रकार के धर्मयुद्ध की स्थिति कायम हो गई, जिससे इस १७वीं लोकसभा का आमचुनाव ‘खास चुनाव’ में परिणत हो गया और लोकतंत्र के भारत में ‘राजतंत्र के महाभारत’ का आख्यान समुपस्थित हो गया । किन्तु इस बार धर्मराज सत्तासीन थे और दुर्योद्धन सत्ताविहीन । जबकि , भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त निष्कलंक सत्ता-पक्ष को तमाम प्रकार के भ्रष्टाचारों से युक्त कलंकित विपक्ष का महागठबन्धन ही ललकारने लगा था । तब उन धूर्त्त-अत्याचारी-भ्रष्टाचारी शक्तियों को साधु-सदाचारी-सज्जन शक्तियां सीधा टक्कर देने लगीं । इस चुनावी संग्राम का ऐसा धर्मयुद्ध जैसा स्वरुप होने के कारण ही पहली बार जनता को खुलेआम राजनीतिक प्रचार करते देखा गया और एक सदाचारी राजनेता व उसके दल के विरुद्ध देश के तमाम भ्रष्टाचारियों को संगठित हो कर लडते पाया गया । और, धर्मयुद्ध का परिणाम तो सदा से ही सत्य-आधारित सदाचारी-शक्तियों के पक्ष में ही जाता रहा है, जो इस चुनाव में भजपा-मोदी को प्रचण्ड बहुमत से मिली विजय के साथ फिर प्रमाणित हो गया । वितण्डावाद के प्रहारक हथियारों से युक्त विपक्षी शक्तियों ने तो अंतिम दम तक काल्पनिक भय से जनता को भ्रमित करने का पूरा प्रयास किया- चुनावी संग्राम के ऐन मध्य मौके पर ‘टाइम’ नामक विश्वविख्यात अमेरिकी पत्रिका में नरेन्द्र मोदी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन चिफ’ घोषित कर-करा कर उसे देश भर में प्रचारित भी किया । किन्तु जैसा कि ऊपर बता चुका हूं चूंकि सन २०११ से ही देश के वायुमण्डल में एक सूक्ष्म राष्ट्रीय चेतना का उभार जनमानस का परिष्कार करने को सक्रिय है और भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान की अदृश्य तरंगें अनायास ही तरंगित हो रही हैं, इस कारण महर्षि अरविन्द-प्रणीत हिन्दुत्व-प्रेरित भारतीय राष्ट्रीयता के उफान से उपरोक्त सारे वितण्डावाद बुरी तरह से धराशायी हो गए । यह चुनाव परिणाम वास्तव में भारत के पुनरुत्थान का एक सोपान है । इससे इस तथ्य का सत्य भी स्थापित हो गया है कि सनातन भारतीय राष्ट्रीयता की मुखालफत कर कोई भी अराष्ट्रीय राजनीति अब इस राष्ट्र की सत्ता का माध्यम कतई नहीं बन सकती, अतएव ऐसे तमाम राजनीतिकि दलों को अपनी नीति-नीयत व चाल-ढाल बदलनी होगी; सत्ता हासिल करने के लिए भी और सत्ता-पक्ष के विरुद्ध ‘विपक्ष’ बनने के लिए भी ।
• मई’ २०१९