एक ऐसे पत्रकार-लेखक-साहित्यकार-विचारक-अन्वेषक जो भारत राष्ट्र व धर्म एवं धर्मधारी समाज के विरुद्ध चल रहे रिलीजियस-मजहबी राजनीतिक-बौद्धिक षड्यंत्रों के विरुद्ध लेखन-भाषण-चिंतन-मंथन में सक्रिय हैं , और ‘सच का झूठ’ एवं ‘झूठ का सच’ उजागर करने तथा अंग्रेजी औपनिवेशिक स्थापनाओं को ध्वस्त करने का अभियान चला रहे हैं। जी हां, सच का झूठ और झूठ का सच; अर्थात, प्रायोजित सच के वास्तविक झूठ एवं वास्तविक झूठ के प्रायोजित सच को प्रकाशित करने और शासन, प्रशासन, शिक्षा, चिकित्सा, राजनीति, समाजनीति में व्याप्त पश्चिमी रिलीजियस-मजहबी षड्यंत्रकारी स्थापनाओं को तार-तार करने का बौद्धिक अभियान। मनोज ज्वाला का यह अभियान सर्वथा व्यक्तिगत है और इस कारण वे अपना सर्वस्व गंवा चुके हैं। इनका मानना है कि आज के भारत एवं भारतीय समाज की सभी समस्याओं की जड़ यहां की मौजूदा राजनीति है, जो अभारतीय पश्चिमी रिलीजियस मजहबी षड्यंत्रों की शिकार होकर धर्मनिरपेक्ष होते-होते धर्म-विरोधी एवं रिलीजन व मजहब के सापेक्ष हो गई है; जबकि राजनीति की तो उत्पत्ति ही धर्म से हुई है। धर्म विरोधी राजनीति अनर्थकारी है और मानवता व सभ्यता — दोनों के लिए खतरनाक है। लेकिन अंग्रेजी शासन के जमाने से ही अपने देश में कायम रिलीजियस मजहबी अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के कारण रिलीजन व मजहब को भी धर्म का पर्याय मान लिया गया है अथवा मनवा लिया गया है, जिसके कारण एक प्रकार का बौद्धिक संभ्रम कायम हो जाने से बड़ा भारी अनर्थ हो रहा है। इस बौद्धिक संभ्रम का निर्माण करने वाले अनेक तथ्य और सत्य ऐसे हैं, जिनसे हमारे देशवासी अनभिज्ञ हैं; क्योंकि वे सारे तथ्य व सत्य एक वैश्विक रिलीजियस-मजहबी-वामपंथी षड्यंत्र के तहत छिपाए जाते रहे हैं और उनके बदले प्रायोजित कुतथ्य व सुनियोजित असत्य स्थापित कर प्रचारित किए जाते रहे हैं। इतना ही नहीं, इस वैश्विक-बौद्धिक षड्यंत्र के तहत तदनुकूल जनमानस निर्मित करने के लिए तदनुसार नित नए-नए आख्यान (नैरेटिव) भी रचे-गढ़े जाते रहे हैं। धर्म (सनातन— हिन्दू-जैन-बौद्ध-सिख) एवं धर्मधारी सनातन राष्ट्र (भारत) और धर्मधारी बहुसंख्यक भारतीय समाज के विरुद्ध चल रहे इस वैश्विक-बौद्धिक षड्यंत्र के क्रियान्वयन में राजनीति एवं राज्य-संपोषित औपनिवेशिक शिक्षा-पद्धति व शिक्षण-संस्थानों और बाज़ारू शक्तियों (फिल्मी कलाकारों) के साथ चर्च-संपोषित विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं (एन.जी.ओ.) और मीडिया-घरानों का एक गुप्त व सशक्त गठजोड़ कायम है। जाहिर है — धर्म के विरुद्ध अधार्मिक शक्तियों के इस अनैतिक अवांछित गठजोड़ से न केवल देश के भीतर, अपितु दुनिया भर में प्राचीन देवासुर संग्राम का आधुनिक रूप निर्मित हो गया है, उसे ध्वस्त करना और ‘धर्म’ — जो भारत का ‘स्वत्व’, अर्थात भारतीय राष्ट्रीयत्व है, उसको संरक्षित-संवर्धित करते रहना इनके लेखन का ध्येय है। इस निमित्त विभिन्न पुस्तकों व सैकड़ों लेखों एवं सम-सामयिक टिप्पणियों-प्रतिक्रियाओं और भाषणों-व्याख्यानों के रूप में अनेकानेक दुर्लभ जानकारियां मिलेंगी आपको मनोज ज्वाला के इस अंतर्जाल ठिकाने पर। इनका यह अभियान सर्वथा व्यक्तिगत होने के कारण संसाधनों के अभाव में जैसे-तैसे चल रहा है। अतः आप अगर इस अभियान से सहमत हों और यह चाहते हैं कि सनातन धर्म व भारत राष्ट्र का पुनरुत्थान हो, महान वैदिक सभ्यता-संस्कृति का उन्नयन हो, तो आपसे आर्थिक-नैतिक सहयोग अपेक्षित है। इस हेतु आप इस अभियान के सूत्रधार मनोज ज्वाला से इनके 'चल-भाष' 6204008697 पर सीधे सम्पर्क कर सकते हैं अथवा E-mail ID - jwala362@gmail.com पर तत्संबन्धी संदेश भेज सकते हैं ।
"सच का झूठ व झूठ का सच उजागर करने और भारत राष्ट्र व सनातन धर्म एवं हिन्दू समाज के संरक्षण-संवर्द्धन का बौद्धिक अभियान ।"
मनोज ज्वाला (एम०के०पाण्डेय)— एक ऐसे पत्रकार, लेखक, साहित्यकार, विचारक,अन्वेषक ; जो पूरी पृथ्वी को ग्रस लेने पर आमदा रिलीजियस-मजहबी विस्तारवाद के औपनिवेशिक षड्यंत्रों को तार-तार करने को तत्पर हैं...जिनके अन्वेषण-लेखन-प्रबोधन से वैसे बहुतेरे तथ्य-सत्य अनावृत होते रहते है , जो दशकों से योजनाबद्ध ढंग से छिपाये जाते रहे हैं और जिनके स्थान पर झूठे आख्यान (Narratives) स्थापित किये जाते रहे हैं।
मनोज ज्वाला के कार्य भारत की राष्ट्रीयता (सनातन धर्म-संस्कृति) के उन्नयन को समर्पित हैं। इनका यह प्रयास पूरी तरह व्यक्तिगत है और संसाधनों की सीमाओं के बावजूद लगातार जारी है....अविराम.....।
एक ऐतिहासिक-राजनीतिक उपन्यास जो भारत की स्वातंत्र्योत्तर राजनीति का चित्रण करते हुए महात्मा और मीरा के बीच रहस्यमय संबंधों तथा हिन्द-स्वराज की पीड़ा को उजागर करता है।
भगवा आतंक जैसे दुष्प्रचार की पोल खोलती एक दस्तावेज़ी कृति, जो भारतीय राजनीति, कांग्रेस और विदेशी मजहबी हस्तक्षेपों के पीछे के इतिहास और षड्यंत्रों को बेनकाब करती है।
सेक्युलरिज़्म की विचारधारा और उसकी व्याख्याओं पर तीखा बौद्धिक प्रहार करता एक उपन्यास, जो समकालीन राजनीति के पर्दे के पीछे की सच्चाइयों को उजागर करता है।
"ऐतिहासिक तथ्य और शास्त्र से अनुशासित विषय पर आपके आलेखन प्रयास को अभिनंदन।"
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत सरकार
सफेद आतंक : ह्यूम से गांधी तक" पुस्तक के लेखक श्री एम. के. पांडेय को भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा यह प्रशंसा-पत्र प्रदान किया गया।
यह पत्र न केवल लेखक की सशक्त लेखनी का सम्मान है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि पुस्तक में उठाए गए विषय कितने ऐतिहासिक, गूढ़ और राष्ट्रहित से जुड़े हुए हैं।
यह सम्मान लेखक की शोधपूर्ण एवं राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को मान्यता प्रदान करता है और आने वाली पीढ़ियों को विचारशील लेखन की प्रेरणा देता है।