अमेरिकी आयोग की भारत-विरोधी रिपोर्ट का अर्थ और अनर्थ
खबर है कि अमेरिकी सरकार के एक आयोग- ‘यु एस कमीशन फॉर इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारत को फिर उन्हीं ‘खास चिन्ता वाले देशों’ (कंट्रीज ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न- ‘सीपीसी’) की सूची में डाल रखा है, जिसमें इस बार 17 देशों के नाम दर्ज हैं , जो इस प्रकार हैं- अफगानिस्तान, अजरबैजान, वर्मा, चीन, क्युबा, युरेशिया , भारत, ईरान, निकारागुआ, नाइजिरिया, उतरी कोरिया, पाकिस्तान, रसिया, सउदी अरब, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम । गत वर्ष की उसकी इस रिपोर्ट में 14 देश शामिल थे- वर्मा, चीन, क्युबा, युरेशिया, ईरान, निकारागुआ, उतरी कोरिया, पाकिस्तान, रसिया, सउदी अरब, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान एवं भारत । इस ‘सीपीसी’ (कंट्रीज ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न) में ऐसे देशों को सूचीबद्ध किया जाता है, जहां जनता की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन होते रहता है , जहां की सरकारें धार्मिक भेदभाव के साथ शासन किया करती हैं । धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करते रहने के लिए अमेरिका ने अपने उक्त आयोग (यु एस सी आई आर एफ) के प्रतिनिधियों को दुनिया भर के सभी देशों में उसी तरह से तैनात कर रखा है, जिस तरह से एक देश में दूसरे देश के राजदूत पदस्थापित हुआ करते हैं । उन प्रतिनिधियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर वह अमेरिकी आयोग प्रतिवर्ष अमेरिकी सरकार को एक प्रतिवेदन जारी करता है , जिसमें दुनिया के तमाम देशों के भीतर की धार्मिक स्वतंत्रता के हालातों का आंकलन एवं तदनुसार उनका वर्गीकरण किया हुआ रहता है । वह प्रतिवेदन अमेरिकी सरकार के राजनयिक व वैदेशिक नीतियों के निर्धारण-क्रियावयन को प्रभावित करता है; क्योंकि अच्छे-खराब सूचकांक वाले देशों के प्रति वैश्विक मंचों पर अमेरिकी रवैया तदनुसार ही निर्मित होता है । ‘सीपीसी’ (कंट्रीज ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न) वर्ग में सूचीबद्ध देशों की सरकारों को अमेरिकी सरकार ‘धार्मिक स्वतंत्रता-हनन’ का आरोपी घोषित कर कठघरे में खडा करते हुए तत्सम्बन्धी न्यायिक-वैधानिक सुनवाई की औपचारिकताओं के साथ घडकियां पिलाता है , तरह-तरह की धमकियां देता है तथा उनकी साख व छवि को धूमिल करते रहता है और उन पर नैतिक व राजनयिक दबाव बनाता है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि अपनी चौधराहट प्रदर्शित-प्रमाणित करने के लिए उक्त रिपोर्ट का राजनीतिक इस्तेमाल करता है । इसके लिए अमेरिकी संसद ने वेटिकन चर्च के दबाव में आ कर ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ नाम से एक कानून ही बना रखा है और ‘यू एस सी आई आर एफ’ नामक आयोग इसी कानून के तहत कायम कर उसे दुनिया के प्रायः सभी देशों पर बलात ही थोप रखा है ।
भारत को ‘सी पी सी’ नामक नकारात्मक वर्ग में सूचीबद्ध किए जाने के औचित्य-अनौचित्य को और उक्त वर्ग-सूची का का निर्माण करने वाले ‘यू एस सी आई आर एफ’ की कार्यशैली को अमेरिकी मंशा का इजहार करने वाले उसके ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ के अर्थ-अनर्थ से समझ सकते हैं । कहने को तो यह अधिनियम दुनिया के सभी राष्ट्रों के भीतर वहां के नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता , अर्थात किसी भी रिलीजन-मजहब अथवा धर्म को अपनाने-मानने की स्वतंत्रता को संरक्षित करने के बावत इसकी वकालत करता है, किन्तु व्यवहार में यह ‘धर्म त्यागने व रिलीजन-मजहब अपनाने’ का मार्ग प्रशस्त करता है और इस हेतु चर्च-मिशनरी-संस्थाओं (एनजीओ) को सरंक्षित करता है । यही कारण है कि इस अमेरिकी अधिनियम के वैश्विक क्रियान्वयन की निगरानी करने वाला उसका वह आयोग (यु एस सीआई आर एफ) भारत में कायम धर्मान्तरण-रोधी कानूनों और विदेशी धन से संपोषित मिशनरी संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले भारतीय कानूनों पर आपत्ति जताते रहता है, जैसा कि उसकी रिपोर्ट में कहा गया है । बकौल रिपोर्ट- “ 2023 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और खराब रही । बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने भेदभावपूर्ण राष्ट्रवादी नीतियों को मजबूत किया, घृणास्पद बयानबाजी को बढ़ावा दिया और सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रही, जिससे मुस्लिम, ईसाई, सिख, दलित, यहूदी और आदिवासी असमान रूप से प्रभावित हुए । गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) एवं धर्मांतरण व गोहत्या विरोधी कानूनों के लगातार लागू होते रहने के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, निगरानी की गई और निशाना बनाया गया ।”
यहां यह गौरतलब है कि भारत के इन कानूनों से किसी भी नागरिक की धार्मिक स्वतंत्रता का किसी भी तरह से हनन तो नहीं हो रहा है , किन्तु अमेरिकी आयोग को ऐसा दीख रहा है, तो जाहिर है- उसकी मंशा हिन्दू समाज व धर्म का उन्मूलन और क्रिश्चियनिटी व इस्लाम नामक धर्म-विरोधी रिलीजन-मजहब का संवर्द्धन मात्र है ।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “धार्मिक अल्पसंख्यकों पर रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया संस्थानों और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को एफसीआरए नियमों के तहत सख्त निगरानी के अधीन रखा गया था । फरवरी 2023 में भारत के गृह मंत्रालय ने ‘एनजीओ सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के एफसीआरए रजिस्ट्रेशन को निलंबित कर दिया था । इसी तरह, अधिकारियों ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान मुस्लिम विरोधी हिंसा पर रिपोर्टिंग करने के लिए तीस्ता सीतलवाड सहित न्यूजक्लिक के पत्रकारों के कार्यालयों और घरों पर छापे मारे ।” यह तथ्य व सत्य अब जग-जाहिर हो चुका है कि तीस्ता एवं उसकी एन०जी०ओ० के द्वारा गुजरात दंगा मामले में भाजपा सरकार एवं विहिप नेताओं के विरुद्ध भाडे के मुसलमानों से फर्जी गवाहियां दिलवाई जा रही थीं और इस हेतु विदेशी अनुदान प्राप्त कर उसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसे प्रमाणित हो जाने पर अदालत की आज्ञा से उसे जेल भेज कर उसकी उक्त संस्था का रजिस्ट्रेशन रद्द किया गया है । किन्तु ‘युएस सी आई आर एफ’ को यह सत्य नहीं सुझता । उसे इस यह तथ्य भी नहीं सूझता कि भारत-विभाजन के वक्त पाकिस्तान में तकरीबन ढाई करोड हिन्दू रह गए थे और लगभग उतने ही मुसलमान भारत में रह गये थे, जिसका सत्य यह है कि आज पाकिस्तान में शासन-संरक्षित मुस्लिम आतंक से पीडित-प्रताडित-धर्मांतरित-विस्थापित होते रहने के कारण हिन्दूओं की आबादी घट कर बीस लाख (दस प्रतिशत) से भी कम हो गई है, जबकि भारत में शासन से तुष्टिकृत-उपकृत होते रहने के कारण मुसलमानों की आबादी बढ कर पैंतीस करोड से भी ज्यादा हो गई है । ऐसे में कोई अंधा व्यक्ति भी यही कह सकता है कि अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक हितों का हनन पाकिस्तान में हो रहा है और पोषण तो भारत में ही हो रहा है । लेकिन आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि उक्त अमेरिकी आयोग में कोई भी सदस्य अंधा नहीं है, सभी आंख वाले ही हैं ; तब भी उसने भारत को भी पाकिस्तान आदि के समान ही देखा समझा है तो इस उसके इस अनर्थकारी कृत्य के गहरे निहितार्थ हैं ।
मेरी एक पुस्तक- ‘भारत के विरुद्ध पश्चिम के बौद्धिक षड्यंत्र’ में “अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, अर्थात बे-रोक-टोक धर्मोन्मूलन व ईसाईकरण” शीर्षक से एक अध्याय संकलित है , जिसमें अनेक प्रामाणिक तथ्यों से मैंने यह सिद्ध किया हुआ है कि यह अधिनियम वस्तुतः भारत राष्ट्र के विघटन सनातन धर्म के उन्मूलन व हिन्दू-समाज के ईसाईकरण-इस्लामीकरण का ईसाई-मिशनरी हथकण्डा और गैर-मजहबी देशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप का अमेरिकी फण्डा मात्र है । यह आयोग इस्लामी जेहाद का भी मौन समर्थन करता है, क्योंकि ईसाइयत और इस्लाम दोनों ही धर्म-विरोधी एवं पैगम्बरवादी होने के कारण परस्पर सहयोगी हैं । ‘युएस सी आई आर एफ’ की उक्त रिपोर्ट से अमेरिकी सरकार का वास्तविक चेहरा बेनकाब होता रहा है । भारत सरकार ने यद्यपि इस रिपोर्ट पर गहरी आपत्ति जतायी है, तथापि इसे केवल राजनीति से प्रेरित ही बताया है । भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कहा है- “ यह अमेरिकी आयोग राजनीतिक अजेंडे के तहत पक्षपात करने के लिए कुख्यात है, इस कारण इससे भारत की धार्मिक विविधताओं एवं भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती है ”। वहीं, प्रवासी भारतीयों की एक संस्था- ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज’ ने युएस सी आई आर एफ की इस रिपोर्ट पर कडी आपत्ति जताते हुए इसे ‘विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र’ की छवि को भ्रामक तथ्यों से धुमिल करने की कोशिश का उपक्रम बताया है ।
• मनोज ज्वाला ; jwala362@gmail.com; मई’ 2024
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