अमेरिकी दुष्प्रचार के विरुद्ध राजनय करे भारत सरकार

अमेरिकी दुष्प्रचार के विरुद्ध राजनय करे भारत सरकार

पूरी पृथ्वी पर शांति समानता लोकतंत्र व मानवाधिकार कायम करने एवं इनकी निगरानी करने की अपनी स्वैच्छिक राजनयिक ठेकेदारी चलाते हुए सारी दुनिया का स्वघोषित चौधरी बना हुआ अमेरिका समय-समय पर भारत के विरुद्ध नकारात्मक दुष्प्रचार की वीणा पर कूटनीतिक राग आलापते रहता है । किसी भी संप्रभु देश के विरुद्ध ऐसा करने के लिए अमेरिका ने किसिम-किसिम के नियम-अधिनियम एवं उनके अनुश्रवण-क्रियान्वयन हेतु भिन्न-भिन्न कमीशन (आयोग), फोरम और तदनुकूल क्रिया-कलापों के बावत विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं-संगठनों व(एनजीओ) मीडिया संस्थानों का गठबन्धन कायम कर रखा है । ‘इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट (अंतर्राष्ट्रीय मजहबी स्वतंत्रता अधिनियम)’ उसका ऐसा ही एक डण्डा है, जिसे भांजते रहने के लिए उसने ‘युएससीआईआरएफ’ (युनाइटेड स्टेट्स कमिशन फॉर युनाइटेड रिलीजियस फ्रीडम) नामक एक आयोग बना रखा है, जो प्रतिवर्ष दुनिया के प्रायः सभी देशों में रिलीजियस-मजहबी स्वतंत्रता की स्थिति पर व्यापक रिपोर्ट जारी करता है । उसने इस आयोग के प्रतिनिधियों को दुनिया भर के प्रायः सभी देशों में उसी तरह से तैनात कर रखा है,जैसे राजदूत किये जाते हैं । ये अमेरिकी प्रतिनिधि सम्बन्धित देशों में रहते हुए वहां की बडी-छोटी तमाम घटनाओं का या तो अध्ययन करते हैं, या अध्ययन किये बिना ही उनका मनमाना विश्लेषण कर अमेरिकी जरुरतों, या यों कहिए कि इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट बनाने-बनवाने वालों एवं इसके क्रियान्वयन-अनुश्रवण के बावत कमिशन कायम करने-करवाने वालों की अपेक्षाओं के हिसाब से निष्कर्ष निकाल भेजते हैं । फिर उन्हीं निष्कर्षों के आधार पर वह अमेरिकी आयोग एक वार्षिक रिपोर्ट जारी कर उसमें तमाम देशों को वहां की रिलीजियस-मजहबी छवि निर्धारित कर उन्हें श्रेणीवार सूचीबद्ध करता है । खराब छवि-दशा वाले देशों को ‘सीपीसी’ (कंट्रीज ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न) की श्रेणी में सूचीबद्ध कर उनमें अमेरिकी हस्तक्षेप की अनुशंसा करते हुए आयोग वह रिपोर्ट अमेरिकी सरकार को प्रेषित कर देता है, जिसके आधार पर अमेरिका उन देशों को विभिन्न वैश्विक मंचों पर घेरता है और उन पर दबाव कायम करता है । फिर उस आयोग की ऐसी मनमानी रिपोर्ट के आधार पर न्यूयॉर्क-वाशिंगटन के कतिपय मीडिया संस्थान उन देशों की रिलीजियस-मजहबी हालातों पर जैसी-तैसी भ्रामक-नकारात्मक रिपोर्टें प्रकाशित करते हैं । उन रिपोर्टों के आधार पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय उन देशों को घुडकियां पिलाने लगता है, या नसीहतें देने लगता है ।
अभी हाल ही (मई’2024) में ‘युएससीआईआरएफ’ ने वर्ष 2023 की जो वार्षिक रिपोर्ट जारी की हैं, उसमें भारत को उसी नकारात्मक छवि वाले ‘पीसीसी’ की श्रेणी में सूचीबद्ध किया हुआ है; जिसमें पाकिस्तान, मिश्र, सिरिया आदि वे देश भी संलग्न हैं; जहां रिलीजियस-मजहबी स्वतंत्रता वाकई खतरे में है । उक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि “भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और खराब रही । बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने भेदभावपूर्ण राष्ट्रवादी नीतियों को मजबूत किया, घृणास्पद बयानबाजी को बढ़ावा दिया और सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रही, जिससे मुस्लिम, ईसाई, सिख, दलित, यहूदी और आदिवासी असमान रूप से प्रभावित हुए । गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) एवं धर्मांतरण व गोहत्या विरोधी कानूनों के लगातार लागू होते रहने के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, निगरानी की गई और निशाना बनाया गया ।”
इससे पहले वर्ष 2022 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भी इस आयोग ने ऐसा ही किया था ; जबकि यह जगजाहिर है कि भारत में किसी भी रिलीजन-मजहब की स्वतंत्रता को कभी कोई खतरा नहीं रहा है । खतरा अगर है तो उन रिलीजियस-मजहबी शक्तियों के कारण भारत की राष्ट्रीयता को, अर्थात सनातन धर्म और इसे धारण करने वाले वृहतर हिन्दू-समाज को ; क्योंकि वे दोनों ही शक्तियां देश भर में धर्मोन्मूलन की गतिविधियां चलाती हैं, जिसे रोकने के बावत सरकार को समय-समय पर कानून बनाते रहना पडता है ।
किन्तु ‘युएससीआईआरएफ’ की उसी भ्रामक रिपोर्ट को आधार बना कर एक प्रमुख अमेरिकी मीडिया ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने 19 मई’ के अपने 2024 में ‘स्ट्रेंजर्स इन देयर ओन लैण्ड ; बिइंग मुस्लिम इन मोदी इण्डिया’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया हुआ है, जिसमें कहा गया है कि “ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत में ‘पंथनिरपेक्ष ढांचा एवं मजबूत लोकतंत्र कमजोर’ हुआ है ।” लेख में दावा किया गया है कि “भारत में मुस्लिम समाज पीड़ा और अलगाव से जूझ रहा है । वे अपने बच्चों को ऐसे देश में पालने की कोशिश कर रहे हैं, जहां उनकी पहचान पर सवाल उठा रहा है ।” इस अखबारी समाचार बनाम दुष्प्रचार पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका ने कहा है कि वह इस मामले पर भारत सहित दुनिया भर के देशों के साथ बातचीत कर रहा है , क्योंकि वह धार्मिक स्वतंत्रता के लिए सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है । अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा है कि “ हम दुनिया भर में सभी के धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अधिकार के लिए सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा के लिए गहराई से प्रतिबद्ध हैं ।”
ध्यातव्य है कि युएससीआईआरएफ एवं न्यूयॉर्क टाइम्स की ओर से यह बेतुकी रिपोर्ट तब प्रकाशित की गई है, जब भारत में मुसलमानों की आबादी 43% बढी हुई दर्ज की गई है । प्रधानमंत्री की इकोनॉमिकल एडवाइजरी कॉउंसिल द्वारा जारी एक रिपोरट में वर्ष 1950 से वर्ष 2015 के बीच मुस्लिम आबादी में 43.15 % की असामान्य वृद्धि पाई गई है; जबकि उसी दौरान हिन्दुओं की जनसंख्या में 7.82 % की गिरावट पाई गई है । मुस्लिम जीवन अगर संकटग्रस्त होता, तो आबादी में यह वृद्धि कैसे होती ? यहां यह भी गौरतलब है कि इसी कालखण्ड में पाकिस्तान में रह गये हिन्दुओं की जनसंख्या जो तब 2.50 करोड से भी ज्यादा थी, सो 90 % से भी ज्यादा घट कर एकबारगी कुछ लाखों में ही सिमट गई है । किन्तु इस तथ्य और सत्य से न ‘युएससीआईआरएफ’ को कोई मतलब है, न ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ को । जाहिर है – इन दोनों की मंशा भारत की छवि को खराब करना और इस्लामी जिहाद को भडकाना मात्र है ।
हालाकि भारत सरकार ने इन दोनों ही रिपोर्टों पर कडी आपत्तियां जाहिर की है और इन्हें झूठ का पुलिंदा करार दे दिया है, जिससे अमेरिका सख्ते में आ चुका है; तभी उसने पूर्व के अपने बयान से पलट कर भारतीय पक्ष का समर्थन किया है , किन्तु यह तो वही बात हुई न कि ‘पहले किसी को जानबूझ कर गाली दे दो और फिर शरारतन उससे माफी मांग लो’ । मालूम हो कि 20 मई को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने सफाई देते हुए भारत में रिलीजियस-मजहबी स्वतंत्रता की तारीफ की हुई है । उसके विदेश मंत्रालय के उसी प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा है कि “हम इन रिपोर्टों को सिरे से खारीज करते हैं , क्योंकि अमेरिका दुनिया भर में धार्मिक स्वत्रंत्रता के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहता है और हमें इसके लिए भारत समेत अन्य देशों का साथ मिलता रहा है ।” इससे पहले 17 मई को भी ह्वाइट हाउस की ओर से जारी एक बयान में यह कहा गया था कि “दुनिया भर में भारत से ज्यादा जीवंत लोकतंत्र और कहीं नहीं है ।” बावजूद इसके, ऐसी झूठी रिपोर्टों से देश की छवि धुमिल होने का जो नुकसान होना होता है, सो तो हो ही चुका होता है । अतएव भारत सरकार को इन अमेरिकी दुष्प्रचारों से निपटने के लिए अब कोई न कोई राजनयिक कार्रवाई अवश्य करनी चाहिए । माना कि ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ अमेरिकी शासन के नियंत्रण से मुक्त कोई स्वतंत्र मीडिया-संस्थान है, जिसके विरुद्ध कोई राजनयिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है; किन्तु ‘युएससीआईआरएफ’ तो साफ-साफ अमेरिकी सरकार का ही शासनिक आयोग है, जिसका गठन ही वेटिकन-संचालित चर्च-मिशनरियों की मांग पर अमेरिकी संसद से पारित ‘इण्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट’ के तहत हुआ है । तो क्यों नहीं उक्त आयोग की ऐसी धूर्त्तता के विरुद्ध अमेरिकी शासन पर राजनयिक दबाव कायम किया जाय । ‘युएसआईआरएफ’ में सभी देशों के और सभी रिलीजन-मजहब एवं धर्म के प्रतिनिधि शामिल हों, ऐसी व्यवस्था कायम करने के लिए अमेरिकी सरकार को विवश किया जाए , अन्यथा उसके प्रतिनिधियों की भारत में नियुक्ति की इजाजत न मिले ; इस बावत अमेरिका पर दबाव बनाया जाए । ऐसा करने से ‘युएससीआईआरएफ’ जब सुधर जएगा, तब उसकी सामग्रियों के आधार पर दुष्प्रचार करने वाले सम्बन्धित मीडिया संस्थान भी ऐसी हिमाकत नहीं करेंगे । अतएव भारत सरकार को इसे गम्भीरता से लेते हुए प्रभावी राजनय करना ही चाहिए ।
• मई ’ 2024