अयोध्या में ‘रामलला-विराजमान’ का वैश्विक अर्थ –
चिरंतन-सनातन राष्ट्र है- भारतवर्ष !
भारत के राष्ट्रीय महानायक अर्थात सृष्टि रचने वाले ब्रह्मा की ३९वीं पीढी के रघुवंशी राजा अर्थात ‘राष्ट्र-पुरुष’ राम आज भी अयोध्या में विराजमान हैं । इस तथ्य के सत्य को दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की सर्वोच्च अदालत भी स्वीकार कर चुकी है । राम को परम ब्रह्म परमात्मा का अवतार मानने वाला सनातनधर्मी हिन्दू-समाज पिछले पांच सौ वर्षों के बहुविध संघर्ष में मिली विजय के परिणामस्वरुप उसी सर्वोच्च अदालत के आदेशानुसार अयोध्या में उनके जन्म-स्थान पर उनके नाम का नव्य-भव्य मन्दिर बना उनकी प्रतिमा को जिस दिव्यता-भव्यता के साथ अस्थापित कर रहा है , सो इतिहास का भविष्य निर्धारित करने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली व युगान्तरकारी परिघटना है । ऐसा इस कारण क्योंकि इस परिघटना से भारतीय प्रजा का वह समुदाय भी अब राम को ही अपना पूर्वज मानने लगा है जो कल तक राम के जन्म-स्थान पर किसी बाबर नामक बाहरी अरबी आक्रमणकारी से सम्बद्ध ‘बाबरी मस्जीद’ के वजूद की वकालत करते आ रहा था…राम के जन्म का प्रमाण मांगता रहा था…राम की वास्तविकता को हकीकत मान ही नहीं रहा था…जिसकी हठवादिता की वजह से राम-जन्म की ऐतिहासिकता व उनके जन्म-स्थान की भौगोलिकता सिद्ध करने के लिए उच्च न्यायालय से ले कर सर्वोच्च न्यायालय तक में पुरातात्विक साहित्यिक-स्थापत्यादिक साक्ष्यों की गहन जांच-पडताल का लम्बा सिलसिला चलता रहा…और जिसकी मजहबी कट्टरता व आक्रामकता के कारण दर्जनों बार लाखों रामभक्तों के लहू से लोहित होती रही अयोध्या…। किन्तु यह सारा वितण्डा अब दूर हो चुका है और भारत की समस्त प्रजा अपनी जडों से जुडने की ओर उन्मुख होती दिख रही है । राम इस देश के इतिहास-पुरुष हैं । इस तथ्य के सत्य से अब कोई इंकार नहीं कर सकता है । क्योंकि देश के शीर्ष न्यायालय ने प्रामाणिक ऐतिहासिक-पुरतात्विक साक्ष्यों के आधार पर इस सत्य को स्थापित कर दिया है । तभी तो उसने ‘रामलला विराजमान’ की ओर से दायर मुकदमें की सुनवाई करते हुए राम को नकारने वालों के विरुद्ध अपना निर्णय दिया है कि उक्त विवादित स्थान के वास्तविक स्वामी स्वयं ‘रामलला’ ही हैं जो वहां सदियों से मूर्तिवत विद्यमान रहे हैं । वही रामलला, जो सृष्टि रचने वाले ब्रह्मा की ३९वीं पीढी में ‘रघुवंश’ के महापुरुष हैं ।
राम ब्रह्मा की वंशावली के जिस ‘रघु-कुल’ के महापुरुष हैं , उसकी गाथा बहुत ही गौरवशाली रही है । भू-मण्डल के उस अजेय कुल में एक से बढ़कर एक ऐसे-ऐसे महापुरुष हुए जो चक्रवर्ती पराक्रमी सम्राट के रुप में भारत राष्ट्र की शक्ति व समृद्धि को संवृद्धि प्रदान करते हुए और असत्य-अधर्म को पराजित कर सत्य व सनातन धर्म की स्थापना करते हुए इसे सनातन व अक्षुण्ण राष्ट्र बनाये रखने में महति भूमिका निभाये । महर्षि अरविन्द ने जो कहा है कि भारत की राष्ट्रीयता सनातन धर्म है.. सो यों ही नहीं कह दिया है । उनके इस कथन का आधार यह भी है कि भारत एक चिरंतन-सनातन राष्ट्र है और यह सनातन तत्व वास्तव में धर्म ही है जिसके रक्षण-संवर्द्धन की एक समृद्ध परम्परा आदि काल से ही रही है तथा उस परम्परा में एक से एक राष्ट्रीय नायक होते रहे हैं । राम एक ऐसे ही ‘राष्ट्रीय महानायक’ हैं, जो स्वयंभूव ब्रह्मात्मज मनु की पीढी में ‘वैवस्वत मनु’ के दस पुत्रों- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबलि, शर्याति व पृष्ध से सम्बद्ध हैं । मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हुए । इसी कुल के एक दार्शनिक राजा ऋषभदेव के पुत्र राजा भरत के नाम से हमारा देश भारतवर्ष कहलाया । राम का जन्म उन्हीं इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था । इस तरह से यह वंश-परम्परा आगे बढते-बढते हरिश्चंद्र, रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची । इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल प्रदेश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी ।
रामायण में राम के कुल का वर्णन इस तरह से क्रमवार किया गया है- ब्रह्माजी से मरीचि हुए और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए । कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए तो विवस्वान के पुत्र हुए वैवस्वत मनु । मनु के जीवन-काल में जल-प्रलय हुआ था । मनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु है । महाराजा इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाई थी । इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए । कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था । विकुक्षि के पुत्र हुए बाण और बाण के पुत्र- अनरण्य । अनरण्य के बाद उनके पुत्र- पृथु इस देश के राजा हुए । पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ । त्रिशंकु के पुत्र हुए धुंधुमार हुए । धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व हुआ । युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए । मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ । सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित । ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत कहलाये । भरत के पुत्र हुए असित और असित के पुत्र सगर । सगर के पुत्र का नाम असमंज हुआ और उन असमंज के पुत्र हुए- अंशुमान । अंशुमान के पुत्र दिलीप थे । फिर दिलीप के पुत्र हुए- भगीरथ । भगीरथ ने ही गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारने का महान काम किया जिसकी कथायें-गाथायें धर्मशास्त्रों में भी पाई जाती हैं । ऐसे महान तपस्वी व प्रतापी राजा भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र हुए रघु । वही रघु जिनके कुल की वचनबद्धता व महानता के बारे में कहा जाता है कि “रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई । रघु इतने तेजस्वी व पराक्रमी हुए कि इसी कारण उनके बाद से इस राजवंश का नाम रघुवंश हो गया । दशरथ-राम का कुल ‘रघुकुल’ कहलाया । जाहिर है- रघु का पराक्रम राम से भी ज्यादा पराक्रमी था । तभी तो राम के बाद के राजाओं को भी ‘रामकुल’ का नहीं, बल्कि ‘रघुकुल’ का होना ही बताया जाता है । तो उन रघु के पुत्र हुए- प्रवृद्ध और प्रवृद्ध के पुत्र हुए शंखण । शंखण के पुत्र सुदर्शन कहलाये और उनके पुत्र हुए- अग्निवर्ण । अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए और उनसे जन्में- मरु । मरु के पुत्र प्रशुश्रुक हुए और उनके पुत्र हुए- अम्बरीष । राजा अम्बरीष के पुत्र नहुष हुए और नहुष के पुत्र हुए ययाति । इन दोनों के बारे में अनेक प्रकार की कथायें प्रचलित हैं । राम तो अभी पांच पीढी दूर हैं । ययाति के पुत्र हुए नाभाग । नाभाग से जन्में- अज । अज के पुत्र हुए चक्रवर्ती सम्राट दशरथ और उन्हीं दशरथ के चार पुत्र हुए- राम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न । आगे राम के दोनों पुत्रों- लव और कुश को तो सभी जानते हैं किन्तु उनके बाद की वंशावली अज्ञात है । अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राम लला पक्ष से उत्सुकतावश जब एक सवाल पूछा था कि- क्या राम का कोई वंशज है ? तब एक नहीं कई दावेदार सामने आए । राजस्थान की एक भाजपा-सांसद व जयपुर की पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी ने दावा पेश किया कि वह श्रीराम के पुत्र- कुश की वंशज हैं । दीया ने एक पत्रावली के जरिए इसके सबूत भी पेश किए जिस पर अयोध्या के राजा श्रीराम के सभी पूर्वजों का क्रमवार नाम लिखा हुआ है और २०९वें वंशज के रूप में सवाई जयसिंह और ३०७वें वंशज के रूप में महाराजा भवानी सिंह का नाम लिखा हुआ है । इसी तरह से राजस्थान के मेवाड़ राजघराने की ओर से भी भगवान श्रीराम के वंशज होने का दावा किया गया है । महेंद्र सिंह मेवाड़ ने भी दावा किया कि मेवाड़ राजपरिवार भगवान राम के पुत्र लव का वंशज है. मेवाड़ के पूर्व राजकुमार लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने दावा करते हुए बताया था कि कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में जिक्र किया है कि श्रीराम की राजधानी अयोध्या थी और उनके बेटे लव ने ही लाहौर नगर बसाया था । लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपने दावे में कहा कि मेवाड़ का राज प्रतीक सूर्य है. सूर्यवंशी श्रीराम शिव के उपासक थे और मेवाड़ परिवार भी भगवान शिव का उपासक है । सिक्ख वंश-परंपरा में गुरु नानक देव जी का एक वक्तव्य मिलता है कि वह भगवान राम के वंशज हैं ।
वर्ष २०१७ में हरियाणा के कुछ मुसलमानों ने भी दावा किया था कि वो भगवान राम के असल वंशज हैं । उनका कहना था कि दहंगल गोत्र से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान असल में रघुवंशी हैं जिन्हें मुगलकाल में धर्म परिवर्तन करना पड़ा था, लेकिन ये लोग आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं. राजस्थान के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों में ऐसे कई मुस्लिम हैं जो खुद को राम का वंशज मानते हैं । ऐसा दावा करने वालों की वास्तविक स्थिति चाहे जो भी हो किन्तु इससे एक तथ्य तो सत्य सिद्ध हो ही जाता है कि एक ‘राष्ट्र’ के रुप में भारत सृष्टि के आदिकाल से ही अस्तित्व में है…अर्थात चिरंतन-सनातन राष्ट्र है भारतवर्ष ।
स्पष्ट है कि अयोध्या में उस स्थान पर पुनः भव्य राम-मन्दिर निर्मित होने का अर्थ यह है कि राम केवल कोई धार्मिक पात्र मात्र नहीं हैं.. अपितु भारत राष्ट्र के इतिहास-पुरुष हैं...महानायक हैं । अतएव राम-जन्मभूमि पर भारत की राष्ट्रीयता को आकार प्रदान करने वाला जो मन्दिर इतिहास के पन्नों से निकल कर अब यथार्थ की धरातल पर स्थापित हो कर दिव्यता-भव्यता की छटा विखेरता दिख रहा है, सो केवल कोई धार्मिक-आध्यात्मिक भवन मात्र नहीं है; बल्कि भारत के वैभवशाली प्राचीन इतिहास का बोध कराने वाला जीता-जागता स्मारक भी है । इससे भारत की समस्त प्रजा का जुडाव राष्ट्र-पुरुष ‘राम’ से स्थापित हो कर रहेगा, जिससे भारत राष्ट्र को कतिपय अवांछित मजहबी कट्टरताओं-मान्यताओं पर आधारित अराष्ट्रीय भंवर-जाल से उबारने का मार्ग प्रशस्त होगा । इस निमित्त राम के मंदिर में ‘रघुकुल’ के समस्त वंशजों अर्थात ब्रह्मा-पुत्र मरिची से ले कर लव-कुश तक समस्त राजाओं की तस्वीरें उकेरे जाने से उस स्थापत्य की सार्थकता और बढ जाएगी; क्योंकि तब वह निर्माण भारत के गैर-हिन्दुओं को भी उनकी अस्मिता की वास्तविकता और भारत राष्ट्र की सनातनता व अक्षुण्णता का बोध कराएगा । उस मन्दिर के निर्माण हेतु अधिकृत ‘रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास’ कदाचित ऐसा ही कर भी रहा है ।
• मनोज ज्वाला ; जनवरी’ २०२४
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