हाथरस-मामले में संलग्न ‘पी एफ आई’ की सच्चाई


यह तो अब स्पष्ट हो चुका है कि ‘हाथरस-हंगामा’ के पीछे वही पॉपुलर
फ्रण्ट ऑफ इण्डिया (पी एफ आई) नामक इस्लामी-जिहादी संगठन सक्रिय रहा है
जिसे पिछले दिनों ‘दिल्ली-दंगा’ को अंजाम देने के मामले में आरोपित किया
गया है । इस हाथरस-काण्ड में भी इसके चार-चार कार्यकर्ताओं को पुलिस ने
कई आपत्तिजनक सामग्रियों के साथ गिरफ्तार कर लिया है. जिनमें से एक
पत्रकार बन कर लोगों को भडका रहा था ।
भारत सरकार के ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ (सी ए ए) के विरुद्ध
दिल्ली के शहिनबाग क्षेत्र की संडक पर धरना देने रहने वाले ‘भाडे के
टट्टुओं की भीड’ को मेहनताना के पैसे उपलब्ध कराने के मामले में पुलिस ने
जिस ‘पीएफआई’ नामक संगठन को आरोपित किया हुआ है. सो वस्तुतः एक छद्म
जिहादी संगठन है । इसका पूरा नाम वैसे तो ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ है
. जिससे किसी मजहब की बू तक नहीं आती है ; किन्तु इसके क्रिया-कलाप
इस्लामी जिहाद को गुप्त रुप से अंजाम देने वाले हैं । नगरिकता संशोधन
कानून की मुखालफत के बहाने देश भर में मुसलमानों को बरगलाने और उन्हें
हिंसा की राह पर ले जाने के बाद अब यह हिन्दू-समाज में जातीय वैमनस्यता
का जहर घोल कर दंगा-फसाद के सहारे मोदी-योगी सरकार को दुनिया भर में
बदनाम करने और दलित-मुस्लिम गठजोड कायम कर कांग्रेस-कम्युनिष्ट पार्टियों
को सत्तासीन करने के लिए उनकी राजनीतिक जमीन तैयार करने में सक्रिय है ।
इस जिहादी-आतंकी मुस्लिम संगठन के तार भारत के बाहर-भीतर सर्वत्र फैले
हुए हैं । पुलिस-सूत्रों के हवाले से मीडिया में आई एक-दो खबरों से ही
इसकी व्यापकता का अंदाजा लगाया ज सकता है. जिसके मुताबिक दिल्ली के
शाहिनबाग-क्षेत्र में ही इसके पांच-पांच दफ्तर पाये गए हैं ; जबकि उत्तर
प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुए नागरिकता-कानून-विरोधी हिंसक प्रदर्शनों
का मुख्य साजिशकर्ता भी यही रहा है । खबरों के अनुसार उत्तरप्रदेश की
योगी सरकार तो इस पी एफ आई को प्रतिबन्धित करने की तैयारियों में जुट गई
है । प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय को एक पत्र
लिखा है . जिसमें पीएफआई को प्रतिबंधित करने की मांग की गई है । ऐसे में
जाहिर है कि यह संगठन सामान्य से ज्यादा खतरनाक है ।
मालूम हो कि सन २००६ में गठित ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया’ अर्थात
पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है जो अपने को खुद को समाज के पिछडे और
अल्पसंख्य लोगों के हक में आवाज उठाने वाला संगठन बताता है । पहले इसका
नाम ‘नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एन डी एफ) था । इसकी जडें केरल के कालीकट
में थीं किन्तु अब इसका नाम बदल कर पॉपुलर ऑफ इण्डिया हो गया है जिसका
मुख्यालय वैसे तो दिल्ली में हैं किन्तु इसकी जिहादी योजनाओं का निर्धारण
व संचालन केरल से ही होता है । इसकी शाखाओं का विस्तार देश भर में हो
चुका है । इसने एनडीएफ के अलावा ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ , तमिलनाडु
के ‘मनिथा नीति पासराई’ , गोवा के ‘सिटिजन्स फोरम’ , राजस्थान के
‘कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी’ , आंध्र प्रदेश के ‘एसोसिएशन ऑफ
सोशल जस्टिस’ आदि अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर कई राज्यों में
अपनी पैठ बना ली है । इतना ही नहीं. इस पी एफ आई के कई घटक-संगठन भी हैं
जिनमें महिलाओं के लिए- ‘नेशनल वीमेंस फ्रंट’ और विद्यार्थियों के लिए
‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ प्रमुख हैं । पी एफ आई के संचालकों ने समाज और
शासन को भ्रमित किये रखने की चालाकी से इसका नाम ऐसा रखा है कि इसे
‘मुस्लिम-संगठन’ कतई न समझा जाये । इसकी जिहादी पहचान छिपाये रखने के लिए
इसके संचालकों द्वारा समय-समय पर कुछ काम भी ऐसे किये जाते रहते हैं कि
लोगों को इसका असली चेहरा दिख ही न सके । सन 2006 में इसने दिल्ली के
रामलीला मैदान में ‘नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस’ नाम से एक कार्यक्रम का
आयोजन किया था जिसमें देश के कई राजनीतिक दलों ने अपनी उपस्थिति दर्ज
कराई थी । देश को धोखे में रखने के लिए यह खुद को न्याय, स्वतंत्रता और
सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावे हिन्दू-दलितों व
आदिवासियों पर होने वाले तथाकथित अत्याचार के मामलों को ले कर भी समय
समय पर मोर्चा खोलते रहता है । लेकिन सच यही है कि इसकी ज्यादातर
गतिविधियां मुस्लिम समाज को केन्द्रित और जिहाद को प्रेरित होती हैं ।
साम्प्रदायिक आधार पर सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को आरक्षण दिलाना भी
इसकी प्राथमिकताओं में शामिल है जिसके लिए यह आन्दोलन भी करता रहा है ।
पीएफआई खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए आन्दोलन करने वाला
संगठन बताता है किन्तु इसका सच कई मौकों पर कई स्रोतों से सामने आ चुका
है । एक स्टिंग ऑपरेशन में पीएफआई के सदस्यों ने स्वीकार किया था कि
उन्हें खाड़ी देशों से हवाला के जरिये पैसे मिलते हैं और इस पैसे से वे
भारत में धर्मांतरण का धंधा चलाते हैं । इसी तरह से केरल के कन्नूर जिले
में योग प्रशिक्षण शिविर की आड में मुस्लिम युवकों को आतंक-जिहाद के लिए
तैयार करने के मामले का भी खुलासा ‘एनआईए’ के द्वारा किया जा चुका है.
जिसने उक्त शिविर से देशी बम और आईईडी बनाने वाली सामग्रियों के साथ
अनेक फर्जी पासपोर्ट एवं वीजा आदि जब्त किया था । भारतीय सेना के एक
सेवानिवृत अधिकारी पीसी कटोच ने पीएफआई के तार पाकिस्तानी खुफिया
एजेंसियों से भी जुडे होने का दावा किया है । वर्ष 2012 में केरल-पुलिस
की ओर से केरल हाईकोर्ट को बताया गया था कि पीएफआई नामक संगठन हत्या के
27, हत्या की कोशिश के 86 और 106 साम्प्रदायिक दंगों के विभिन्न मामलों
में शामिल है । इसी के लोगों ने केरल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
के कार्यकर्ता- एन सचिन गोपाल और संघ के अनेक स्वयंसेवकों की हत्या को
अंजाम दिया था ।
यह ‘पी एफ आई’ असल में उस ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ
इंडिया’ (‘सिमी’) नामक प्रतिबंधित आतंकी संगठन का सहोदर भाई है जो भारत
के संविधान को नहीं मानने की खुली चुनौती देते हुए भारत को इस्लामिक
स्टेट बनाने का दावा करता रहा है । इस सत्य की पुष्टि इस तथ्य से हो जाती
है कि पीएफआई का राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल हमीद ही पहले ‘सिमी’ का
राष्ट्रीय सचिव था । इसी तरह से ‘सिमी’ के अनेक पूर्व पदाधिकारी वर्तमान
में पीएफआई में विभिन्न पदों पर काबीज हैं ।
बताया जाता है कि सन 1977 से सक्रिय ‘सिमी’ को जब सन 2001 में भाजपा की
बाजपेयी-सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया तब उसके फ़ौरन बाद ही उसी के सरगनाओं
ने शोषित मुसलमानों, आदिवासियों व दलितों की हित-चिन्ता के नाम पर
‘पीएफआई’ का निर्माण कर लिया . जो अब देश भर में फैल कर ‘सिमी’ के
एजेण्डे को ही क्रियान्वित करने में लगा हुआ है । फिलवक्त देश में 23
राज्य ऐसे हैं . जहां पीएफआई अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है ।
पीएफआई कितना खतरनाक संगठन है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता
है कि इसके तार अल कायदा . जैश-ए-मोहम्मद और तालीबान जैसे वैश्विक
जिहादी-आतंकी संगठनों से जुडे हुए हैं । झारखंड के माओवादियों से भी
पी.एफ.आई. के संबंध हैं । यही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश
रचने के आरोप में गिरफ्तार नक्सली रोना विल्सन का संबंध भी पी.एफ.आई. की
झारखंड इकाई से रहा है । यही कारण है कि वर्ष 2018 में झारखण्ड सरकार ने
इसे प्रतिबंधित कर दिया था । किन्तु इसकी जिहादी-आतंकी गतिविधियों का
पुख्ता प्रमाण होने के बावजूद उक्त कार्रवाई में कुछ तकनीकी त्रूटि होने
के कारण वह प्रतिबंध निरस्त हो गया । बावजूद इसके . पी एफ आई को
प्रतिबंधित करने की मांग समय-समय पर होती रही है ; किन्तु कतिपय राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होने के कारण हर बार यह प्रतिबंध से बचते रहा है । मालूम हो कि पी.एफ.आई. की एक राजनीतिक शाखा भी है जिसका नाम- ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) है । ‘एस डी पी आई’ केरल, तमिलनाडु व कर्नाटक में अपनी जमीन तैयार करने की मशक्कत करती दिख रही है । कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में एस.डी.पी.आई. ने कांग्रेस का समर्थन इस शर्त पर किया था कि सरकार बनने पर उसके समर्थकों के विरुद्ध कायम तमाम मुकदमे वापस लिए जाएंगे । इसी तरह से पश्चिम बंगाल में ‘मिल्ली इत्तेहाद परिषद’ और तमिलनाडु में ‘तमिल मुस्लिम मुनेत्र कडगम (टी.एम.एम.के.) जैसे छोटे राजनीतिक मुस्लिम समूह और दल पी.एफ.आई. से सम्बद्ध एस डी पी आई के गठबन्धन में शामिल हो गए हैं । पी.एफ.आई. पिछले दो वर्षों से भारतीय स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त को ‘फ्रीडम परेड’ का आयोजन करता है जिसमें उसके समर्थक अर्द्धसैनिक बल के जवानों जैसी वर्दी पहन कर शामिल होते हैं । इस तरह की परेड केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के कई शहरों में आयोजित हो चुके हैं । विशेषज्ञों का दावा है कि परेड में शामिल होने वाले पी.एफ.आई. के समर्थकों को सेवानिवृत मुस्लिम पुलिस व सैन्य-अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है । जाहिर है कि यह पी एफ आई बहुत ही खतरनाक संगठन है ; अतएव इसे प्रतिबंधित कर इसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई
किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।
• मनोज ज्वाला ; अक्तुबर’ २०२०