राजीव गांधी फाउण्डेशन का हिन्दू-विरोध और चीनी-सहयोग


भारत और चीन की सीमा पर सैन्य-तनातनी के दौरान चीनी कम्युनिष्ट
हुक्मरानों से भारतीय कांग्रेसी नेताओं की मिलीभगत का एक बडा गम्भीर
मामला प्रकाश में आया है । खबर है कि भारत की केन्द्रीस सत्ता से लगातार
दो-दो बार बेदखल हो कर विपक्ष की हैसियत भी गंवा बैठी कांग्रेस के बडबोले
नेता चीनी हुक्मरानों से बतौर चन्दा रिश्वत ले कर भारत-सरकार व भारतीय
सेना के विरुद्ध चीन की तरफादारी में बयानबाजी करते रहे हैं । चन्दा के
तौर पर यह रिश्वत भारत के दिवंगत कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के
नाम पर कायम एक एनजीओ (राजीव गांधी फाउण्डेशन) के कोष में लिया गया है ।
भारत-सरकार द्वारा मीडिया को दी गई सूचना के मुताबिक चीनी दूतावास ने
बीते वर्ष राजीव गांधी फाउण्डेशन को 90 लाख रुपये का चंदा प्रदान किया था
जबकि समाचार एजेन्सी आईएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार फाउंडेशन को 2004
से 2006 के बीच 20 लाख डालर और 2006 से 2013 तक 90 लाख डालर का चंदा मिला
। फाउंडेशन की सालाना रिपोर्ट के अनुसार उसे चीन की सरकार और नई दिल्ली
स्थित चीनी दूतावास दोनों से चंदा मिला । रिपोर्ट में प्रामाणिक
दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि फाउण्डेशन द्वारा संचालित ‘राजीव
गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पोरेरी स्टडीज’ ने साल 2004-05 में अपनी
गतिविधियों के दौरान ‘चाइना एसोसिएशन फॉर इंटरनेशनल फ्रेंडली कॉन्टैक्ट’
(CAIFC) के साथ अपने आपको सूचीबद्ध किया हुआ है । CAIFC चीन का शासन
चला रही कम्युनिस्ट पार्टी की छवि के निर्माण में गुप्त जानकारियां
एकत्रित करने और प्रचार-गतिविधियां चलाने के लिए जानी जाती है । जाहिर
है- इसी कारण राजीव गांधी फाउण्डेशन का यह इंस्टिच्युट घोर व्यापारिक
असंतुलन के बावजूद भारत में चीन की व्यापारिक भागीदारी बढाते जाने के लिए
एफडीए के पक्ष में कथित ‘अध्ययन-रिपोर्ट’ के द्वारा भारत-सरकार को दलीलें
पेश करता रहा और तत्कालीन कांग्रेसी केन्द्र-सरकार स पर अमल करती रही ।
जबकि 2003-04 के मुकाबले 2013-14 में व्यापार असंतुलन 33 गुना बढ़ चुका
था । ऐसे में अब सन 2020 में भारत की भौगोलिक सीमा पर चीन की
अतिक्रमणकारी गतिविधियों के दौरान कांग्रेस के सर्वोच्च नेतृत्व अर्थात
सोनिया-राहुल के द्वारा भारतीय सेना के विरुद्ध चीनी ड्रैगन के हितों की
तरफदारी करने वाले बयान दिए जाते रहने पर राजीव गांधी फाउण्डेशन की असली
बिसात और इसकी ऐसी करामात का खुलासा किया जाना अत्यावश्यक है ।
भारत-सरकार की ओर से भी यह कहा गया है कि गांधी परिवार से जुड़े तीन
ट्रस्टों के खिलाफ वित्तीय लेन-देन में कथित अनियमितताओं को लेकर जांच की
जाएगी । केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने जानकारी दी है कि राजीव
गांधी फाउंडेशन, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट तथा इंदिरा गांधी मेमोरियल
ट्रस्ट द्वारा आय-कर तथा विदेशी अनुदान से जुड़े नियमों के उल्लंघन से
सम्बन्धित मामलों की जांच के लिए मंत्रालय द्वारा अंतर-मंत्रालयी समिति
का गठन किया गया है । मालूम हो कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के
निधनोपरांत तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की पहल पर स्थापित किए गए ‘राजीव
गांधी फाउण्डेशन’ के बारे में आम तौर पर सामान्य लोग यही जानते हैं कि यह
देश का भला करने वाली एक जन-कल्याणकारी संस्था है । घोषित तौर पर इसके
उद्देश्य और कार्य ऐसे ही हैं भी । यह संस्था चूंकि राजीव गांधी की
स्मृति में उन्हीं के नाम पर कायम है, इसलिए जाहिर है इसकी मालकिन या यों
कहिए कि अध्यक्ष उनकी पत्नी सोनिया माइनो गांधी ही हैं । जबकि , उनके
पुत्र-राहुल गांधी व पुत्री- प्रियंका गांधी के साथ इस गांधी-परिवार के
प्रति सदैव आज्ञाकारी रहे मनमोहन सिंह एवं मोंटेक सिंह अहलुवालिया एवं
पी० चिदम्बरम जैसे लोग इसके कार्यकारी सदस्य होते रहे हैं ।
सन 1992 से कांग्रेसी सरकार के शासनकाल में प्रायः प्रतिवर्ष भारत
के सरकारी खजाने से करोडों रुपये का अनुदान प्राप्त करते रहने वाली यह
संस्था आज भी देश की सबसे समृद्ध व सर्वाधिक धनशाली एन०जी०ओ० की सूची में
शामिल है , जिसके लिए विशेष अनुदान का प्रावधान कांग्रेसी केन्द्र सरकार
के बजट में ही किया जाता रहा है । भारी-भरकम सरकारी धनराशि के बदौलत
कतिपय लोकलुभावन काम कर के बाहर से अपनी छवि को जन-कल्याणकारी बनाए रखते
हुए यह संस्था भीतर-भीतर अपने खास गुप्त एजेण्डों पर काम करती है ,
जिन्हें जान लेने पर इसका असली चेहरा हमारे सामने आ जाता है । असलियत यह
है कि पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर सरकारी संरक्षण और राजनीतिक
छत्र-छाया में पल रही यह संस्था ईसाई-विस्तारवाद के अंतर्राष्ट्रीय
मुख्यालय-‘वेटिकन सिटी’ से निर्देशित युरोप-अमेरिका की उन संस्थाओं की
भारतीय सहयोगी है , जो भारत में हिन्दुओं के धर्मान्तरण , सामाजिक
विखण्डन तथा सनातन धर्म के उन्मूलन और भारत के राजनीतिक पुनर्विभाजन की
जमीन तैयार करने में लगी हुई हैं । ये संस्थायें भारत के ही कुछ खास
लोगों, समूहों व संस्थाओं को अपना अघोषित अभिकर्ता बना कर उनके माध्यम से
अपनी गतिविधियों को अंजाम देती हैं । राजीव गांधी फाऊण्डेशन भारत-विरोधी
विदेशी संस्थाओं की गतिविधियों को भारत में अंजाम देने के बावत उन
संस्थाओं से सम्बद्ध भारतीय लोगों-समूहों को सहयोग-संरक्षण देते हुए उनकी
‘सिस्टर आर्गनाइजेशन’ (सहयोगी संगठन) के रुप में काम करता रहा है । इस
तथ्य की पुष्टि उसके ऐसे कार्यों के कुछेक उदाहरणों से हो जाती है ।
प्रामाणिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ‘दलित फ्रीडम
नेटवर्क’ (डी०एफ०एन०) तथा ‘फ्रीडम हाऊस’ दो ऐसी अमेरिकी संस्थायें हैं ,
जो भारत में वेटिकन चर्च के ‘ईसाई विस्तारवाद’ का मार्ग प्रशस्त करने के
लिए यहां के दलित-मामलों को खूब भंजाती हैं । दलितों की तथाकथित
स्वतंत्रता , सुरक्षा , अधिकारिता , के नाम पर उन्हें धर्मान्तरित
करने-कराने तथा उनके धर्मान्तरण का औचित्य सिद्ध करने के लिए ये
संस्र्थायें तरह-तरह के हथकण्डों का इस्तेमाल करती हैं । इस बावत ये
संस्थायें दलित-उत्पीडन-विषयक झूठे-मनगढन्त समाचार सम्प्रेषण व मिथ्या
साहित्य-लेखन से लेकर सनातन वैदिक धर्म के विकृत निरुपण-विश्लेषण जैसे
कुटिल कारनामों के साथ-साथ दलितों के नस्ल व इतिहास को
विभेदित-प्रक्षेपित करते हुए उनके लिए पाकिस्तान की तर्ज पर पृथक
‘दलितस्तान’ की वकालत करती हुई हिंसक माहौल बनाने के एक से एक वारदातों
को भी अंजाम देती रहती हैं । इस हेतु इन संस्थाओं द्वारा भारत के
बुद्धिजीवियों को ही तरह-तरह से उपकृत-लाभान्वित कर उन्हें भाडे के टट्टू
के रुप में इस्तेमाल किया जाता है । ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक फौज
ही कायम है हमारे देश में , जिन्हें राजीव गांधी फाउण्डेशन सहयोग प्रदान
करता रहा है । ऐसे करामाती बौद्धिक-बहादुरों की फेहरिस्त में कांचा
इलाइया, जान प्रभुदोष , सेण्ड्रिक प्रकाश, जान दयाल, तिस्ता सितलवाड,
विजय प्रसाद , कुमार स्वामी , राम पुणयानी , टिमोथी शाह, मीरा नन्दा ,
सीलिया डुग्गर , अंगना मुखर्जी आदि अनेक नाम हैं, जो भारत में अब दलितों
के लिए देश-विभाजन तथा उनके सामूहिक धर्मान्तरण करने-कराने के हालात
निर्माण की बौद्धिक मशक्कत करते रहे हैं । इन तमाम लोगों को राजीव गांधी
फाऊण्डेशन द्वारा किसी न किसी रूप में प्रायोजित-पोषित किया जाता रहा है
। ये वही लोग हैं जिनमें से अधिकतर कांग्रेस की युपीए०-सरकार के दौरान
उसकी रिमोट-कण्ट्रोलर बनी रही सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली ‘राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद’ के भी सदस्य बनाए गए थे । इन्हीं लोगों ने बहुसंख्यक
हिन्दू समाज को दंगाई सिद्ध करते हुए ‘लक्षित व साम्प्रदायिक हिंसा-रोधी
विधेयक’ का मसौदा तैयार किया था, जो सरकार बदल जाने के कारण कानून का रूप
नहीं ले सका , अन्यथा बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के घर पानी भरते रहना
पडता । कांचा इलाइया नामक तथाकथित भारतीय लेखक अमेरिका के दलित फ्रीडम
नेटवर्क से सम्बद्ध हैं , जिन्हें उनकी एक पुस्तक – ‘ह्वाई आई एम नाट ए
हिन्दू’ (मैं हिन्दू क्यों नहीं हूं) के लिए डी०एफ०एन० ने पोस्ट डाक्टोरल
फेलोशिप प्रदान किया हुआ है ; जबकि राजीव गांधी फाऊण्डेशन सन 2010 से ही
इस पुस्तक को भारत भर में प्रायोजित कर रहा है । इस पुस्तक में कांचा ने
सनातन वैदिक धर्म व इसे मानने वाले हिन्दुओं के विरूद्ध जम कर विष-वमन
किया है तथा भारत की समस्त समस्याओं के लिए इसे ही जिम्मेवार ठहराया है ।
इतना ही नहीं, उसने दलित-जातियों को सवर्ण हिन्दुओं के विरूद्ध सशस्त्र
गृह-युद्ध के लिए भडकाया है और ईसा मसीह को दलितों का मुक्ति-दाता बताया
है । पुस्तक में उसने दलितों को ‘संस्कृत की हत्या’ कर देने के लिए
ललकारा है और गोमांस-भक्षण की वकालत करते हुए गोरक्षा को राष्ट्रीयता के
विरूद्ध अपराध करार दिया है । भारत के बहुसंख्यक समाज के ‘कर’ से निर्मित
सरकारी खजाने से अनुदान हासिल करते रहने वाले इस राजीव गांधी फाऊण्डेशन
द्वारा डी०एफ०एन० के धर्मान्तरण्कारी और भारत-विभाजनकारी उपकरण के तौर पर
उसकी षड्यंत्रकारी योजना के तहत लिखित-प्रकाशित इस पुस्तक को प्रायोजित
किया जाना अथवा ऐसे अन्य कार्यों को संरक्षण-पोषण देना कहीं से भी भारत
के हित में नहीं है । यह तो भारत राष्ट्र के विरूद्ध और बहुसंख्यक भारतीय
समाज के विरूद्ध षड्यंत्रकारी गतिविधियों में उसकी सहभागिता का प्रमाण है

इसका दूसरा सबसे बडा प्रमाण यह है कि भारत में भारतीय संविधान को
खुली चुनौती देने तथा खूनी इस्लामी जिहाद को अंजाम देने के बावत मुस्लिम
युवाओं को प्रोत्साहन-प्रशिक्षण देते रहने वाली कुख्यात संस्था-
‘इस्लामिक रिसर्च फाऊण्डेशन’ (आई०आर०एफ०) से भी इस राजीव गांधी फाऊण्डेशन
के नजदीकी सम्बन्ध हैं । वर्ष 2011 में आई०आर०एफ० के संचालक जाकिर नाइक ,
जिस पर कई आतंकी मामले दर्ज हैं , उससे राजीव गांधी फाऊण्डेशन ने 50 लाख
रुपये अनुदान हासिल किया था । मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार
आई०आर०एफ० व जाकिर नाइक पर जब कानूनी सिकंजा कसता गया तथा उक्त अनुदान के
बावत राजीव गांधी फाऊण्डेशन पर ऊंगलियां उठायी जाने लगीं तब कांग्रेस की
ओर से यह सफाई दी गई कि चंदा की वह राशि फाऊण्डेशन को नहीं बल्कि ‘राजीव
गांधी ट्रट’ ने ली थी, जो जुलाई 2012 में वापस कर दी गई । भाजपा-नेता
रविशंकर प्रसाद ने राजीव गांधी फाऊण्डेशन पर जाकिर नाइक को उसकी
भारत-विरोधी आतंकी गतिविधियों की कानूनी जांच से बचाने के लिए उससे
रिश्वत के रूप में वह चंदा लेने का भी आरोप लगा रखा है । इतना ही नहीं ,
इस संस्था की धनदाता एजेंसियों में युरोप-अमेरिका की चर्च मिशनरियों से
सम्बद्ध उन संस्थाओं के नाम भी शामिल हैं , जो दिन-रात भारत के विरूद्ध
विखण्डन और हिन्दुओं के धर्मान्तरण के षड्यंत्रकारी कार्यक्रमों को अंजाम
देने में लगी रहती हैं । जाहिर है कि कांग्रेस के राजनीतिक संरक्षण में
पल-बढ रहा राजीव गांधी फाऊण्डेशन बाहर से देखने में तो लोकलुभावन है,
किन्तु वास्तव में भीतर से यह भारत-विरोधी तत्वों का संरक्षक है ।
• जुलाई’ 2020