मजहब (रिलीजन) के आंगन में धर्म की धमक


खबर है कि सात-समन्दर पार अमेरिका की धरती पर वेद-मंत्रों का पाठ
शुरु हो गया है । जी हां संयुक्त राज्य अमेरिका (युएसए) की राजधानी
वाशिंगटन में वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कॉरोना महामारी के इस
चालु दौर में ‘राष्ट्रीय सेवा दिवस’ के मौके पर ‘ह्वाइट हाउस’ में सभी
देशवासियों के स्वास्थ्य, सुरक्षा व कल्याण के लिए ‘वैदिक प्रार्थना सभा’
का आयोजन कराया । ह्वाइट हाउस परिसर के ‘रोज गार्डन’ में इस आयोजन के तहत
कॉरोना महामारी से बचाव हेतु वेद-विदित शांति-मंत्र का सामूहिक पाठ किया
गया । इस निमित्त मंत्रोच्चार कराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड
ट्रंप के आमंत्रण पर न्यूजर्सी-स्थित स्वामीनारायण मंदिर के पुजारी हरीश
ब्रह्मभट्ट विशेष रुप से बुलाये गये थे । उस मौके पर शांति-मंत्र के पाठ
में राष्ट्रपति- डोनाल्ड ट्रम्प व उनकी पत्नी- मेलानिया ट्रंप के साथ
अमेरिकी प्रशासन के अनेक मंत्रीगण एवं कांग्रेस (अमेरिकी संसद) के अनेक
सदस्य तथा ह्वाइट हाउस के तमाम अधिकारी-कर्मचारी और ईसाई मजहब के
अनेकानेक गणमान्य लोग भी शारीरिक दूरी की अनिवार्यता का पालन करते हुए
शामिल हुए । शांति-मंत्र के पाठ से पूर्व पण्डित ब्रह्मभट्ट ने उन लोगों
को वेदों की महत्ता एवं उससे निःसृत धर्म की सनातनता और वेदमंत्रों की
वैज्ञानिकता से अवगत कराया । अर्थात यजुर्वेद के शांति-मंत्र का मर्म
समझाया कि पृथ्वी जल वनस्पति फसल औषधि अंतरिक्ष वायु अग्नि आदि सृष्टि के
सभी तत्वों में अपेक्षित संतुलन एवं समस्त प्राणियों से सह-अस्तित्व से
ही मानवजीवन सुखी हो सकता है और मनुष्य निरापद रह सकता है । यजुर्वेद के
इस मंत्र में धन-दौलत समृद्धि-शोहरत कामयाबी व हुकूमत जैसी सांसारिकताओं
से इतर समस्त सृष्टि के कल्याण की भावनाओं के ध्वन्यात्मक संप्रेषण की
आध्यात्मिक ऊर्जा समाहित है । उन्होंने बाद में इस मंत्र का अंग्रेजी
अनुवाद भी सबको बताया । राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रह्मभट्ट को शान्ति-मंत्र
का पाठ करने-कराने पर उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कॉरोना
महामारी से जूझ रहे अमेरिकियों के कल्याणार्थ सनातन वैदिक धर्म के प्रति
गहरी आस्था जतायी । उन्होंने यह विश्वास प्रकट किया कि वेदमंत्रों की
महिमा से अमेरिका मौजुदा कॉरोना-संकट का मुकाबला करने में अवश्य सफल होगा
। उन्होंने कहा कि अमेरिका पर जब-जब कोई संकट आया है तब-तब अमेरिकियों
ने प्रार्थना की शक्ति और भगवान की अनंत महिमा पर भरोसा कर उसका समाधान
पाया है । ट्रंप ने कहा कि मैं सभी अमेरिकियों से आग्रह करता हूं कि वो
दिल से प्रार्थना करें । उस मौके पर अमेरिका की प्रथम महिला और
राष्ट्रपति की पत्नी मेलानिया ट्रंप ने कॉरोना की वजह से काल-कवलित हो
चुके लोगों व उनके परिजनों के प्रति गहरी सहानुभूति जताते हुए
कॉरोना-पीडितों एवं कॉरोना से जंग लड रहे लोगों के लिए भी इस मंत्र के
माध्यम से प्रार्थना करने का आह्वान किया । उधर अमेरिका के कई राज्यों की
ने भी वेदमंत्रों की महत्ता स्वीकार कर उन्हें सीनेट के सत्रों में गाये
जाने का निर्णय लिया ले लिया है ।
मालूम हो कि अमेरिका वह महाशक्ति-सम्पन्न देश है जहां के
शासन-प्रशासन की हरेक रीति-नीति क्रिश्चियनिटी की पोषक है... जहां
क्रिश्चियनिटी (ईसाइयत) केवल मजहब ही नहीं है बल्कि अमेरिकी राजनीति एवं
उसकी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की मार्गदर्शक भी है । पिछले पांच सौ वर्षों
से पूरी पृथ्वी पर ‘गॉड के इकलौते पुत्र (जिसस क्राईस्ट) की मिल्कियत’
प्रमाणित करने और ‘वेटिकन सिटी के पोप की हुकूमत’ स्थापित करने के बावत
ईसाई-विस्तारवाद का षड्यंत्रकारी अभियान चलाने वाले मजहबी झण्डाबरदारों
का पालक-पोषक व सबसे बडा संरक्षक तो अमेरिका ही है । अमेरिका ही उस मजहब
का सर्वाधिक शक्तिशाली व सुविधा-प्रदायक पनाहगार है जिसके आंगन में सनातन
धर्म के उन्मूलन व धर्मधारी हिन्दुओं के मतान्तरण-मजहबीकरण अर्थात
ईसाइकरण की साजिशें रची-रचाई जाती रही हैं और तदनुसार वेद-पुराण
भाषा-साहित्य इतिहास-विरासत के विकृतिकरण से ले कर तरह-तरह के शासनिक
अधिनियम व आर्थिक-भौतिक संसाधन तक समस्त अनुकूलताएं उपलब्ध करायी जाती
हैं । ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ हो या ‘मानवाधिकार
कमीशन’ ; ये सभी प्रकार के धर्मान्तरणकारी तिकडम वस्तुतः अमेरिकी शासन के
ही मजहबी उपकरण हैं । चर्च मिशनरी संस्था- ‘वर्ल्ड विजन’ द्वारा
सनातनधर्म के उन्मूलन हेतु भारत के गांव-गांव में हर गली मुहल्ले तक में
चर्च बनाने की ‘जेशुआ परियोजना’ का जो क्रियान्वयन किया जा रहा है उसका
परोक्ष प्रायोजक अमेरिका ही है । ‘आर्य-द्रविड’ का वितण्डा खडा कर सनातन
धर्म की प्रत्येक रीति-नीति व सामाजिक पद्धति को विकृत रुप में पेश करते
हुए जाति-विशेष के हिन्दुओं को दलित व आदिवासी घोषित कर-करा कर उन्हें
ईसाइकरण के मार्ग पर धकेलने में सक्रिय स्वयंसेवी संस्थाओं (एन०जी०ओ०)
समूहों को धन प्रदान करते रहने वाली एजेन्सियों में शुमार ‘दलित फ्रीडम
नेटवर्क’ व ‘फ्रीडम हाउस’ जैसी एजेन्सियां तथा ‘पिफ्रास’ ( पॉलिसी
इंस्टिच्युट फॉर रीलिजन एण्ड स्टेट) व ‘पियाकोना’ (दी फेडरेशन फॉर
इण्डियन-अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका) जैसे घोर
मजहबी संस्थान अमेरिका से ही अपनी योजनाओं को अंजाम देते रहे हैं ।
अमेरिकी शासन के मजहबीपन का अंदाजा आप इसी एक तथ्य से लगा सकते हैं कि
अमेरिकी राष्ट्रपति की वैदेशिक नीतियां निर्धारित करने वाली परिषद-
‘प्रेसिडेण्ट्स एड्वाइजरी कॉउंसिल ऑन फेथ-बेस्ड नेबरहुड पार्ट्नरशिप” में
‘क्रिश्चियनिटी टूडेय इण्टरनेशनल’ तथा ‘वर्ल्ड विजन’ एवं ‘वर्ल्ड
इवैंजेलिकल एलायन्स’ और पॉलिसी इंस्टिच्युट फॉर रीलिजन एण्ड स्टेट’ जैसी
२५ उन मिशनरी संस्थाओं के प्रतिनिधि सदैव शामिल रहते हैं जो गैर-ईसाइयों
अर्थात हिन्दुओं के क्रूसीकरण (धर्मान्तरण) के लिए दुनिया भर में
कुख्यात हैं । ये वो शक्तियां हैं जो भूख व बीमारी के लिए सनातन धर्म की
पूजा-परम्पराओं को जिम्मेवार ठहराती रही हैं तथा वेदमंत्रों को ‘गडेरियों
का गीत’ करार देती रही हैं । ‘टेम्पलटन फाउण्डेशन’ अमेरिका की एक ऐसी
संस्था है जो सनातन वैदिक संस्कृति को अवैज्ञानिक व विज्ञान-विरोधी
सिद्द्ध करने के लिए वैज्ञनिकों को प्रयोजित करती है । ‘गॉस्पल फॉर
एशिया’ नामक विश्वविख्यात मिशनरी संस्था का मुख्यालय अमेरिका के टेक्सास
शहर में ही है जो सनातन धर्म की आध्यात्मिक परम्पराओं को बाइबिल-वर्णित
‘शैतान की विशेषताओं’ के रुप में विश्लेषित करती है और एशिया भर की
समस्त सामाजिक आर्थिक समस्याओं एवं प्राकृतिक प्रकोपों के लिए
मूर्ति-पूजा तथा वेद-शास्त्रों को जिम्मेवार बताती है । इसने सनातन धर्म
के समस्त पर्वों-त्योहारों-उत्सवों आयोजनों को विकृत करने एवं उनके प्रति
अनास्था पैदा करने हेतु ‘फेस्टिबल आउटरिच’ नाम से अपना एक विशेष कोषांग
ही कायम कर रखा है । अमेरिकी सरकार के संरक्षण में वहां की ऐसी सैकडों
संस्थायें सनातन धर्म के विकृतिकरण व उन्मूलन की अपनी योजनाओं के
क्रियान्वयन में युद्ध स्तर पर दिन-रात लगी रहती हैं । आज
कॉरोना-संक्रमण-जनित महामारी की मार से पूरी दुनिया के साथ-साथ जब पूरा
अमेरिका भी आहत है और उससे निजात पाने के लिए उनकी नाक के नीचे अमेरिकी
प्रशासन की पहल पर वेद-मंत्रों के स्वर गूंज रहे हैं तब अब इन तमाम
संस्थाओं की बोलती बन्द है ।
बहरहाल कॉरोना संकट के इस दौर में इन मजहबी शक्तियों की मान्यतओं का
छिद्रान्वेषण करना उचित प्रतीत नहीं होता. क्योंकि सच्चाई उन्हें मालूम
है कि क्रिश्चियनिटी वस्तुतः ‘अब्राह्मिक मजहब’ (रीलिजन) है जो ब्रह्म की
अवधारणा से सर्वथा उलट होने के कारण ‘धर्म’ कतई नहीं है; क्योंकि ‘धर्म’
तो ब्रह्मस्वरुप सृष्टि के सभी तत्वों के सह-अस्तित्व एवं पुनर्जन्म व
मोक्ष की अवधारणा पर आधारित जीवन-पद्धति का नाम है जो वेदों से ही निःसृत
हुआ है और यही समस्त विश्व-वसुधा के लिए सर्वकल्याणकारी है । तभी तो
अमेरिका के पांच राज्यों- न्यू मेक्सिको. कोलोरॉडो. ऊटा. वाशिंगटन व
ऑरिजोना की सीनेट ने अब अपने सत्रों का आरम्भ वैदिक प्रार्थना से करने का
निर्णय ले लिया है । वहां पीपल व तुलसी के साथ आयुर्वेद की महत्ता भी
स्वीकृत हो चुकी है । यह तो मजहब के आंगन में धर्म की धमक ही है । मजहब व
रिलीजन दोनों एक ही हैं क्योंकि दोनों ही पैगम्बरवाद व आसमानी किताब पर
आधारित हैं और दोनों का मिशन संयुक्त है- अपने से गैरों का उन्मूलन ;
जबकि धर्म स्वयंभूव है ‘वेदों’ से निःसृत जीवन-पद्धति है जिसकी दृष्टि
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ है । इस अन्तर के बावजूद केवल अमेरिका ही नहीं अपितु
फ्रांस में भी सनातन धर्म के प्रति आकर्षण दिखने लगा है- शंख-ध्वनि को
वायरस-नाशक उपचार के रुप में स्वीकार किया जा रहा है । इजरायल में
‘हवन-यज्ञ’ की वैज्ञानिकता को अंगीकार किया जाने लगा है । इस पूरे
घटनाक्रम को पश्चिम के ही भविष्यवेताओं यथा- नेस्ट्रड्म्स कीरो डिक्सन और
भारत के महर्षि अरविन्द व युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य की भविष्योक्तियों
के परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि एक ओर विश्व-विरादरी में अब धर्म
की स्वीकार्यता बढने ही वाली है तो दूसरी ओर धर्म की वैश्विक व्याप्ति
युग की आवश्यकता भी बनती जा रही है ।
• मई’ २०२०