हिन्दू जीवन-शैली को वैश्विक स्वीकृति दिलाती विपत्ति


आज लगभग सारी दुनिया चीन से निकले ‘कॉरोना वायरस’ की चपेट आ चुकी है
। लगभग एक सौ से अधिक देशों में यह संक्रमण फैल चुका है । अनेक देशों की
सरकारों ने इसे महामारी घोषित कर दिया है । विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर
से भी इसके विस्तार को रोकने के बावत किसिम-किसिम के निर्देश दुनिया भर
में जारी किये जा रहे हैं और अभिवादन के तौर-तरीकों से ले कर मृत देह के
विसर्जन की पद्धति तक में बदलाव लाने के सुझाव दिए जा रहे हैं । जैसे यह
कि भेंट-मुलाकात के दौरान परस्पर अभिवादन के लिए एक-दूसरे से हाथ न
मिलाएं बल्कि भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने-अपने हाथ जोड कर नमस्ते
बोलते हुए अभिवादन करें और किसी के मरणोपरांत उसके शव को दफनाने के बजाय
भारतीय परम्परा के अनुसार उसका ‘अग्निदाह’ करें । बताया जा रहा है कि ऐसा
नहीं करने से अर्थात अभिवादन और देह-विसर्जन के गैर-भारतीय तरीकों की वजह
से ‘कॉरोना’ अथवा इस तरह के अन्य बीमारीकरक जीवाणुओं-विषाणुओं का संक्रमण
होना सुनिश्चित है । भारतीय संस्कृति-परम्परा का एकमात्र अर्थ है- सनातन
वैदिक धर्म से निःसृत हिन्दू-जीवनशैली जो व्यष्टि से ले कर समष्टि तक तथा
सृष्टि से ले कर परमेष्टि तक के समस्त जीवों के प्रति सह-अस्तित्व पर
कायम है । तो बहरहाल ड्ब्ल्यु एच ओ की सलाह पर उन देशों के लोग भी अब हाथ
मिलाना य गले मिलना छोड कर ‘नमस्ते’ करने लगे हैं । इस कॉरोना से
सर्वाधिक पीडित चीन देश की सरकार के सख्त आदेश पर वहां शवों को जलाने
वाले मजहब के लोग भी सनातन धर्म की रीति के अनुसार शव जलाने को विवश हो
गए हैं । अन्य देशों-मजहबों में भी शव-विसर्जन की दफन क्रिया प्रतिबंधित
हो सकती हैं और दहन क्रिया स्वीकृत हो सकती है । ऐसा इस कारण क्योंकि
सनातनधर्मी जीवनशैली में शवदहन की जो परम्परा है पर्यावरण-प्रदूषण और
बीमारीकारक अवांछित जीवाणुओं के संक्रमण की दृष्टि से सर्वाधिक सुरक्षित
है । दफन से पर्यावरण-प्रदूषण और जिवाणु-संक्रमण दोनों बढता है । यही
कारण है कि कॉरोना से सर्वाधिक पीडित चीन में ‘शवदाह’ को अनिवार्य कर
दिया गया है । इधर औषधि-विज्ञानियों और चिकित्सा-शास्त्रियों द्वारा
कॉरोना-पीडितों को उस ‘तुलसी’ के सेवन की भी सलाह दी जा रही है जो
सनातनधर्मी प्रत्येक हिन्दू के घर-अंगन में पूजित है ।
खबर है कि जर्मनी के चांसलर एंजला मर्केल को उनके मंत्रियों ने
‘कॉरोना वायरस’ के डर से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया है । जर्मनी के
आंतरिक मामलों के मंत्री होर्स्ट सीहोफर ने कॉरोना वायरस के संक्रमण को
फैलने से रोकने की मजबुरी में ऐसा किया, जिसे बाद में चांसलर एंजला
मर्केल ने सही भी करार दिया । गौरतलब है कि दुनिया के लगभग १०० से अधिक
देशों में कोरोना वायरस की दहशत फैली हुई है और इसके प्रकोप से भारत समेत
दुनिया भर में हजारों लोगों की मौत हो चुकी है जबकि हजारों लोग संक्रमित
हो चुके हैं । भारत में भी घुस कर यह पैर पसारने लगा है तो जाहिर है कि
यहां भी पश्चिमी तरीके से अभिवादन में हाथ मिलाने व गले मिलने वाले लोग
‘नमस्ते’ का अनुकरण करने लगे हैं । आने वाले दिनों में शवों को दफनाने
वाले तमाम मजहबी लोगों द्वारा शव-दाह की सनातन हिन्दू-परम्परा अपनाए जाने
की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करना सबकी विवशता
हो जाएगी । दुनिया भर में बढती आबादी के साथ-साथ विस्तृत होते
कब्रिस्तानों के भीतर पडे शवों की सडन के कारण भूमिगत जल के प्रदूषण से
भी भविष्य में कभी न कभी कोई अन्य बीमारीकारक संक्रमण की विपत्ति तो आखिर
आएगी ही ।
अनुचित खान-पान और अभक्ष्य भक्षण से उत्पन्न जानलेवा बीमारी के
इस संक्रमण से बचने के उपाय के तौर पर जिस भारतीय संस्कृति अर्थात सनातन
वैदिक हिन्दू-जीवन-पद्धति के अनुकरण को बढावा दिया जा रहा है वह
सर्वकल्याणकारी है और खान-पान व अभिवादन-आचरण से ले कर जीवन-यापन के तमाम
क्रिया-कलापों की विज्ञान-सम्मत विशिष्ट शैली पर आधारित है । सनातन
धर्म से निःसृत इस जीवनशैली में मांसाहार सर्वथा वर्जित है और वही आचरण
स्वीकृत है जो मानवोचित होने के साथ-साथ प्रकृति व पर्यावरण के लिए भी
वांछित है । अब वह समय आ गया है अथवा आने वाला है जब सनातन वैदिक भरतीय
संस्कृति की एक-एक क्रियाविधि के वैज्ञानिक आयामों पर व्यापक वैज्ञानिक
विमर्श होगा और उसे मजहबी दुनिया स्वेच्छा से नहीं तो विवशता से ही सही
उसे अपनाने की ओर उन्मुख होगी ।
उल्लेखनीय है कि आज कॉरोना को ले कर दुनिया के तमाम देशों की
सरकारों सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जो सुझाव-निर्देशिका
(एडवाइजरी) जारी की जा रही है सो सब सनातन-वैदिक भारतीय संस्कृति की
जीवनशैली में लाखों वर्ष पहले से प्रचलन में हैं । भोजन व शौच के पश्चात
हाथ-मुंह व मलद्वार को पानी से धोने तथा यात्रा के पश्चात नहाने व कपडे
धोने और स्वच्छता के अन्य प्रतिमानों को लागू करने के बावत ड्ब्ल्यु एच ओ
द्वारा आज आधिकारिक तौर पर जो अपील की जा रही है सो सब
हिन्दू-जीवन-पद्धति में पहले से ही प्रचलित है । किन्तु आधुनिकता के नाम
पर इन प्रचलनों को दकियानुसी बता कर अभक्ष्य भक्षण करने के साथ-साथ
मानवेतर जीवों के भी रक्त-मांस व रस-रसायन को खाने-पीने और उसके बाद
‘टिसु पेपर’ से जुठे हाथ-मुंह और गन्दे मलद्वार को पोंछ लेने वाले
अभारतीय फैशन के पीछे भागने की भेडचाल ने भारत में भी कॉरोना की त्रासदी
खडी कर दी तब अब यहां के सनातनधर्मी आधुनिक बुद्धिबाजों को अपनी
परम्पराओं की ओर लौटने लगे हैं । किन्तु केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है ।
स्वस्थ-समुन्नत प्रदूषण-मुक्त व आपदा-विपदा से निरापद जीवन के लिए समस्त
सनातन वैदिक परम्पराओं का अनुसरण करना होगा । समष्टि से ले कर परमेष्टि
तक सृष्टि के समस्त जीव-जगत के प्रति सह-अस्तित्व कायम करना होगा । न
केवल जीवों के प्रति बल्कि वनस्पति-नदी-पर्वत सबके प्रति । प्रकृति के
अस्तित्व से ही मानव का अस्तित्व निरापद हो सकता है । सनातन वैदिक भारतीय
जीवनशैली में ‘यज्ञ’ व ‘अग्निहोत्र’ का जो प्रावधान है उसका एक-एक विधान
प्रकृति के प्रति सह-अस्तित्व के ज्ञान-विज्ञान की शिक्षाओं से भरा पडा
है । ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया’ सनातन वैदिक भारतीय
संस्कृति की जीवनशैली का महज आदर्श वाक्य ही नहीं है बल्कि ‘हिन्दू-जीवन’
का पथ और पाथेय भी यही है ।
इस बीच एक हास्यास्पद खबर यह भी मिली है कि चूहा बिल्ली
सांप-छिपकिली छुछुंदर-गिलहरी कुत्ता-कुकुरमुत्ता से ले कर चमगादड तक
समस्त मानवेतर जीवों को जैसे-तैसे खा-पी कर खतरनाक जानलेवा बीमारीकारक
संक्रमण फैला कर सारी दुनिया को अस्त-व्यस्त कर देने वाले ‘कम्युनिष्ट
चीन’ के लोग अपनी हठधर्मिता की वजह से अभिवादन की सनातन भारतीय शैली
अपनाने अर्थात हाथ जोड कर ‘नमस्ते’ करने को तैयार नहीं हैं और इसके
विकल्पस्वरुप एक-दूसरे के ‘पैर से पैर छुने’ को ‘वुहान शेक’ नाम दे कर
इसे अभिवादन के एक नये तरीके के तौर पर विकसित कर रहे हैं । अब इन्हें
कौन समझाये कि यह नया तरीका नये कारणों से और ज्यादा खतरनाक हो सकता है । फिर भी चीन में वहां के लोग एक-दसूर से मिलते वक्त हाथ मिलाना तो बंद कर दिए हैं किन्तु ‘पैर मिलाना’ शुरु कर दिए हैं और अभिवादन के अपने इस नये
तरीके पर यह कहते हुए इतरा रहे हैं कि वे भारतीय अभिवादन-शैली का विकल्प
खोज लिए । इस चीनी आविष्कार से भी जब कोई खतरा उत्पन्न होगा तब कदाचित
चीनियों का यह अहंकार दूर होगा । बहरहाल चीनियों की अकड दूर होने में
चाहे जितना भी समय लगे किन्तु कॉरोना के कहर से दुनिया भर में जो विपत्ति
आई है उससे सनातन भारतीय जीवनशैली को वैश्विक स्वीकृति मिलती हुई अवश्य
दिख रही है ।
• मार्च’ २०२०