दिल्ली का अंजाम कांग्रेस के दंगाई चरित्र का परिणाम
चोरों ने जरूर कभी न कभी और कहीं न कहीं किसी कोतवाल को डांटा
होगा. तभी देश में यह कहावत चल पडी है कि ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ ।
हमारे देश में मुगलिया शासन के दौरान नागरीक सुरक्षा की कोतवाली व्यवस्था
कायम थी । लोकतांत्रिक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के
दादा गंगाधर नेहरु दिल्ली के आखिरी कोतवाल थे । कोतवाली के उस जमाने में
चोर-उचक्के और अन्य अपराधी भी बडे शातीर हुआ करते थे जो वेश बदल कर
कोतवालों को ही गाहे-बगाहे डांट दिया करते थे । तभी यह कहावत निकल पडी ।
चोरों और कोतवालों की वह नूरा-कुश्ती बदलते समय के साथ बदले रुपों में आज
भी जारी है ।
आज अपने देश की राजनीति में यह कहावत सर्वाधिक चरितार्थ हो रही
है ; क्योंकि यहां कांग्रेस के नेतृत्व में धूर्त्त राजनीतिबाजों
मीडियाकर्मियों व बुद्धिबाजों का एक ऐसा गिरोह सक्रिय है जो मजहब के
प्रति सापेक्ष है तथा मजहबियों की तरफदारी करते हुए
दंगा-फसाद-हिंसा-जेहाद एवं देशद्रोह व राष्ट्रघात आदि गम्भीर अपराध-कर्म
को कायदे से स्वयं क्रियान्वित करता है और उसका दोष भाजपा व
हिन्दू-संगठनों पर जबरिया मंढ कर उन्हें डांटते रहता है । उस गिरोह ने एक
मीथक स्थापित कर दिया है कि देश में दंगा चाहे जहां कहीं भी हो और जैसे
भी हो उसका स्थाई व एकमात्र ‘कर्ता’ हिन्दुत्ववादी संगठन ही हो सकता है .
जो पहले संघ था बाद में जनसंघ हुआ और अब भाजपा है । यह मीथक इस गिरोह
द्वरा ऐसी मजबूती से स्थापित किया जा चुका है कि लोग-बाग भी सत्य-असत्य
की पडताल किये बिना इसे ही सच मान लेते हैं । जबकि भाजपा-नेतृत्व इतना
भोल-भाला है कि वह कोतवाल की भूमिका में रहने पर भी उन ‘चोरों’ की कलई
खोलना तो दूर . उन्हें करारा जवाब तक नहीं दे पाता है और स्वयं को
निर्दोष बताने की सफाइयां पेश करने में ही हांफते रहता है । इस
‘उलटबांसी’ के एक नहीं दर्जनों उदाहरण हैं ।
देश-विभाजन कांग्रेस ने किया-कराया और कांग्रेस की
मुस्लिम-तुष्टिकरणवादी नीतियों के कारण ही विभाजन के साथ दुनिया का सबसे
बडा रक्तपात हुआ ; किन्तु भाजपा-नेतृत्व के द्वारा इस स्वयंसिद्ध अकाट्य
ऐतिहासिक तथ्य के बावजूद इसे सत्य सिद्ध करने और इस आधार पर कांग्रेस को
कठघरे में खडा करने की कोई ठोस कोशिश ही नहीं की गई आज तक । सन १९६९ में
कांग्रेसी शासन के दौरान गुजरात में हुआ भीषण दंगा स्वातंत्र्योत्तर भारत
का अब तक का सबसे बडा सरकारी दंगा था ; किन्तु उसके बावत भी कांग्रेस की
जिम्मेवारी पर भाजपा-नेतृत्व की ओर से कभी कोई शोर नहीं मचाया गया । जबकि
‘२००२ के गोधरा-गुजरात’ को ले कर उक्त कांग्रेसी गिरोह ने केवल
‘वाक-प्रहार’ मात्र से भाजपा को इस कदर दागदार बना दिया कि वह न्यायालय
से निर्दोष सिद्ध हो जाने के बावजूद आपने दामन पर से कांग्रेसी कीचड के
उस दाग को छुडा नहीं सकी है । कायदे से भाजपा-नेतृत्व को करना तो यह
चाहिए था कि २००२ के उस दंगा-सम्बन्धी विभिन्न आरोपों से आरोपित नरेन्द्र
मोदी आदि जब न्यायालय द्वारा निर्दोष सिद्ध हो गए . तब उन्हें उस बावत
‘मौत का सौदागर’ कहने वालों एवं तथाकथित दंगा-पीडितों से मुंहमांगे दाम
पर झूठी-झूठी गवाहियां दिलाने वालों और तत्सम्बन्धी फर्जी कहानियां रच-गढ
कर देश भर में घृणा फैलाने वालों को कठघरे में घसीट लाता या उनके उस
दुष्प्रचार की तर्ज पर ही उन्हें एकदम से बेनकाब कर देता । किन्तु ऐसी
कोई कोशिश न कर केवल आरोप-मुक्त हो जाने की अपनी सफाइयों पर ही इतराता
रहा भाजपा-नेतृत्व । आज भी टी०वी० चैनलों पर वाद-विवाद के दौरान
‘गोधरा-गुजरात’ का प्रसंग आते ही भाजपा के नेता-प्रवक्ता बचाव की मुद्रा
में आ कर बगलें झांकने लगते हैं और ‘सेक्युलर छाप’ नेता उन पर हावी हो
जाता है । जबकि गुजरात में २००२ से भी बडे पांच-पांच दंगे क्रमशः
१९६९-१९८५-१९८७-१९९०-१९९२ में कांग्रेसी शासनकाल के दौरान हो चुके हैं ।
सरकारी आकडों के अनुसार १९६९ के दंगा मे कुल ३८३२ लोग मरे थे । कांग्रेस
की राज्य-सरकार के संरक्षण में हुए उस दंगे के दौरान मुसलमनों के भीषण
कत्लेआम का खास कारण था । दरअसल एक साल पहले गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंत
राय मेहता के विमान को कच्छ सीमा पर पाकिस्तान की सेना द्वारा गलती से
उडा दिए जाने पर हुई उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए दंगे के दौरान
कांग्रेस-कार्यालय से ५००० कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ‘कर्फ्यु पास’
निर्गत किये गए थे . जिसके सहारे वे ही लोग उस कत्लेआम को अंजाम देने में
बढ-चढ कर भाग लिए थे । जाने-माने मुस्लिम विद्वान असगर अलि इंजिनियर
द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘कम्युनल राइट्स इन पोस्ट इण्डिपेण्डेन्स
इंडिया’ में संकलित जे०एन०यु० के वामपंथी प्रोफेसर घनश्याम शाह के लेख
में कांग्रेस-प्रायोजित उस दंगे की कारण-मीमांसा विस्तार से की गई है ।
जबकि महात्मा गाँधी के सहयोगी रहे और सीमांत गाँधी के नाम से मशहूर- खान
अब्दुल गफ्फार खान जो उन्हीं दिनों पोरबंदर आये हुए थे और पूरे दस दिनों
तक वहीं उस दंगा में फंसे रहने के बाद पाकिस्तान वापस जाने से पहले
दिल्ली के राजघाट पर गए थे उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि के समक्ष रखी
‘अथिति-पुस्तिका’ में जो लिखा था सो आज भी देखा जा सकता है और उससे
कांग्रेस के दंगाई चरित्र को उजागर किया जा सकता है । सीमांत गांधी ने
लिखा है- “मैंने कांग्रेस-सरकार के द्वारा गुजरात मे कराए गए कत्लेआम को
अपनी आँखों से देखा है. मेरे विचार से अब कांग्रेस को महात्मा गाँधी का
नाम इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ।” बाद मे इंदिरा-सरकार ने गुजरात की
कांग्रेस पार्टी द्वारा उस कत्लेआम की जाँच के लिए जो कमेटी बनाई थी
उसने भी उस कत्लेआम के लिए गुजरात के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री
हितेंद्र भाई को दोषी माना और उनके उपर कड़ी कार्रवाई करने की सिपारिश की
थी.लेकिन इंदिरा गाँधी उसे मानने से इंकार कर दिया था । इंदिरा गांधी की
हत्या के उपरांत हुए कांग्रेस-प्रायोजित दंगा से तो पूरी दुनिया वाकिफ है
।
ऐसे दंगाई चरित्र के बावजूद कांग्रेस एवं उसके सहयोगियों का यह
गिरोह अत्यंत निर्लज्जतापूर्वक भाजपा और हिन्दू-संगठनों पर साम्प्रदायिक
दंगा-हिंसा व घृणा फैलाने की हेहरई-थेथरई करते रहता है । कायदे से देखा
जाए तो कांग्रेस और उसके दलों से ज्यादा साम्प्रदायिक इस देश में दूसरा
कोई नहीं है । क्योंकि इन दलों के नेतागण धर्मनिरपेक्षता के नाम पर
सम्प्रदाय-विशेष का अनुचित-अवांछित पक्षपोषंण खुलेआम करते रहते हैं ।
उनकी इस साम्प्रदायिकता के सैकडों प्रमाण देश भर में बिखरे पडे हैं ।
‘धर्मनिरपेक्षता’ के नाम पर इन दलों के द्वारा ही राजनीति में
साम्प्रदायिकता का विषवमन लगातार किया जाता रहा है । पिछले दिनों का
दिल्ली का जो अंजाम हुआ सो कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा
किये जाते रहे साम्प्रदायिक विषवमन का ही परिणाम है । नागरिकता संशोधन
कानून के विरुद्ध मुसलमानों को उकसाने-भडकाने व हिंसा के लिए प्रेरित
करने वाले एक से एक खतरनाक बायानों की बौछार करते रहने वाले इस गिरोह ने
जानबूझ कर भाजपा के एक मामूली नेता कपिल मिश्र के मामूली से एक बयान को
सुनियोजित तरीके से तुल दे कर पहले से तैयार दंगाइयों को खुनी खेल शुरु
कर देने के बावत हरी झण्डी दिखाने का काम ऐसी चतुराई से किया कि जहर
उगलने वाले पठानों-इमामों उपयुक्त मौका मिल गया । कपिल मिश्र ने यही तो
कहा था कि “ जाफ़राबाद और चांद बाग़ की सड़कें तीन दिनों में खाली कीजिए
... अब और नहीं होने देंगे शाहीनबाग ।” इसमें गलत या भडकाऊ जैसा तो कुछ
भी नहीं था । बावजूद इसके . नागरिकता-कानून-विरोधियों और
शाहीनबाग-मजमा-समर्थकों पर कार्रवाई की बात उठाने के बजाय कपिल के बयान पर आपत्ति जताये जाने में उस गिरोह के तमाम लोग जुट गए . तो उधर गुलेले बांध कर तैयार बैठे दंगाइयों का दल दिल्ली पर टूट पडा । बहरहाल दंगा तो
हो गया किन्तु दंगा कराने वाले गिरोह के ‘बयानबहादुर चोर’ उल्टे अब
‘कोतवाल’ को ही जो डांट लगा रहे हैं । ऐसे में भाजपा-नेतृत्व को चाहिए कि
वह इस उलटबांसी को उलट कर उन चोरों को बेनकाब करे ताकि दंगा-फसाद के करतब से अपनी सियासत चमकाते रहने वाले उस गिरोह के धूर्त्त मदारियों का
असली चेहरा पूरा देश देख सके ।
• फरवरी’२०२०
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