हिन्दू-मुसलमान के बजाय ‘ईमान’ का पैमाना अपनाएं


नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरुद्ध मोदी-भाजपा-सरकार के विपक्षियों
ने विरोध का जो तितण्डा खडा कर दिया है सो अब हिन्दू-मुस्लिम के
पारस्परिक विरोध का रुप लेता जा रहा है । इससे इस अधिनियम के
औचित्य-अनौचित्य विषयक स्वस्थ बौद्धिक बहस-विमर्श के स्वर शिथिल पडते जा
रहे हैं और उसके स्थान पर साम्प्रदायिक वाद-प्रतिवाद के विविध व्यंजन
मुखरित होते जा रहे हैं । चूंकि यह अधिनियम ही मजहब व धर्म के आधार पर
हुए देश-विभाजन से उत्पन्न हालातों के परिणामस्वरुप
अफगानिस्तान-पाकिस्तान व बांग्लादेश के इस्लामिक शासन से पीडित-प्रताडित
हिन्दुओं को त्राण देने के बावत उनकी खोई हुई भारतीय नागरिकता उन्हें
प्रदान करने के लिए निर्मित हुआ है इस कारण भी इसी आड में भाजपा-विरोधी
साम्प्रदायिक राजनीति की पोषक पार्टियों-संगठनों के नेता लोग मजहबी
भावनाओं की आग भडकाने और उस पर अपनी रोटी सेंकने की मशक्कत करते देखे जा
रहे हैं । विरोधियों में एक पक्ष ऐसा भी है जो ‘उल्टा चोर कोतवाल को
डांटे’ वाली लोकोक्ति को चरितार्थ कर रही है । जिस कांग्रेस ने मजहब व
धर्म के आधार पर देश का विभाजन किया- कराया और वर्षों-वर्षों तक देश में
साम्प्रदायिक तुष्टिकरण व धार्मिक भेदभाव फैलाने में कोई कसर बाकी नहीं
रखा वही कांग्रेस अब इस अधिनियम को ले कर इन दिनों भाजपा-मोदी-सरकार पर
देश को बांटने और देश के धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना को बिगाडने का आरोप लगा
रही है । इतना ही नहीं जिन कांग्रेसियों और समाजवादियों के शासन-काल में
अनेकानेक दंगा-फसाद उनके राजकीय संरक्षण में होते रहे वे तमाम लोग अब इस
अधिनियम को ले कर दंगाजनक हालात उत्पन्न करते हुए उल्टे भाजपा-सरकार पर
ही साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोपों से युक्त विषवमन करने में जुटे
हुए हैं । इस अधिनियम के विरुद्ध विरोध का वितण्डा खडा करने वाले ये वे
लोग हैं जो अपने कुकृयों को छिपाने के लिए ‘हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई’ का
नारा भी लगाते-लगवाते रहे हैं और आज भी ऐसा करते हुए देखे जा रहे हैं ।
मजहबी कट्टरता रोकने और धार्मिक सदभाव बढाने के लिए भाई-भाई का नारा
लगाना-लगवाना उचित भी है ; किन्तु मजहब व धर्म के आधार हुए विभाजन और उस
विभाजन के कारण उत्पन्न हालातों से निजात दिलाने के बावत भाजपा-सरकार
द्वारा लागू किए गए इस नागरिकता संशोधन अधिनियम की समीक्षा भी तो
‘भाई-भाई एक समान’ बताने वाले ईमान के आधार पर होनी चाहिए । लेकिन ऐसा
नारा लगाने वालों की रुचि इस नारा के अनुसार इस अधिनियम की सम्यक समीक्षा
करने में तनिक भी नहीं है । जबकि सच यह है कि
‘हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई आपस में सब भाई-भाई’ की नीति और सभी भाइयों
को एक समान मानने के ईमान की कसौटी पर अगर वे लोग इस अधिनियम की समीक्षा
करें तो फिर सारा विवाद ही समाप्त हो जाएगा ।
इसे महज एक उदाहरण से सहज ही समझा का सकता है । इस अधिनियम का
विरोध करने वाले सभी राजनीतिक दल और संगठन के नेता-कार्यकर्ता इस बात पर
सहमत हैं कि हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई सब आपस में भाई-भाई हैं । यह ठीक
है । किसी को यह मानने में कोई हर्ज नहीं है । अगर यह सत्य है तो यह भी
एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इन भाइयों के पास भारत नामक एक बहुत विशाल देश
हुआ करता था । कालान्तर बाद इनमें से एक भाई की मांग पर इस देश के चार
हिस्से कर दिए गए- अफगानिस्तान-पाकिस्तान-बांग्लादेश और शेष भारत । चारों
भाइयों में से एक भाई (मुस्लिम) ने देश के इन चार हिस्सों में से तीन
हिस्से (अफगानिस्तान-पाकिस्तान-बांग्लादेश) अपने कब्जे में ले लिया तथा
वहां से शेष भाइयों के परिवारों को मार-पीट कर भगा दिया एवं उनके
बचे-खुचे लोगों को प्रताडित करता रहा और इधर चौथे हिस्से (शेष भारत) में
भी बराबरी का दावेदार बना रहा । आज भी बना हुआ है । कालान्तर बाद उस तीन
हिस्से पर पूर्ण रुप से काबिज और चौथे हिस्से (शेष भारत) में बराबरी के
दावेदार मुस्लिम भाई का अब कहना यह है कि जो तीन हिस्से हम ले रखे हैं
उनमें से अन्य भाइयों ( हिन्दू-सिक्ख-ईसाई) को वहां से मार-मार कर भगाते
रहेंगे ; परंतु हम जिनको मार-पीट कर भगा रहे हैं या जिन्हें
पीडित-प्रताडित कर रहे हैं वे भागकर अगर शेष बची मुख्य भूमि (भारत) पर आ
जाएं तो आप उन्हें यहां मत रहने दीजिए अर्थात यहां की नागरिकता मत दीजिए
। और अगर आप हमारे हाथों पीडित-प्रताडित हुए उन लोगों को इस मुख्य भूमि
(भारत) पर रहने का हक (नागरिकता) दे रहे हैं तो हमारे कब्जे के उन तीनों
हिस्सों की भूमि पर अन्य भाइयों के प्रति अत्याचार बरपा रहे हमारे लोगों
को भी दुबारा यहां आ बसने का अधिकार दीजिए । ऐसे में कोई यह कैसे कह सकता
है कि एक भाई की यह मांग उचित है और शेष भाइयों के प्रति अन्याय नहीं है
? हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई आपस में जब भाई-भाई हैं और जो मुस्लिम भाई
बहुत पहले ही बंटवारा करा तीन हिस्सों पर बलपूर्वक काबीज हो चुका है उसी
को अगर फिर इस बचे-खुचे भू-भाग ला बसाने की मांग यहां के नेता-नियन्ता यह
कहते हुए कर रहे हैं कि सभी एक समान हैं तो उनके इस कथ्य में समानता का
तथ्य तो दीया जला कर ढूंढने से भी नहीं मिलता । चार भाइयों में से एक भाई
का ऐसा दावा करना और नेताओं द्वारा उस दावे का समर्थन करना अथवा इस बावत
उन्हें उकसाते रहना तो ‘ईमान’ के विरुद्ध सरासर बेईमानी है । अतएव
नागरिकता संशोधन अधिनियम की समीक्षा हिन्दू-मुसलमान के नजरिये से करने के
बजाय ‘बाईमान’ (ईमान के अनुसार) और ‘बेईमान’ (बिना ईमान के) के पैमाने पर
किया जाना ही न्यायोचित है । किसी एक भाई की नाजायज मांग को हठपूर्वक
मनवाने से सभी भाइयों के बीच वास्तविक एकता कतई नहीं स्थापित होगी ।
हिन्दू-मुसलमान दोनों के परस्पर भाई होने का दावा करने वालों को भाइयों
के बीच ‘ईमान’ भी स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए । अन्यथा भाई-भाई का
नारा लगाते-लगवाते तो यह देश कई टुकडों में बंट चुका । अब भी अगर केवल
‘हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई’ का कोरा आदर्श ही अपनाया जाएगा और ‘ईमान’
स्थापित नहीं किया जाएगा तो विभाजन की पुनरावृति को रोका नहीं जा सकता है
। नागरिकता संशोधन अधिनियम सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए
हिंसक विरोध कर रहे राजनेताओं को यह समझना चाहिए कि जब देश रहेगा तभी
उनकी राजनीति भी चमकेगी अन्यथा जब देश ही फिर कोई ‘इस्तान’ बन जाएगा तब
उनकी राजनीति भी बेमौत मर जाएगी ।
• जनवरी’ २०२०