सियासत की चुनावी जंग में नैतिकता का महाभारत-प्रसंग


महाराष्ट्र में सरकार के गठन-विघटन को ले कर पिछले एक पखवाडे से चल
रही सियासी जंग की पैतरेबाजियां अब नैतिकता बनाम अनैतिकता की बहस में
तब्दील हो गई हैं । सरकार बनाने को ले कर एक पक्ष में पक रही खिंचडी
दूसरे पक्ष की खीर में तब्दील हो गई । मुम्बई के ‘मातोश्री’ की रसोई
में बैठी शिव सेना के साथ कांग्रेस की अम्मा जिस राकांपा की हांडी में
खिंचडी पकाने की मशक्कत करती दिख रही थी उसी हांडी में दूध-शक्कर डाल कर
भाजपा अपनी खीर पका लेने में सफल हो गई । अब आनन-फानन में पकी उस खीर का
इस बावत केवल परीक्षण होना बाकी है कि उसमें खिंचडी की तिक्ष्णता के
मुकाबले दूध-शक्कर के मिश्रण से उत्त्पन्न मिठास की मत्रा पर्याप्त है या
अपर्याप्त । ऐसा समझा जा रहा है कि राजनीतिक पाक-कला में निपुण एक से एक
निष्णात विशेषज्ञों से भरी भाजपा और उसके देवेन्द्र फडणविश नामक ‘मराठी
मानुष’ के हाथों अंधेरी रात में पकी उस खीर की इस गुणवत्ता-गुणात्मकता व
वैधानिकता को बहुमत से पर्याप्त एवं वैधानिक प्रमाणित करा लेना ‘टेंढी
खीर’ कतई नहीं है । तभी तो उसके विरोधियों द्वारा उसे बहुमत की चुनौती
देने के बजाय नैतिकता के सवालों से घेरा जा रहा है । कांग्रेस व शिव सेना
द्वारा जिस राकांपा के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया जा रहा था
उसी राकांपा के विधायकों की लिखित सहमति से भाजपा द्वारा चुपचाप सरकार
बना लिए जाने की उसकी राजनीतिक चतुराई को अब ये लोग अनैतिक सिद्ध करने
में लगे हुए हैं । ये वे लोग हैं जो भाजपा को सत्तासीन होने से रोकने और
स्वयं सत्तारूढ होने के लिए चुनाव के बाद उत्पन्न मजबुरी में परस्पर
गठबन्धन कायम किये हुए हैं । चुनाव के दौरान तो शिव सेना भाजपा से गठजोड
कर इन दोनों ही कांग्रेस-दलों के विरुद्ध लड रही थी । पखवाडा भर पहले तक
ये दोनों ही दल भाजपा के साथ-साथ शिव सेना को भी घोर साम्प्रदायिक बता
रहे थे और खुद को धर्मनिरपेक्षता का बडा झण्डाबरदार सिद्ध करने में लगे
हुए थे । चुनाव-परिणाम प्रतिकूल आने के बाद ये दोनों कांग्रेस-दल भाजपा
को सातासीन होने से रोकने और स्वयं सत्तारूढ होने के लिए उसी शिव सेना को
धर्मनिरपेक्ष मान उसकी तिमारदारी में जुट गए जिसे बाबरी-ढांचा ढाहने का
समर्थन करने के कारण साम्प्रदायिक व अनैतिक मान अछूत समझते रहे थे । और
बाबरी-ध्वंस पर सार्वजनिक रुप से गर्व का इजहार कर चुकी उस शिव सेना को
तो देखिए जो कल तक जिनसे दो-दो हाथ करने में लगी हुई थी उन्हीं से आज हाथ
मिला रही है । इन तीनों ही दलों का यह अवसरवाद इनके नेताओं के अनुसार
कहीं से भी निन्दनीय नहीं है । किन्तु भाजपा ने अब अपने गठजोड से शिवसेना
को अलविदा करते हुए राकांपा के विधायकों की लिखित सहमति से सरकार बना
लिया तब इन्हें उसका ऐसा करना अनैतिक प्रतीत हो रहा है । भाजपा के इस
कृत्य को कांग्रेस-नेता राहुल गांधी “महाराष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या”
बता रहे हैं तो शिव सेना का बयान है कि “भाजपा अवसरवादी पार्टी है, उसने
पीठ में छुरा घोंपा है, जो लोकतंत्र के लिए दुखद है” । इन दोनों ही दलों
के बयान ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ जैसी लोकोक्ति की याद दिलाने वाले
हैं । चुनाव में सबसे अधिक सीटें हासिल करने के कारण सरकार बनाने का
स्पष्ट जनादेश भाजपा-जठजोड को ही मिला यह जगजाहिर है । चुनाव बाद उस
गठजोड से शिव सेना के अलग हो जाने के बावजूद चूंकि सबसे अधिक विधायकों
वाली पार्टी भाजपा ही है इस कारण सरकार के गठन का जनादेश तो अभी भी उसी
के पास है जिसके बावत वह प्रयत्नशील रही और उसकी वह प्रयत्नशीलता
राकांपा-विधायकों का समर्थन पा कर सिरे चढ गई । इसमें लोकतंत्र की
हत्या जैसी तो कहीं कोई बात नहीं है । थोडी अवसरवादिता जरूर दिखती है कि
जिस राकांपा के विरुद्ध चुनाव लडी भाजपा उसी के विधायकों से अब समर्थन ले
रही है । किन्तु ऐसी अवसरवादिता का आरोप लगाने का हक उस शिवसेना को तो
कतई नहीं है जो स्वयं महज मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पुरानी साथी-सहयोगी
भाजपा का साथ छोड कर धूर विरोधी कांग्रेस तक से हांथ मिला रही है । सच तो
यह है कि भाजपा को ऐसा करने के लिए शिव सेना के द्वारा ही विवश किया गया
। किन्तु इससे भी बडा सच यह है कि महाराष्ट्र के महाराष्ट्र की मौजूदा
सियासी जंग के मूल में वह कांग्रेस है जिसकी नेता सोनिया गांधी की कथित
विदेशी नागरिकता का विरोध कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) बना
चुके शरद पवार अब उनके खास सिपहसालार हैं । इन दोनों कांग्रेस-दलों की यह
अनैतिक अवसरवादितापूर्ण मित्रता वस्तुतः भाजपा की राह रोकने के लिए कायम
हुई है । कितु अब ये सब लोग सियासी शह-मात के खेल में भाजपा के इस दांव
को अनैतिक बता रहे हैं और नैतिकता बघारते दिख रहे हैं तो उन्हें मालूम
होना चाहिए हमारे नीतिशास्त्रों में नैतिकता का पालन केवल नीतिवानों के
लिए ही किए जाने की बात कही गई है । न केवल कही गई है बल्कि तदनुसार की
भी गई है । रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा छिप कर बाली
पर बाण चलाने के बाद बाली भी ऐसी ही नैतिकता की दुहाई देते हुए
श्रीराम की उस रणनीति को अनुचित करार दिया था । तब श्रीराम ने उसे याद
दिलाया था कि जिसने अपने भाई का राज्य हडप लिया और उसकी पत्नी तक को छीन
लिया उसे अपनी मृत्यु सम्मुख देख नैतिकता की बात करना सिवय पाखण्ड के और
कुछ नहीं है । महाभारत में भी नैतिकता का एक ऐसा ही प्रसंग देखने-पढने
को मिलता है । युद्ध की समाप्ति के बाद बाणों की शैय्या पर पडे-पडे
मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे भीष्म ने कृष्ण से कहा था कि जिस प्रकार
से मुझे तथा गुरु द्रोण को और कर्ण व दुर्योधन को छलपूर्वक हराया गया सो
बिल्कुल अनैतिक हुआ । तब कृष्ण का उत्तर था कि आप अपनी प्रतिज्ञा की डोर
से बंधे हुए हस्तिनापुर सिंहासन के साथ खड़े रहकर कौरवों द्वारा भीम को
विष देने पर,लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का षड्यंत्र रचने पर,
द्यूतक्रीड़ा में छल से पांडवों का सब कुछ छीन लिए जाने पर तथा कुलवधू
द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित किए जाने पर . पांडवों को जबरन
अज्ञातवास भेजे जाने पर और अभिमन्यु को घेर कर मारे जाने पर चूंकि आप
स्वयं पहले नैतिकता की अवहेलना करते रहे . उन्ही कौरवों के संग खड़े रहे,
अपनी प्रतिज्ञा से बंधे होने के कारण आप युद्ध भी कौरवों की ओर से किये
तब ऐसे में नैतिकता के पालन की जिम्मेवारी केवल पाण्डवों की नहीं हो सकती
। नैतिकता-युक्त व्यवहार तो नीतिवानों से ही किया जा सकता है । ये दोनों
उदाहरण तो क्रमशः द्वापर व त्रेता युग के युग हैं ।
वर्तमान कलयुगी व्यवहार में भी देखा जाए तो व्यवहार में भी नैतिकता के
एकतरफा पालन से पूरी राजनीति ही अनैतिक हो जाती है । कभी हमारे ही देश
में पृथ्वीराज चौहान ने आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को चौदह युद्धों में
पराजित कर बंदी बनाते रहने के बावजूद हर बार नैतिकता का पालन करते हुए
उसके क्षमा मांगने पर उसे छोड़ दिया था । उस एकतरफा नैतिकता का परिणाम
पन्द्रहवीं बार में क्या हुआ सो हम सभी जानते हैं । अटल बिहारी वाजपेई
को भी नैतिकता का पालन करते हुए मात्र एक वोट से अपनी सरकार गिरते हुए
देखा गया था । अब आज की भाजपा बाजपेयी जी के जमाने वाली भाजपा नहीं है।
गैर-भाजपाइयों को यह तथ्य जान-समझ कर कर ही नैतिकता की दुहाई देनी चाहिए अन्यथा वे इस जुबानी जंग में भी भाजपा के मुकाबले पराभव को ही प्राप्त
होंगे ।
• नवम्बर’२०१९