‘खलिफात’ के लिए खिलाफत आन्दोलन करने वाली . कांग्रेस की मौजुदा
सियासत का अनावरण
भारतीय संसद से पारित ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ (सी ए ए ) एवं
राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एन आर सी) को ले कर कांग्रेस ने देश भर में जो
बवाल खडा कर रखा है सो सन १९१९-१९२० के उसके ‘खिलाफत आन्दोलन’ से
मिलता-जुलता एक ऐसा आन्दोलन है . जिसकी पडताल करने से झूठ पर आधारित
कांग्रेसी सियासत की पोल खुल जाती है । जी हां ! असली उद्देश्य को छिपाते
हुए नकली उद्देश्य ले कर झूठ-भ्रम व दंगा-फसाद के सहारे जन-भावनाओं को
उभार कर अपनी सियासत चमकाते रहना कांग्रेस का पुराना शगल रहा है । इसका
सबसे बडा ऐतिहासिक उदाहरण है ‘खिलाफत आन्दोलन’ और उसकी आंशिक पुनरावृति
है नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिकता पंजी के विरुद्ध जारी
कांग्रेसी प्रदर्शन । कांग्रेस का खिलाफत आन्दोलन कहने को तो अंग्रेजी
शासन के विरुद्ध एक प्रकार का भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन था जबकि वास्तव
में वह तो मुस्लिम साम्राज्य (तुर्की) के खलिफा की खोई हुई इस्लामी
खलिफात (हुकूमत) को पुनः बहाल करने के लिए किया गया आन्दोलन था । उससे
भारतीय जनता या यों कहिए कि भारतीय मुसलमानों का भी ठीक इसी प्रकार कोई
नफा-नुकसान कतई नहीं था जिस प्रकार इस नागरिकता संशोधन अधिनियम और
राष्ट्रीय नागरिकता पंजी से भी भारत के किसी नागरिक का कोई लेना-देना
नहीं है । तब तुर्की जैसे समूचे इस्लामिक अरब राज्यों के मुसलमान
इत्मीनान फरमा रहे थे और खलिफा की खलिफात बहाल करने के लिए कांग्रेस के
नेतृत्व में भारत के मुसलमान हाय-तौबा मचा रहे थे । आज भी कमोबेस वही
स्थिति है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान-बांग्लादेश के मुसलमान तो शांत हैं .
लेकिन भारत के मुसलमान उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने के लिए कांग्रेस के
बहकावे में आ कर संडकों पर उतर आये । जाहिर है- कांग्रेस उन्हें बरगलाने
और बहकाने-भडकाने में लगी हुई है । जबकि वास्तविक तथ्य कुछ और है ।
नागरिकता संशोधन अधिनियम से भारत का कोई भी मुस्लिम नागरिक किसी भी तरह
से प्रभावित नहीं हो सकता है । यह तो मुस्लिम देशों
(अफगानिस्तान-पाकिस्तान-बांग्लादेश) के पीडित-प्रताडित गैर-मुस्लिमों को
भारतीय नागरिकता देने वला कानून है । इसी तरह से राष्ट्रीय नागरिकता पंजी
(एन सी आर) भारतीय नागरिकों की पहचान कर अभारतीय अवैध नागरिकों के
निष्कासन की व्यवस्था से सम्बन्धित है । लेकिन कांग्रेस का कथ्य
मुसलमानों को इस सत्य से दूर करने वाला है । वह एक ही लकीर पीट रही है कि
यह कानून मजहब व धर्म के आधार पर अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश के
मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता से वंचित करता है । उसके पास इस प्रश्न का
कोई उत्तर नहीं है कि इन तीनों देशों का अस्तित्व ही मजहब के आधार पर
क्यों कायम है तथा भारत से ही अलग हुए इन तीनों देशों का शासन इस्लामी
क्यों है एवं वहां गैर-मुस्लिमों के प्रति शासनिक भेदभाव क्यों होते रहा
है और ऐसे में उन पीडितों-प्रताडितों को उनके धर्म के आधार भारतीय
नागरिकता देना अनुचित कैसे है ? मजहब व धर्म के आधार पर देश का विभाजन कर
चुकी कांग्रेस को तो इस कानून के विरोध का कोई नैतिक अधिकार ही नहीं है.
क्योंकि उसी की विभाजक नीतियों-करतूतों के कारण उन तीनों देशों में
गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता से वंचित और पीडित-प्रताडित होना पडा
है । ऐसे पीडितों-प्रताडितों को उनकी खोई हुई स्वाभाविक भारतीय नागरिकता
उन्हें मिलनी ही चाहिए और विदेशी घुसपैठियों व अवैध नागरिकों की पहचान कर
उनका निष्कासन भी होना ही चाहिए ; यह इस देश का एक सामान्य नागरिक भी समझ
रहा है । बावजूद इसके इस सत्य पर पर्दा डाल कर कांग्रेस असत्य का आडम्बर
खडा कर विरोध का वितण्डा फैलाने में लगी हुई है । अपनी सियासत चमकाने के
लिए कांग्रेस पहले भी राष्ट्र-विरोधी राजनीति को अंजाम देती रही है .
किन्तु ऐसी चालाकी से कि लोग उसे भी राष्ट्र-हितकारी समझते रहे है ।
इतिहास में कांग्रेस की ऐसी राष्ट्र-विरोधी करतूतों के उदाहरण भरे-पडे
हैं । प्रसिद्ध खिलाफत आन्दोलन भी उनमें से एक है . जिसकी आंशिक
पुनरावृति इन दिनों नागरिकता संशोधन अधिनियम एवं राष्ट्रीय नागरिकता पंजी
के विरोध में देखी जा रही है ।
इतिहास की किताबों में यह जो पढा-पढाया जाता है कि कांग्रेस ने
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए सन १९१९-२० से ले कर
१९२५-२६ तक एक जबर्दस्त ‘खिलाफत आनदोलन’ चलाया था. सो तो असल में इस्लामी
साम्राज्य के वैश्विक खलिफा की हुकूमत (खलिफात) पुनर्बहाल करने के लिए
किया गया ‘खलिफात आन्दोलन’ था . जिसका सम्बन्ध भारत की स्वतंत्रता से
दूर-दूर तक भी नहीं था । मालूम हो कि दुनिया भर के मुसलमान और मुस्लिम
शासक जिस तुर्की के खलिफा को अपना ‘मजहबी सुल्तान’ मानते रहे थे . उस पर
अंग्रेजों ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कब्जा कर लिया था और वहां के
खलिफा (अब्दुल हमीद) को अपदस्थ कर मुस्तफा कमाल पाशा को सत्तासीन करते
हुए सैकडों साल पुरानी वैश्विक ‘खलिफात व्यवस्था’ व इस्लामी मान्यता को
ही समाप्त कर दिया था । तुर्की के खलिफा की खलिफात खाक में मिल जाने को
दुनिया भर के मुसलमानों ने अपना मजहबी अपमान समझा. लेकिन तुर्की राज्य के
भीतर उसका कोई विरोध नहीं हुआ; क्योंकि मुस्तफा कमाल पाशा वहां का
सर्वमान्य नेता था । बावजूद इसके उस खलिफात की पुनर्बहाली के लिए भारत
में कांग्रेस ने मौलाना मोहम्मद अली व मौलाना शौकत अली के माध्यम से यहां
के मुसलमानों की मजहबी भावनायें उभार कर एक जबर्दस्त आन्दोलन चलाया जिसे
उसने ‘खलिफात’ शब्द में मामूली हेर-फेर कर ‘खिलाफत’ नाम दे कर यह
प्रचारित किया कि यह आन्दोलन अंग्रेजी शासन के खिलाफ है । कांग्रेस
द्वारा फैलाये गए इस भ्रम व झूठ को नहीं समझ पाने के कारण मुसलमानों से
भी अधिक भारी संख्या में हिन्दुओं ने भी बढ-चढ कर भाग लिया । किन्तु
जाहिर है कि इतिहास में प्रसिद्ध उस खिलाफत आन्दोलन के भीतर का एजेण्डा
खलिफात की पुनर्बहाली था । इसी कारण तब के राष्ट्रवादी कांग्रेसी नेता
मोहम्मद अली जिन्ना ने उस ‘खिलाफत आन्दोलन’ का घोर विरोध किया था और इसे
‘झूठे मजहबी उन्माद’ बताते हुए मुस्लिम लीग के दिल्ली अधिवेशन (१९१८) में
चेतावनी दी थी कि “यह आन्दोलन भारतीय समाज को विभाजित कर देने की
सम्भावनाओं से युक्त है” । उन दिनों के प्रख्यात पत्रकार दुर्गादास के
शब्दों में “जिन्ना इस बात पर आश्चर्य चकित थे कि हिन्दू कांग्रेसियों ने
इस तथ्य को नहीं समझा कि यह आन्दोलन सर्वइस्लामिक (पैन इस्लामिक) भावनाओं
को प्रोत्साहित करेगा और भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रीयता को कमजोर
करेगा” । यहां उल्लेखनीय है कि उन्हीं दिनों कमाल पाशा के नेतृत्व में
तुर्की के मुसलमान ‘खलिफात’ नामक उक्त मजहबी संस्था-व्यवस्था को ही
समाप्त कर देने का आन्दोलन चला रहे थे. लेकिन भारत में कांग्रेस यहां के
मुसलमानों को बरगला कर ‘खलिफात’ की पुनर्बहाली का आन्दोलन चला रही थी ।
हॉलाकि उस आन्दोलन से मुसलमानों को तो कुछ नहीं मिला. किन्तु कुछ नहीं
मिलने से उत्पन्न उनकी खीझ के कारण मोपला (केरल) आदि स्थानों भर भीषण
दंगे जरूर हुए जिसकी भारी कीमत लाखों हिन्दुओं को चुकानी पडी । अंततः
तुर्की में लोकतंत्र की स्थापना हो जाने के बाद कांग्रेस ने उस आन्दोलन
को स्थगित कर दिया. किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी । भारतीय मुसलमानों
में अलगाव का बीजारोपण हो चुका था. जो बाद में भारत विभाजन के तौर पर
फलित हुआ । प्रसिद्ध इतिहासकार कांजी द्वारकादास की पुस्तक- ‘इण्डियाज
फाइट फॉर फ्रीडम स्ट्रगल’ के अनुसार वर्षों बाद बंगाल के गवर्नर- रिचर्ड
कैसी को दिए एक साक्षात्कार में महात्मा गांधी ने स्वीकार किया था कि
“जिन्ना ने हम से कहा था कि हमने ढेर सारे हानिकारक तत्वों को सामाजिक
जीवन में ऊपर उठाते हुए राजनीतिक ख्याति दिला कर भारतीय राजनीति को तबाह करने का काम किया है और यह भी कि राजनीति को मजहब के साथ मिलाना एक अपराध था. जैसा कि हमने किया ।” आज एक सौ साल बाद कांग्रेस फिर उसी तरह की सियासत करती दिख रही है ।
• दिसम्बर’ २०१९
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