सावधान ! करवट ले रहा है भारत राष्ट्र भाईजान !!


भारत की संसद से नागरिकता (संशोधन) विधेयक- २०१९ का पारित हो जाना
एवं हमारे राष्ट्रपति के हाथों कानून बन जाना कोई सामान्य घटना नहीं है ।
यह दुनिया के एक सनातन राष्ट्र के इतिहास की राजनीतिक अधोगति और
चिर-पुरातन देश के भूगोल की ऐतिहासिक त्रासदी को सुधारने का एक राष्ट्रीय
सरंजाम है । ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और कांग्रेस नामक तत्कालीन राजनीतिक
संगठन की विभाजनकारी दुरभिसंधि ने भारत-भू की सभ्यता के इतिहास को भूगोल
में परिवर्तित कर देने तथा इस देश के भूगोल को रक्तरंजित इतिहास बना
देने और करोडों भारतीयों को भारत की नागरिकता से वंचित कर देने का जो
दुष्कर्म किया था उसका पाप अब इस विधेयक से धुलता हुआ प्रतीत हो रहा है ।
मालूम हो कि प्राकृतिक प्रायद्वीप कहे जाने वाले भारत के कृत्रिम
विखण्डन को अंजाम देने से उन भारतीय भू-भागों पर आज दो पृथक इस्लामी देश
का आकार खडा दिख रहा है जहां के अधिकतर क्षेत्रों में विभाजन या
पाकिस्तान-सृजन की मांग उठी ही नहीं थी । इसी तरह से आज के पाकिस्तान में
वहां के इस्लामी शासन के क्रूर कारनामों की मार से मरते-मिटते
घटते-सिमटते बचे-खुचे जिन लाखों हिन्दुओं का आज वहां जीवन जीना दुभर हो
गया है उनके करोडों पूर्वजों को उनकी जन्मजात भारतीय नागरिकता से वंचित
कर उन्हें रातोंरात पाकिस्तान का नागरिक जबरिया बना देने का गर्हित काम
भी कांग्रेस ने ही किया था । देश-विभाजन के दौरान दोनों देशों की आबादी
के स्थानान्तरण का विकल्प ठुकराते हुए कंग्रेस के नेताओं ने उन तमाम
लोगों को पकिस्तान की सीमा से बाहर निकलने अर्थात भारत आने से मना करते
हुए यह आश्वस्त किया था कि जो जहां है वहीं रहे. कहीं की भी सरकार किसी
के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगी. सबको समान सुरक्षा व समान अधिकार प्राप्त
होंगे । उधर पाकिस्तान में भी उसके जनक जिन्ना की ओर से यह घोषणा की गई
थी कि धर्म-सम्प्रदाय के आधार पर किसी भी समुदाय के साथ किसी भी तरह का
कोई शासनिक भेद-भाव नहीं किया जाएगा । फलतः जो लोग मजहबी आकार ले चुके उस
नवसृजित संप्रभू राज्य की सीमा से बाहर निकल भारत आना चाहते थे. जिनकी
संख्या तब ढाई करोड के आस-पास थी. सो सब लोग जिन्ना-जवाहर की बातों पर
भरोसा कर वहीं रह गए । जिन्ना द्वारा योगेन्द्रनाथ मण्डल को पाकिस्तान का
पहला कानून मंत्री बनाये जाने के बाद लोगों का वह भरोसा थोडा पुष्ट भी
हुआ था । हालाकि उन्हें यह बात जरूर साल रही थी कि जब आबादी का
स्थानान्तरण होना ही नहीं और देश-विभाजन की मांग उनकी ओर से हुई ही नहीं
तब पाकिस्तान बनाया ही क्यों ? किन्तु जिन्ना के मरते ही लीगियों ने
गौर-मुसलमानों अर्थात हिन्दुओं पर हमले कर-कर के कायदे आजम की उपरोक्त
घोषणा की धज्जियां उडानी शुरु कर दी । हालात ऐसे हिन्दू-विरोधी हो गए कि
कानून मंत्री योगेन्द्रनाथ मण्डल को भी मंत्री-पद से इस्तीफा दे कर अपनी
जान बचाने के लिए पाकिस्तान की सीमा से बाहर निकल भाग भारत में ही शरण
लेनी पडी । बीतते समय के साथ इधर भारत में मुसलमानों की राजनीतिक स्थिति
तो बेहतर होती गई. मगर उधर पाकिस्तान में हिन्दुओं की हालात बद से बद से
बदत्तर होती रही । उनके धर्म पर मुसलमानों के मजहब का आतंक-अत्याचार
इस्लामी-पाकिस्तानी शासन का संरक्षण पा कर इस कदर बढता गया कि उस मुल्क
में हिन्दू रह कर जीना और मरना दोनों दुष्वार हो गया । उन्हें एक ओर
जीवन-यापन की मूलभूत सुविधाओं व मानवाधिकारों तक से वंचित किया जाने लगा.
तो दूसरी ओर मृत्यु-श्राद्ध-सम्बन्धी उनके धार्मिक संस्कारों पर भी
पाबंदी लगायी जाती रही । हिन्दू और मुस्लिम दोनों के लिए अलग-अलग ऐसे-ऐसे
विभेदकारी कानून भी लागू किये गए कि हिन्दू होना ही अपराध सा हो गया ।
इस्लामी शासन के संरक्षण में होते रहे चौतरफा दमन के कारण वहां की
हिन्दू आबादी घटती-मिटती व धर्मान्तरित होती हुई सिमटते-सिमटते २४% से घट
कर महज २% हो गई । लेकिन ऐसे में भी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता
अधिनियम और मानवाधिकार-कानूनों की वकालत करते रहने वाली विश्विक शक्तियों
की कौन कहे. अपने भारत की पूर्ववर्ती सरकारें भी भारत के ही उन
‘स्वाभाविक नागरिकों’ की. जो सन १९४७ में भारत की कांग्रेसी सरकार के
द्वारा ही रातोंरात पाकिस्तानी नागरिक बना दिए गए थे उनकी सुध लेने से
कतराती रही । प्रायः सभी गैर-भाजपाई पार्टियां और उनकी सरकारें पाकिस्तान
के अल्पसंख्यक हिन्दुओं की ही नहीं. बल्कि भारत के बहुसंख्यक हिन्दू-समाज
की भी उपेक्षा करते हुए अपना-अपना वोट-बैंक बनाने-भुनाने के लिए
मुसलमानों का तुष्टिकरण करने में लगी रहीं । आतंक बरपाने की जिहादी योजना
से भारत आते रहे पाकिस्तानी मुसलमानों को तो भारतीय नागरिकता जैसे-तैसे
दी जाती रही. किन्तु पाकिस्तानी आतंक-अत्याचार का शिकार हो कर शरण लेने
भारत आने वाले उन हिन्दुओं को. जिनने और जिनके पूर्वजों ने पाकिस्तान की
मांग कभी की ही नहीं थी उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने से भी हमारी
सरकारें इंकार करती रही थीं । इससे बडी त्रासदपूर्ण विडम्बना क्या हो
सकती कि दुनिया भर के मुस्लिम देशों से भी बहिष्कृत और आतंक-जिहाद के लिए
कुप्रसिद्ध रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में नागरिक बतौर बसाने की वकालत
और धर्म व मजहब के नाम पर देश-विभाजन की सियासत करने वाली जिस कांग्रेस
ने सन १९४७ में जिन करोडों हिन्दुओं को बाजबरन पाकिस्तानी बना कर संकटों
में डाल दिया. उसे ही उन पीडित-प्रताडित अभागे लोगों को उनकी भारतीय
नागरिकता का उनका स्वाभाविक अधिकार लौटाने वाला नागरिकता संशोधन कानून
(कैब-२०१९) मंजूर नहीं है । कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का यह रुख
भारत की राष्ट्रीयता के विरुद्ध है. क्योंकि सनातन धर्म ही भारत की
राष्ट्रीयता है । दुनिया के तमाम मजहबों का जन्म होने के पहले से ही भारत
एक सनातनधर्मी राष्ट्र रहा है और इस नाते इसे धारण करने वाले ‘हिन्दू’
भारत के मूल नागरिक हैं । इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है और इस
कठोर सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता है कि कांग्रेस ने धर्म व मजहब के
आधार पर देश का विभाजन किया तो जाहिर है कि भारत में ही रह रहे मुसलमान
भाईजान नवगठित मजहबी देश पाकिस्तान एवं उससे विखण्डित हो कर बने
बंग्लादेश में जायें अथवा न जायें यह तो बेतुकी बात है अब. किन्तु विभाजन
के वक्त नवगठित पाकिस्तान में ही गए वहां के अवशेष हिन्दू भारत के
‘स्वाभाविक नागरिक’ अवश्य हैं. यह एक प्राकृतिक सत्य है । भारतीय
राष्ट्रीयता की इस सच्चाई को कांग्रेसियों-कम्युनिष्टों-सेक्युलरिष्टों
द्वारा आज तक झुठलाया जाता रहा है । किन्तु इस झूठ के दिन अब लद चुके हैं
। महज शासनिक सत्ता पाने के लिए देश का विभाजन कर देने की गुनाहगार
कांग्रेस एवं उसके वर्तमान सहयोगी दलों को उनके किये कर्मों का आईना भारत
के इतिहास व भूगोल में टंगा हुआ दिख रहा है. जिससे मौजुदा भारतीय राजनीति
को ललकारपूर्ण चुनौती मिल रही है और कदाचित आगे की राजनीतिक दशा-दिशा का
निर्धारण भी हो रहा है । नागरिकता (संशोधन) कानून लागू हो जाने से ऐसा
प्रतीत हो रहा है कि वर्षों से सोयी हुई या यों कहिए कि सुलायी गई
भारतीय राष्ट्रीयता अब स्वतंत्रता-आन्दोलन के ऋषियों-मनीषियों अर्थात
महर्षि अरविन्द व श्रीराम शर्मा आचार्य की भविष्योक्तियों के अनुसार
निर्दिष्ट समय पर एकबारगी जाग उठी है और यह सनातन राष्ट्र अब करवट फेर
रहा है । ऐसे में भारतीय नागरिकता की मौलिकता को विस्तारित करने एवं
भारतीय राष्ट्रीयता की सनातनता को पुनर्स्थापित करने वाले इस कानून के
विरोधियों को सावधान हो जाना चाहिए और गम्भीरतापूर्वक यह सोचना चाहिए कि
आखिर वे चाहते क्या है ? भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता का वास्ता
भारतीय जनता के प्रति तो इस नये कानून में भी है ही । किन्तु जिन इस्लामी
देशों की सरकारें और वहां की मुस्लिम जनता गैर-मुस्लिमों (विशेषकर
हिन्दुओं) के प्रति असहिष्णु व अनुदार रही हैं उन देशों के उन जिहादियों
को भारतीय नागरिकता प्रदान करने में धर्मनिरपेक्षता आखिर क्यों अपनायी
जाए ? और फिर पाकिस्तान व बांग्लादेश के मुसलमानों के लिए भी भारतीय
नागरिकता के द्वार अगर खोल दिए जांए तब क्या इन दोनों देशों के पृथक
अस्तित्व का औचित्य ही सवालों के घेरे में नहीं आ जाएगा ? फिर तो अभी
करवट ले रहा यह राष्ट्र तब अपनी पुरातन अखण्डता की ओर भी अग्रसर हो उठेगा ।
• दिसम्बर’ २०१९