हिन्दी साहित्य के एक जाने माने कवि हरिवंश राय बच्चन के एक सुपुत्र
फिल्मी दुनिया के ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने अभी हाल ही में एक बहुचर्चित
सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान यह कहा है कि उनका कोई धर्म नहीं है वे
केवल भारतीय हैं । ये वही अभिनेता हैं जो अपनी हर फिल्म को बाजार में
लाने से पहले सनातन वैदिक हिन्दू-रीति-रिवाज के अनुसार उसकी सफलता के
निमित्त किसी न किसी मन्दिर-देवालय में तत्सम्बन्धी सगुण अभिषेक या पूजा
करते-कराते रहे हैं । इतना ही नहीं अपने बेटे-बेटी का विवाह सनातन
विधि-विधान के अनुसार कर चुके हैं और जब भी किसी बडे संकट में पडते हैं
तब सनातनधर्मियों से पूजित संकटमोचन हनुमान या सिद्धिविनायक गणेश अथवा
तिरुपति बालाजी की शरण में दण्डवत करने पहुंच जाया करते हैं । और तो और
अपने फिल्मी कारोबार में कभी आई हुई मंदी के दुर्दिन से उबरने के लिए भी
सनातन धर्म की नैय्या पर सवार होते रहे हैं । प्रयागराज अवस्थित बाघम्बरी
मठ के महंथ और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेंद्र गिरि
बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन हनुमान जी के ऐसे परम भक्त थे कि वे हर
शनिवार व मंगलवार को अपने दोनों पुत्रों अमिताभ और अजिताभ को साथ ले कर
इस मंदिर में जरूर आया करते थे । उस दौरान हरिवंश राय इस मठ के महंत
स्वामी बलदेव गिरि महाराज के पास घंटों बैठते थे । पिता के साथ आते-जाते
उन दोनों पुत्रों को भी हनुमत-भक्ति का चस्का लग गया । उनमें से एक जो
फिल्मी दुनिया का चर्चित अभिनेता बना हुआ है उसकी जब कभी तबीयत खराब
होती, तो वो यहां जरूर आते । बकौल नरेन्द्र गिरि- अमिताभ के
स्वास्थ्य-लाभ हेतु हरिवंश राय द्वारा दो-दो बार यहां हनुमत अनुष्ठान भी
कराया जा चुका है । वर्ष १९८२-८३ में हरिवंश राय ‘कूली’ फिल्म की शूटिंग
के दौरान घायल हो गए अपने अभिनेता पुत्र अमिताभ को मुम्बई से सीधे
यहां ले आ कर हनुमान जी के चरणों में शरणागत हुए थे तो स्वामी बलदेव गिरी
महाराज ने १०१ वेदपाठी ब्राम्हणों से ११ दिनों का ‘एकदशनी यज्ञ’ करवाया
था । तब जा कर इस अभिनेता की जान बची थी जो अब यह कह रहा है कि वह तो
धर्म-शून्य भारतीय है । जबकि सच यह है कि उस यज्ञ की पूर्णाहुति के दिन
हवन करते समय से ही स्वास्थ्य-लाभ होने के कारण सनातन धर्म की महिमा से
प्रभावित अमिताभ हर साल इस मंदिर में हनुमान जी को अपनी प्रार्थना
भेजते-भिजवाते रहे हैं । इसी तरह नरेन्द्र गिरि के अनुसार वर्ष २०११ में
किसी गम्भीर बीमारी से पीडित होने पर अमिताभ ने अपने भाई अजिताभ को भेज
कर इन्हीं हनुमान जी से स्वास्थ्य-लाभ की कामना की थी । तब उस मौके पर २१
ब्राह्मणों से ७ दिनों की सूर्योपासना करायी गई थी । फिल्मों से करोडों
की कमाई करते रहने वाले इस अभिनेता की ओर से तब ५१ हजार रुपए बतौर
दक्षिणा भेजे गए थे और मंदिर प्रांगण में ५१ किलोग्राम पीतल का एक
भारी-भरकम घण्टा टंगवाया गया था, जिसकी टंकार से उसे वहां टंगवाने वाले
के धर्म का इजहार होते रहता है । तब से प्रायः हर साल तीन-तीन बार इस
मंदिर में हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते-करवाते रहने वाले वे स्वनामधन्य
अभिनेता महोदय अभिनयन की प्रतिभा और संकटमोचन की कृपा से सफलता की
बुलंदियों पर स्थापित हो गए तब उन्हें अब धर्म से इतनी वितृष्णा हो गई
है कि वे पिछले दिनों ‘कौन बनेगा करोडपति’ कार्यक्रम के दौरान देश के
जाने-माने समाजसेवी विन्देश्वर पाठक से सार्वजनिक तौर पर यह कह दिए कि
“मेरा कोई धर्म नहीं है . मैं तो केवल भारतीय हूं” । स्वयं को धर्म से
परे एक ‘भारतीय’ मानने बताने की ऐसी कृतघ्नतापूर्ण धृष्ठता से इन अभिनेता
की तरह सनातन धर्म की छाया में पले-बढे अनेक नेता और बुद्धिजीवी भी
ग्रसित हैं । थॉमस मैकाले प्रणीत अंग्रेजी शिक्षा को कुछ ज्यादा ही हजम
कर चुके ये लोग सनातन धर्म के अवदानों का इस्तेमाल स्वयं को स्थापित
करने मात्र के लिए करते रहे हैं । स्थापित हो जाने के बाद इस धर्म को
अंगूठा दिखा कर भारतीय बन जाने की इनकी ढिठाई के पीछे अंतराष्ट्रीय बनने
की इनकी चतुराई छिपी हुई होती है । किन्तु इन्हें शायद नहीं मालूम कि
‘भारतीय’ शब्द से भी सनातन धर्म ही अभिव्यक्त होता है क्योंकि दुनिया में
भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी राष्ट्रीयता धर्म है मजहब नहीं । धर्म
और मजहब के बीच आसमान-जमीन का फासला है । मजहब तो बनते और मिटते रहते हैं
लेकिन धर्म तो सनातन ही है जिसे कुछ शताब्दियों से हिन्दू धर्म या वैदिक
धर्म कहा जाने लगा है । महर्षि अरविन्द ने जो कहा है कि “सनातन धर्म ही
भारत की राष्ट्रीयता है” सो ऐसे ही नहीं कहा है । दुनिया में कहीं भी
भारतीय होने का अर्थ धार्मिक होना ही समझा जाता है । धार्मिक होना और
मजहबी होना दोनों में अन्तर है । इसी कारण भारतीय होने का अर्थ मजहबी
होना कहीं नहीं समझा जाता है । यह बात सही है कि सनातनधर्मी भारत में
अनेक मजहबों के लोग रहते हैं । किन्तु यह तथ्य जितना सत्य है उतना ही
सत्य यह तथ्य भी है कि भारत में इन मजहबों का अस्तित्व सनातन धर्म की
धार्मिकता के सहारे ही टिका हुआ है । भारत का इस्लाम अरब के इस्लाम से
भिन्न है और भारत की ईसाइयत भी युरोप की ईसाइयत से भिन्न है । सनातन धर्म
की सहिष्णुता और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी मान्यता के कारण भारत के लोगों
द्वारा अंगीकृत-स्वीकृत इस्लाम को यहां टिके रहने के लिए मजारों व
दरगाहों पर फूल व चादर चढाने की सनातनधर्मी परम्परा का अवलम्बन धारण करना
पडा है जबकि ईसाइयत को भी विस्तार पाने के लिए ईसा के हाथों में शिव का
डमरु और कृष्ण की बांसुरी वाली छवि गढनी पडी है । प्रकारान्तर से यह
मूर्तिपूजा वस्तुतः इस्लाम और ईसाइयत का भारतीयकरण है । भारतीयकरण अर्थात
सनातनधर्म का अनुकरण । भारत का कोई भी मुस्लिम या कोई भी ईसाई स्वयं को
भारतीय कह सकता है और कहता ही है क्योंकि भारतवासी होने के कारण उसकी
राष्ट्रीयता भारतीय ही है । किन्तु भारतीय होने का मतलब धार्मिक होना ही
है मजहबी होना कतई नहीं है । कोई मजहबी व्यक्ति अपनी नागरिकता के आधार पर
भारतीय हो सकता है किन्तु भारतीय का अर्थ किसी भी आधार पर मजहबी कतई नहीं
हो सकता । इसी करण इस्लाम या ईसाइयत मजहब के भारतीय लोग जब अरब या रोम
जाते हैं तब उन्हें वहां विशुद्ध मुसलमान या विशुद्ध ईसाई नहीं माना जाता
है । बल्कि भारतीय मुसलमान या भारतीय ईसाई माना जाता है । इसका मतलब यह
हुआ कि उनमें सनातन धर्म की कुछ न कुछ मिलावट जरूर है क्योकि उनके आदि
पूर्वज मजहबी नहीं रहे हैं । दूसरी ओर आप अगर मजहबी नहीं हैं और
भारतीय हैं तो जाहिर है आप सनातनधर्मी ही हैं । भारत की पहचान सनातन धर्म
से या वेदों-उपनिषदों से ही है इस्लाम या ईसाइयत नामक मजहब से और कुरान
या बाइबिल नामक मजहबी ग्रंथों से कतई नहीं । इसी कारण से इसी आधार पर
महर्षि अरविन्द ने सनातन धर्म को ही भारत की राष्ट्रीयता कहा है ।
स्वामी विवेकानन्द ने इसे हिन्दुत्व की संज्ञा दी है । ऐसे में
देश-दुनिया के विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित एक अभिनेता अगर ऐसा कहे कि
वह धर्महीन है और धर्महीनता के बावजूद ‘भारतीय’ है तो इसका सीधा अर्थ यही
है कि अगर वह मजहबी नहीं है तो निश्चित रुप से वह सनातनधर्मी ही है ।
बावजूद इसके अपनी धार्मिक पहचान को नकारते हुए स्वयं को ‘भारतीय’ कहना
प्रकारान्तर से भारतीयता के अर्थ से उलट एक बेसुरा कुतर्क है । अतएव ऐसे
स्वनामधन्य अभिनेता को बाघम्बरी मठ में उसके द्वारा टंगवाये गए भारी
घण्टे की टंकार से हूंकार भरते हुए सीधे-सीधे यह कहना चाहिए कि मैं
सनातनधर्मी हूं ।
• अक्तूबर’२०१९
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