प्रो० बलराज के जम्मू से निष्कासन का जवाब दे कांग्रेस
हालातों का जायजा लेने के बहाने कथित ‘राजनीतिक पर्यटन’ के निमित
भाजपा-विरोधी दलों के एक प्रतिनिधिमण्डल को ले कर जम्मू-कश्मीर जा रहे
राहुल गांधी को वहां के गवर्नर के आदेशानुसार श्रीनगर से ही बैरंग वापस
कर दिए जाने पर कांग्रेस के तम्बू में हाय-तौबा मचा हुआ है । कांग्रेस
एवं सहयोगी दलों के नेताओं द्वारा इस मामले को ले कर लगातार आपत्ति जतायी
जाती रही है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के भीतर क्यों नहीं जाने दिया जा रहा
है और केन्द्र की भाजपा-मोदी-सरकार के विरुद्ध लगातार यह आरोप लगाया जा
रहा है कि वह वहां के हालातों को छिपा रही है । जबकि सच यह है कि धारा
३७० को हटा दिए जाने के बाद समस्त जम्मू-कश्मीर में जन-जीवन सामान्य है
और अमन-चैन कायम है । किन्तु कांग्रेस-राहुल और उनके हमसफर नेताओं के
द्वारा लगातार यह दावा किया जा रहा है कि वहां लोग मर रहे हैं, उन पर
सरकारी जुल्म ढाया जा रहा है और शासनिक बर्बरता की स्थिति कायम है ।
राहुल गांधी के ऐसे ही एक बयान को लपकते हुए पाकिस्तान की सरकार ने उसे
आधार बना कर भारत-सरकार की ‘कश्मीर-कार्रवाई’ के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र
संघ को एक पत्र भेजा है, जिससे उक्त अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को अपनी
सफाई पेश करने की मशक्कत करनी पड सकती है । हॉलांकि बाद में राहुल गांधी
ने पाकिस्तान द्वारा उनके उक्त बयान का भारत के विरुद्ध इस्तेमाल किये
जाने को ले कर उसे फटकार भी लगायी है । अब वे कश्मीर-मसले को भारत का
आन्तरिक मामला बताते हुए पकिस्तान को इसमें हस्तक्षेप न करने की नसीहत
भी दे रहे हैं । श्री गांधी अपने उल-जलूल बयानों से कांग्रेस को हुई
क्षति की भरपाई करने वास्ते ऐसा कर रहे हैं या अपनी गलती सुधारने का
दिखावा कर रहे हैं , सो कहना मुश्किल है । बावजूद इसके वे जम्मू-कश्मीर
नहीं जाने देने के कारण सरकार से खासा नाराज हैं । ऐसे में उनके पास
क्या इस प्रश्न का कोई उत्तर है कि सन १९४८ में पाकिस्तानी आक्रमण और
जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के ‘ओवर-ऑल कमानधारी शेख-अब्दुल्ला के
हिन्दू-विरोधी सैन्य-संचालन से आक्रांत क्षेत्रों को पाकिस्तान के कब्जे
में जाने से रोकने की मशक्कत कर रहे स्थानीय लोगों की ‘जम्मू प्रजा
परिषद’ के नेता प्रो० बलराज मधोक सपरिवार जम्मू-कश्मीर से निष्कासित
क्यों कर दिए गए थे ?
जम्मू-कश्मीर की एक तिहाई भूमि पर पाकिस्तान का कब्जा हो जाने के
प्रत्यक्षदर्शी और लोकसभा के दो बार सांसद रहे प्रो० बलराज मधोक ने
‘कश्मीर- हार में जीत’ नामक एक पुस्तक लिख रखी है, जिसके तथ्य बताते हैं
कि पाकिस्तानी आक्रमण्कारियों से जम्मू-कश्मीर को मुक्त करने के लिए
भारतीय सेना की जो टुकडियां वहां भेजी गयी थीं, उसकी ‘ओवरऑल कमान’ जवाहर
लाल नेहरु ने शेख अब्दुल्ला को सौंप रखी थी और अब्दुल्ला साहब उक्त सैन्य
अभियान के बदौलत अपने प्रभाव वाले घाटी-क्षेत्र को मुक्त व सुरक्षित कर
लेने के बाद सेना को घाटी से बाहर के उन हिन्दू-बहुल क्षेत्रों में जाने
ही नहीं दिए , जहां पाकिस्तानी आक्रमणकारी कत्लेआम ढाते हुए अपना कब्जा
स्थापित करते जा रहे थे । ऐसे में एबटाबाद, पूंछ व भीम्बर शहर पर
पाकिस्तानी कब्जा होते देख मीरपुर कोटली व जम्मू के स्थानीय लोगों का एक
प्रतिनिधिमण्डल उनके (बलराज के ) नेतृत्व में उन क्षेत्रों को बचाने के
बावत सैन्य ब्रिगेडियर परांजपे से सम्पर्क किया था, तब उन्हें बताया गया
था कि चूंकि सैन्य-अभियान की ‘ओवरऑल कमान’ अब्दुल्ला के हाथ में है, इस
कारण उसकी आज्ञा के बिना सेना वहां नहीं भेजी जा सकती है । लोग शेख
अब्दुल्ला से मिले, तो वे पाकिस्तान से मिलीभगत की अपनी गुप्त योजना के
तहत ऐसा करने से कतराते रहे । फिर वह प्रतिनिधिमण्डल श्रीनगर जाने के
दौरान जम्मू हवाई अड्डे पर थोडी देर ठहरे हुए जवाहर लाल नेहरु से मिल कर
उन्हें उन क्षेत्रों में सेना भेजने का आग्रह किया, तो उन्होंने भी यही
कहा कि अब्दुला ही इसका निर्णय लेगा । अन्ततः वह प्रतिनिधिमण्डल नई
दिल्ली जा कर सरदार पटेल से मिल कर उन्हें वस्तु-स्थिति से अवगत कराया तब
पटेल जी ने कहा कि “यू आर ट्राइंग कन्विंस टू ए कन्विंस्ड मैन” (आप उस
आदमी को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, जो समझ चुका है) । उन्होंने कहा-
“इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि रियासती मामलों का मंत्रालय
मेरे हाथ में जरूर है, लेकिन नेहरुजी ने जम्मू-कश्मीर मामला अपने ही पास
रखे हुए हैं । उनका कहना है वे कश्मीरी हैं और इस कारण कश्मीर के सम्बन्ध
में मुझसे बेहतर जानते हैं । यदि वे कश्मीर मामला भी मुझे सौंप दें तो
मैं एक माह में सब कुछ ठीक कर दुंगा । अतः आप लोग एक बार नेहरुजी से फिर
मिलिए ।” प्रो मधोक अपनी पुस्तक (कश्मीर- जीत में हार) के एक पृष्ठ पर
लिखते हैं- मैंने नेहरुजी को वही बातें बतायी, जो पटेलजी से कही थी । बात
अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि वे बोल उठे- मैंने अब्दुल्ला के लिए इतना कुछ
किया है कि जम्मू-कश्मीर की सारी सत्ता उसके हाथ में सौंप दी है, अगर वह
ऐसा भेदभावपूर्ण व्यवहार करेगा, तो मुझे हैरानी होगी । इस पर मैंने (मधोक
ने) कहा- ‘करेगा का सवाल नहीं है, वह तो ऐसा कर ही रहा है, उससे अगर कमान
वापस नहीं ली गई , तो एबटाबाद भीम्बर की तरह मीरपुर-जम्मू आदि तमाम
क्षेत्र भारत के हाथ से निकल जाएंगे । प्रो० बलराज आगे लिखते हैं कि “वे
जब वापस लौटने लगे तब उन्हें सूचना मिली कि वे जम्मू-कश्मीर से निष्कासित
कर दिए गए हैं, उनके जम्मू वापस लौटने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है और
उनके बृद्ध पिता जगन्नाथ मधोक सहित मां , बहन व भाइयों को जम्मू से बाहर
निकाल दिया गया है”। इस तरह शेख अब्दुल्ला के भारत-विरोधी अभियान का
प्रतिकार करने वाले हर एक व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर से बाहर निकाल कर
तत्कालीन कांग्रेसी केन्द्र सरकार ने अब्दुल्ला को ऐसी खुली छूट दे रखी
थी कि उसकी योजना के अनुसार एबटाबाद, पूंछ, भीम्बर , पीरपुर आदि तमाम
हिन्दू-बहुल क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में चले गए और तब एकतरफा
युद्ध-विराम के बाद वे सारे क्षेत्र ‘पाक-अधिकृत’ घोषित कर दिए गए ।
आज कश्मीर में राजनीतिक पर्यटन के बावत नहीं जाने देने का स्यापा
कर रहे कांग्रेसियों को मालूम होना चाहिए कि तब जम्मू-कश्मीर की रक्षा के
बावत शेख साहब की नीतियों व गतिविधियों की पोल खोल देने वाले प्रो० बलराज
को ही नहीं, बल्कि सेना के लेफ्टिनेण्ट जनरल बी०एम०कॉल तथा भारत सरकार के ‘एजेण्ट जनरल’ कुंवर दिलीप सिंह आदि कई लोगों को जम्मू-कश्मीर से बाहर कर दिया गया था, सिर्फ इस कारण से क्योंकि वे लोग अब्दुल्ला को पसंद नहीं थे
। जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत संघ में विलय की पूरी प्रक्रिया को निष्पादित करने वाले उस रियासत के प्रधानमंत्री- मेहरचन्द महाजन तो अबुल्ला की शिकायत पर पहले ही बाहर कर दिए गए थे । लेफ्टिनेण्ट जनरल कॉल
ने भी अपनी पुस्तक ‘अनकही कहानी’ में ऐसे कई मामलों का विस्तार से वर्णन
किया है । कंग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेताओं को वह सब पढना चाहिए ।
• अगस्त’ २०१९
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