अनर्गल बयानबाजी के विरुद्ध कानून अपरियार्य


संविधान के अनुच्छेद-३७० को निरस्त कर दिए जाने एवं जम्मू-कश्मीर के
पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरु होने के साथ ही अपने देश में अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता और सत्तारूढ भाजपा-सरकार की आलोचना के नाम पर विपक्षी दलों के
नेताओं तथा उनके सिपहसालारों की बायानबाजियां लोकतांत्रिक मूल्यों व
राष्ट्रीय हितों का हनन करती दिख रही हैं, जिसका सीधा फायदा पाकिस्तान
के भारत-विरोधी अभियान को मिल रहा है । पाकिस्तान की ओर से भारत-सरकार के
विरुद्ध लगाये जा रहे जिन आरोपों को सच मानने से पूरी दुनिया इंकार कर
चुकी है, उन्हें पाकिस्तान के सुर में सुर मिला कर जबरिया सच सिद्ध करने
में जुटा हुआ है अपने देश का विपक्ष और बुद्धिजीवियों का एक खास महकमा ।
इनके बयानों से न केवल पाकिस्तान का दावा पुष्ट हो रहा है, बल्कि ऐसा
प्रतीत हो रहा है कि ये बयानबाज लोग पकिस्तानी हुक्मरानों के प्रवक्ता
बने हुए हैं । पाकिस्तान की ओर से जब जो भी कहा जा रहा है, उसका समर्थन
भारत के इन विपक्षी नेताओं द्वारा तुरंत किया जा रहा है । ध्यातव्य है कि
पाकिस्तानी हुक्मरान आरम्भ से ही कश्मीर मामले को इस्लाम व मुसलमान के
नजरिये से पेश करते रहे हैं, तो भारत में कांग्रेस-कम्युनिष्ट दलों के
नेतागण भी इसे मुस्लिम सियासत का ही रुप देते रहे हैं । ये नेतागण धारा
३७० को भारतीय संविधान द्वारा मुसलमानों को दिया हुआ उपहार बताते-मानते
रहे हैं, जबकि सच यह है कि वह विशेषाधिकार तो समस्त जम्मू-कश्मीर को दिया
गया था, जिसका नाजायज इस्तेमाल वहां के बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा
अल्पसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध किया जाता रहा था । उस अनर्थकारी
सांवैधानिक प्रावधान को हटा दिए जाने के बाद अब पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री इमरान खान जब यह कह रहे हैं कि कश्मीर में मुसलमानों पर
जुल्म किया जा रहा है , तब यहां कांग्रेस के पी० चिदम्बरम आदि नेताओं
द्वारा भी यह कहा जा रहा है कि “जम्मू-कश्मीर का मुस्लिम-बहुल होने के
कारण वहां से धारा ३७० हटायी गयी है” । यह बयान तो वस्तुतः धारा ३७० कायम
करने और उसे निरस्त कर देने के दोनों मौकों पर संसद में हुए बहश-विमर्श
एवं उसके निष्कर्ष के आधार पर लिए गए तत्विषयक उस निर्णय का अपमान है,
जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था और ७० वर्षों के बाद
उसके अलगावकारी दुष्प्रभावों को देखते हुए उस प्रदेश को भारत-राष्ट्र की
मुख्यधारा में शामिल करने के बावत उक्त सांवैधानिक प्रावधान को समाप्त
कर दिया गया । इस पूरे मामले में सच तो यही है कि बहुसंख्य मुस्लिम आबादी
के कारण वह अनुच्छेद न जोडा गया था न हटाया गया है । किन्तु पाकिस्तान
इसे इस्लामी रंग दे कर इस मामले पर दुनिया के इस्लामिक देशों का समर्थन
हासिल करने की कोशिश करने में लगा हुआ है तो कांग्रेस के नेतागण भी उसी
का समर्थन करते दिख रहे हैं ।
धारा ३७० के उन्मूलन एवं जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को पाकिस्तानी
प्रधानमंत्री इमरान खान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर०एस०एस०) की योजना का
क्रियान्वयन बता रहे हैं एवं संघ को एक नाजी संगठन बता रहे हैं ; तो
उन्हीं की हां में हां मिलाते हुए कांग्रेसी नेता अधीश रंजन चौधरी कश्मीर
की वर्तमान हालत को ‘एक नाजी कैम्प के समान’ बता रहे हैं । चौधरी से यह
पुछा जाना चाहिए कि कांग्रेसी शासन के दौरान जिन दिनों कश्मीर में धारा
३७० का संरक्षण पा कर जिहादी शक्तियों द्वारा वहां के मूल निवासी
हिन्दुओं को उनकी ‘जोरु-जमीन-जायदाद’ छीन कर मार-मार के भगाया जा रहा था और पूरी घाटी में मार-काट-आगजनी-फसाद का राज कायम था, उन दिनों के हालात कैसे थे ? मुस्लिम-तुष्टिकरण की अपनी राजनीति चमकाने के लिए संघ व भाजपा के विरुद्ध हमेशा जहर उगलते रहने के कारण विगत चुनाव में धूल चाटने को विवश हुए दिग्विजय सिंह को तब कश्मीर शायद फूलों की तरह खिलता-मुस्कुराता हुआ दिख रहा था, जब वहां चार सौ भी अधिक मन्दिर जला दिए गए थे ; किन्तु आज कश्मीर जलता हुआ दिख रहा है , तो इस धिग्गी राजा से भी धारा ३७० की समाप्ति के बाद कश्मीर में हुई आगजनी की एक भी घटना के बावत यह पुछा जाना चाहिए कि कहां जल रहा है कश्मीर ? जाहिर है, सिंह जी के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा, तब वैसी हालत में ‘सफेद झूठ’ से सनसनी फैलाने के आरोप में उन्हें घसीट कर कठघरे के भीतर नहीं खडा कर देना चाहिए ? कांग्रेस के स्वनामधन्य नेता राहुल गांधी का बयान है कि कश्मीर में केन्द्र की
भाजपा-मोदी-सरकार द्वारा ‘सत्ता की ताकत का दुरुपयोग’ हो रहा है । सत्ता
के मद में मदहोश हो कर कांग्रेस की लुटिया डूबो देने वाले इस नेता को
क्या यह मालूम है कि कश्मीर को भारत से पृथक कर देने के देशद्रोह-मामले
में आरोपित हो कर जेल की हवा खा रहे शेख अब्दुल्ला को नेहरुजी ने उस
मुकदमें से मुक्त कर पी०एम०हाउस में मेहमान बना रखा था, तो वह सत्ता की
ताकत का सदुपयोग आखिर कैसे था ? कांग्रेस के जिन नेताओं को देश के
इतिहास-भूगोल का भी नहीं है ज्ञान, वे आज कश्मीर-मामले पर लगातार दाग रहे
हैं बयान पर बयान । भारत के विरुद्ध पाकिस्तान के नेताओं द्वारा जो आरोप
नहीं लगाए जा रहे हैं, सो आरोप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता ही इन
दिनों लगा रहे हैं सरेआम । मणिशंकर अय्यर का बयान आया है कि “कश्मीर की
हालत फिलिस्तीन जैसी हो गई है” । इस कांग्रेसी अय्यर के पास अपना यह दावा
प्रमाणित करने का कोई प्रमाण तो है नहीं, बस भाजपा-मोदी-सरकार के विरोध
में अपनी शेखी बघारने के लिए यों ही बोल दिए । दूसरे दलों के नेताओं
द्वारा भी ऐसी ही अनर्गल बयानबाजी की जा रही है । इनके ऐसे बिगडे-बहके
बोल से देश के भीतर तो कोई प्रभाव पडने वाला नहीं है, क्योंकि पूरा देश
इनके पाखण्डी चरित्र व राष्ट्रघाती चिन्तन को जान समझ कर इन्हें जनमत का
मोहताज बना दिया है; किन्तु अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इनके ऐसे बयानों से
पाकिस्तान का दावा मजबूत हो सकता है, जिससे निबटने के लिए भारत को
अतिरिक्त राजनयिक मशक्कत करने की नौबत आ सकती है । अपने ऐसे बयानों से पाकिस्तान के सुर में सुर मिला रहे और प्रकारान्तर में अलगाववादियों को
समर्थन दे रहे ये लोग कश्मीर जाने की जिद्द कर रहे हैं और उस यात्रा का
प्रयोजन भारत सरकार की मदद करना बता रहे हैं , तो समझा जा सकता है कि ये
लोग वहां जा कर किस प्रकार से किसकी मदद करेंगे । सरकार ने कांग्रेस के
राहुल गांधी व गुलाम नवी आजाद सहित भाकपा-माकपा-तेदेपा-राजद आदि के ऐसे एक दर्जन नेताओं को कश्मीर जाने से रोक देने की जो कार्रवाई की है , सो
सर्वथा उचित है ; किन्तु जरुरत एक ऐसे सख्त कानून की भी है, जो ऐसी
अनर्गल बयानबाजियों पर अंकुश लगाये । क्योंकि , ऐसा पहली बार नहीं देखा
जा रहा है, बल्कि जब-जब पाकिस्तान से सम्बन्धित प्रसंग उपस्थित हुआ है,
तब-तब कांग्रेस और इसके सहयोगियों दलों के नेताओं का रवैया ऐसा ही रहा है
। पाक-प्रायोजित पुलवामा हमला का भारतीय सेना द्वारा प्रतिकार किये जाने
तथा उससे पहले कतिपय समूहों द्वारा जे०एन०यु० में ‘भारत को टुकडे-टुकडे
करने’ का नारा लगाए जाने और उससे भी पहले मुम्बई ताज पर जिहादी हमला
होने के मौके पर भी इन नेताओं को भारत के विरोध में व पाकिस्तान के पक्ष
में ही चोंचलेबाजी करते देखा जाता रहा है । अतएव अनर्गल बयानबाजी रोकने
के बावत एक सख्त कानून का प्रावधान किया जाना अपरिहार्य प्रतीत हो रहा है ।
• अगस्त’ २०१९