ऊंट अब आया पहाड के नीचे


ऊंट एक ऐसा मरुस्थलीय प्राणी है , जो यह सोच कर हमेशा अकडे रहता है
कि उससे बडा-ऊंचा दूसरा कोई नहीं है । उस ‘मरुस्थल के जहाज’ की सवारी
करने वाले कबीलाई लोगों के बीच से सारी दुनिया को फतह करने के लिए
‘इस्लाम’ नाम का जो मजहब निकला उसके आधुनिक झण्डाबरदार बने पाकिस्तान की
अकड भी कुछ ऐसी ही है । पाकिस्तान का ऊंट की तरह अकडना स्वाभाविक ही है ,
क्योंकि ‘इस्लामिक स्टेट’ होने के कारण ऊंट से उसका मजहबी रिश्ता है ।
किन्तु ऊंट को पहाड के नीचे भी आना पडता है और तब उसका यह भ्रम टूट जाता
है तथा सच्चाई समझ में आ जाती है कि पर्वतीय वन-प्रान्तरों में हाथी-शेर
आदि ऐसे प्राणी भी रहते हैं, जो उसकी बोटि-बोटि नोंच कर अपना ग्रास भी
बना सकते हैं । हमारे कश्मीर की वीणा पर बे-सुर-ताल के ही हमेशा अपना
मजहबी राग आलापते रहने वाले पाकिस्तान को ‘पहाड के नीचे ऊंट’ की स्थिति
का यह ज्ञान अब हो रहा है, जब सारी दुनिया से उसे दुत्कार मिलने लगी है ।
यह भाजपा-मोदी सरकार की वैदेशिक नीति व राजनयिक कूटनीति की सफलता का
परिणाम ही नहीं है , बल्कि पाकिस्तान की नैतिक बेईमानी और आर्थिक बदहाली
का दुष्परिणाम भी है ।
पाकिस्तान के जन्म से ही सारी दुनिया उसकी बदनीयत से परिचित है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके ‘वीटो पावर’-सम्पन्न राष्ट्रों के साथ-साथ
लगभग सभी देशों की सरकारें यह जानती हैं कि जम्मू-कश्मीर ऐतिहासिक व
सांस्कृतिक रुप से तो भारत का अविच्छिन्न अंग है ही, राजनीतिक रुप से भी
भारत गणराज्य का एक राज्य है । ब्रिटेन की संसद से पारित जिस भारतीय
स्वतंत्रता अधिनियम-१९४७ से पाकिस्तान का निर्माण हुआ है, उसी अधिनियम
के एक प्रावधान के अनुसार जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ है , जो
अपरिवर्तनीय है । उस विलय को झुठलाना , उसे नहीं मानना अथवा विलयोपरांत
उसमें कतिपय शर्तें लगाने की वकालत करना नैतिक बेईमानी के सिवाय और कुछ
नहीं है । क्योंकि उक्त अधिनियम के तहत भारत या पाकिस्तान के साथ
रियासतों के विलय का जो प्रावधान किया गया था, उसमें सम्बन्धित रियासतों
के राजाओं की इच्छा के सिवाय दूसरी किसी शर्त का कोई उल्लेख है ही नहीं
और अन्य तमाम रियासतों का विलय बिना किसी शर्त के इसी आधार पर हुआ भी ।
तो ऐसे में जम्मू-कश्मीर के विलय को पाकिस्तान कैसे झुठला सकता है और
उसके कहने पर दुनिया के किसी भी देश की सरकार इस मामले में उसका समर्थन
आखिर कैसे कर सकती है ? जहां तक भारतीय संविधान के अनुच्चेद ३७० के तहत
जम्मू-कश्मीर को भारत के विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने और अब न ही दिए
जाने की बात है , तो भारत की सरकार अपने देश के संविधान में किस अनुच्छेद
को कायम रखे या किस अनुच्छेद को हटा दे अथवा अपने किस राज्य को विशेष
दर्जा दे किसी नही दे, इस पर आपत्ति जताने का अधिकार पाकिस्तान को आखिर
कैसे है ? इस सवाल का जवाब दुनिया के किसी भी देश को पाकिस्तानी हुक्मरान
कभी दे ही नहीं सकते , तो दुनिया उन्हें कैसे समर्थन दे ? यह तो सीधी सी
बात है, जिसे मोटी बुद्धि से भी समझा जा सकता है कि भारत की सरकार ने
अपने ही एक राज्य को कुछ विशेषाधिकार दिया हुआ था, जिसे वह अब वापस ले ली
है; तो इस पर पाकिस्तान के आपत्ति जताने से कोई देश यह कैसे कह देता कि
उसने गलत किया है । भारत सरकार का यह निहायत निजी और आन्तरिक मामला है कि
वह अपने किसी राज्य को विशेषाधिकार दे , या न दे और दे भी , तो किसे दे ,
या किसे न दे । बावजूद इसके भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष
राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद को हटा दिए
जाने पर पाकिस्तान द्वारा आपत्ति जताना कितना हास्यास्पद है और उसकी किस
नीयत का द्योत्तक है यह सारी दुनिया जान-समझ गई । तभी तो खाडी के मुस्लिम
देशों से ले कर संयुक्त राष्ट्र संघ तक , कहीं भी पाकिस्तान को भारत
सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध तनिक भी समर्थन हासिल नहीं हो सका ।
मुस्लिम देशों पर उसे बहुत भरोसा था, किन्तु कोई उसकी तरफदारी नहीं किया
। जिस चीन के साथ उसकी दुरभिसंधि है , वह चाह कर भी प्रभावी नहीं हो सका
। किन्तु पाकिस्तानी हुक्मरानों को अब समझ में आ रहा है कि वे कितना गलत
हैं और भारत सरकार का निर्णय कितना सही है । भई जिसने किसी को अस्थायी
तौर पर कुछ दिया हुआ था, उसने अपनी ही दी हुई चीज को बाद में वापस ले
लिया ; तो इसमें पडोसी को आपत्ति जताने का आचित्य क्या है ? फिर भी ,
पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी जनता को बरगलाने के लिए तथा दुनिया भर के
मुसलमानों का नेता बनने के लिए कश्मीर को एक मुस्लिम राज्य बताते हुए और
उसकी आजादी की आवश्यकता जताते हुए भारत सरकार के उक्त निर्णय को मुस्लिम
कौम के विरुद्ध लिया गया निर्णय बता रहे हैं और भारत के विरुद्ध जिहाद व
जंग का एलान करते फिर रहे हैं, तो उनकी बुद्धि पर पूरी दुनिया को तरश आ
रही है । पाकिस्तान को दुनिया के मानचित्र पर आकार ग्रहण करने से ले कर
अभी तक शायद यह पहला ऐसा मौका है, जब उसके साथ कोई भी देश भारत के
विरुद्ध खडा नहीं है और भारत सरकार उसे कश्मीर पर कोई बात नहीं करने और
‘गुलाम कश्मीर’ बनाम पाक-अधिकृत कश्मीर से उसे हट जाने की चुनौती दे रही
है । हवा के इस बदले हुए रुख का मुख्य कारण भारत के वर्तमान पराक्रमी
नेतृत्व की ठोस वैदेशिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक कूटनीति तो है ही
, पाकिस्तान की अपनी अनैतिक दुर्नीति और उसकी बदहाल आर्थिक स्थिति भी है
। आज उसकी अर्थव्यवस्था अंतिम पायदान तक नीचे गिर कर दिवालिया होने के
कगार पर पहुंच चुकी है । बावजूद इसके, वह भारत के विरुद्ध परमाणु-युद्ध
छेडने की धमकी दे रहा है, जिसकी परमाणु-क्षमता व सैन्य-शक्ति के सामने वह
अत्यन्त बौना है । दरअसल इस धमकी के पीछे उसकी मंशा वस्तुतः विश्व-समुदाय
का ध्यान अपनी ओर अकर्षित करना है, ताकि कोई तो उसके आक्रोश को गम्भीरता से ले । किन्तु गम्भीरता की बात तो दूर , कोई भी देश उसकी इस धमकी को हल्के में भी संज्ञान लेने योग्य नहीं समझ रहा है । लिहाजा, वह स्वयं
क्षुब्ध भी हो रहा है और स्वयं ही स्वयं को संयमित रहने की नसीहत भी दे
रहा है । क्श्मीर मुद्दा दरअसल पाकिस्तानी राजनेताओं तथा फौजियों और
मजहबी कठमुल्लाओं की सियासी जरुरत पूरा करने का उपकरण बना रहा है ,जो अब तिरोहित हो चुका है । इस कारण उनकी सियासत का ऊंट ऐसी जमीन तलाशता फिर रहा है, जहां वे ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ और ‘गजवा-ए-हिन्द’ नामक मजहबी मंसुबों की खेती कर जनता को उसकी बदहाली से मुंह मोड बहला-फुसला सकें । किन्तु सियासत का वह ऊंट इस तलाश में अब तो एकबारगी पहाड के नीचे ही आ गया है, जहां भारत की कूटनीतिक-सामरिक शक्ति एवं इसे प्राप्त वैश्विक सहमति के एहसास मात्र से उसकी अकड अब ढिली पडती जा रही है तथा उसका यह भ्रम टुटता जा रहा है कि वह परमाणु-सम्पन्न शक्ति है एवं परमाणु-हथियारों से युद्ध
छेड देने की उसकी धमकी से दुनिया की महाशक्तियां डरने लगेंगी और भारत पर
ऐसा दबाव बनाएंगी कि वह पकिस्तान का कहा हुआ माने ।
• अगस्त’२०१९