टाइम’ का ‘यु-टर्न’ और नये संस्करण का मर्म


भारत के प्रधानमंत्री- नरेन्द्र मोदी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन चिफ’
घोषित करने वाली ‘टाइम’ की आवरण-कथा का ‘अनावरण’ हो जाने के बाद उसका जो नया संस्करण आया है , सो एक ओर उस विश्व-विख्यात अमेरिकी पत्रिका की नीति, नीयत व उसकी हकीकत पर सवाल खडा कर दिया है, तो दूसरी ओर उसे ‘सच का आईना’ समझते रहने वाले भारत के बुद्धिबाजों को बगलें झांकने के लिए विवश कर दिया है । अपने पिछले अंक में मोदी जी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन चीफ’, अर्थात ‘भारत का विभाजनकारी प्रधान’ ! घोषित करने वाली ‘टाइम’ ने अब अपने ताजा अंक में जो कथा प्रकाशित की है उसका शीर्षक है ‘मोदी हैज यूनाइटेड इण्डिया , लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डिकेड्स’ । अर्थात, मोदी ने भारत को ऐसे एकात्म / एकताबद्ध किया है, जैसे पिछले कई दशकों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया ।
एक ही मोदी को एक ही महीने के भीतर पहले ‘भारत का विभाजनकारी
प्रधान’ और बाद में ‘एकात्मकारी प्रधान’ कहने-लिखने की इस धृष्ठता व
शिष्टता का कारण ‘टाइम’ का दृष्टि-दोष है, या और कुछ ? निश्चित ही इसे
उसकी दृष्टि का कोई-दोष नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वह कोई साधारण सी
अपरिपक्व पत्रिका नहीं है, बल्कि बहुत ही परिपक्व और असाधारण है । ऐसे
में उसका यह ‘यु-टर्न’ उसी तरह से सुनियोजित है, जिस तरह से रैण्ड
कॉर्पोरेशन जैसी अमेरिकी संस्था ने भारत के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक
दुनिया के सबसे बडे सेवाभावी जन-संगठन को ‘अल कायदा’ व ‘जैश-ए-मोहम्मद’
जैसे आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कर रखा था और ‘फोर्ड फाऊण्डेशन’
द्वारा अपने धन-बल से मीडिया-प्रबन्धन के सहारे दिल्ली के अरविन्द
केजरीवाल का रातों-रात महिमा-मण्डन कर उसकी आम आदमी पार्टी को कांग्रेस
का फर्जी विकल्प तैयार करते हुए भाजपा की राह रोकने का सुविचारित खेल
खेला गया था । कांग्रेस के विरुद्ध भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन की
पृष्ठभूमि पर निर्मित केजरीवाल की पूरी ताकत व सियासत जब केन्द्रीय सत्ता
पर भाजपा की व्याप्ति के पश्चात अचानक उसी कांग्रेस के साथ खडी हो गई ,
तब वह खेल दुनिया को समझ में आया । दर-असल, ‘टाइम’ पत्रिका हो या
‘न्यूजवीक’ व न्यूयॉर्क टाइम्स या वाल स्ट्रीट जर्नल अखबार अथवा ‘सीएनएन’
व ‘बीबीसी’ नामक समाचार चैनल , सभी पश्चिमी मीडिया प्रतिष्ठान
भारत-विरोधी वैश्विक शक्तियों की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बन कर
उसके तहत भारत के उन राजनेताओं की छवियां अपनी योजनानुसार बनाते-बिगाडते
रहते हैं, जिनकी राजनीति का वैचारिक अधिष्ठान आरएसएस जैसे संगठनों का वह
दर्शन है जो सनातन धर्म अर्थात ‘हिन्दुत्व’ को ही ‘भारत की राष्ट्रीयता’
होने दावा करता है , जो सच भी है । नरेन्द्र मोदी को ‘इण्डियाज डिवाइडर
इन चीफ’ घोषित करने वाली ‘टाइम’ की तत्विषयक आवरण-कथा का अनावरण करने
वाले अपने लेख (१७ मई-अंक) में मैं इस तथ्य का खुलासा कर चुका हूं कि
अमेरिकी मीडिया एवं अमेरिकी सरकार की वैदेशिक नीतियों के निर्माण में
वैश्विक चर्च-मिशनरियों की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती हैं । और , साथ ही
यह भी बता चुका हूं कि वर्ल्ड विजन, क्रिश्चियन कम्युनिटी डेवलपमेण्ट
एशोसिएशन, रैण्ड कॉरपोरेशन व पॉलिसी इंस्टिच्यूट फॉर रिलीजन एण्ड स्टेट
आदि जिन अन्तर्राष्ट्रीय चर्च-मिशनरी संगठनों की प्राथमिकता में सनातन
धर्म का उन्मूलन , हिन्दू-समाज का विघटन व भारत राष्ट्र का विखण्डन ही
प्रमुखता से शामिल हुआ करता है वे ही लोग अमेरिकी सरकार व अमेरिकी मीडिया
के वैदेशिक नीतियों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिया करते हैं । यहां
उल्लेखनीय है कि रैण्ड कॉरपोरेशन व फोर्ड फाउण्डेशन आदि चर्च-मिशनरी
संस्थायें सन २००० से ही नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध मीडिया के माध्यम से
अभियान चला रखी हैं ।
दरअसल , भारत की राष्ट्रीयता (जो सनातन धर्म अर्थात हिन्दुत्व
है) का राजनीतिक उभार जो है, सो अमेरिकी मीडिया का दृष्टिकोण तय करने
वाले अमेरिकी शासन के विदेश-विभाग और उसकी नीतियों को निर्धारित करने
वाली चर्च-मिशनरी संस्थाओं के पेट में उसी तरह से मरोड पैदा कर देता है,
जिस तरह से अधिकतर भारतीय मीडिया-प्रतिष्ठानों व बौद्धिक संस्थानों के
वामपंथी पत्रकारों-बुद्धिबाजों को दक्षिणपंथ का उभार फुटी आंखों भी नहीं
सुहाता । सच तो यह है कि अमेरिकी शासन-मिशन व मीडिया का यह गठजोड ही भारत
का डीविजन चाहता है, इसलिए ये लोग भारत के असली ‘डीविजनकारी’ कांग्रेसी
‘डिवाइडरवादी’ राजनेताओं, जिनकी नीतियों के कारण सचमुच ही भारत का विभाजन
हुआ और जिनकी साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादी फिरकापरस्त राजनीति अब
पुनर्विभाजन की पृष्ठभूमि निर्मित करती दिख रही है, उन्हें ये
मीडिया-प्रतिष्ठान ‘डिवाइडर’ का विशेषण जानबूझ कर नहीं देते , बल्कि उनके
उन कारनामों के पक्ष में ही वातावरण बनाते रहते हैं ; किन्तु नरेन्द्र
मोदी के ‘सबका साथ - सबका विकास’ व दंगा-फसाद से मुक्त शासन एवं
अलगाववादी आतंकवाद पर नियंत्रण तथा आतंकपीडित-विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं
के पुनर्वास कार्यक्रमों में इस धूर्त्त गठजोड को ऐन चुनाव के वक्त
डीविजन का दृश्य दिखाई पड गया और उल्टे नरेन्द्र मोदी ही ‘इण्डियाज
डिवाइडर इन चीफ’ प्रतीत होने लगे , तो इसकी धूर्त्त मंशा को आप समझ सकते
हैं, जो निस्संदेह भारत की राष्ट्रवादी राजनीति के उभार को दिग्भ्रमित कर
अवरुद्ध करना और विघटनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादी राजनीति को बढावा
देने वाली ही थी । किन्तु भारत की राष्ट्रीयता के उफान से नरेन्द्र मोदी
का परचम जब एक बार फिर पहले से भी ज्यादा ऊंचाई पर लहरा उठा तब ‘टाइम’ को
अपनी विश्वसनीयता कायम करने के लिए एक रणनीति के तहत अब यह रुख अपनाना
पडा है । यह वही टाइम है जो , भाजपा-सरकार द्वारा पोखरण में
परमाणु-विस्फोट किये जाने पर हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी
वाजपेई की एक अत्यन्त खतरनाक छवि गढ कर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दी
थी ।
ऐसे एक नहीं अनेक मीडिया-प्रतिष्ठान युरोप-अमेरिका में सक्रिय
है , जो भारत राष्ट्र के विखण्डन, सनातन धर्म के उन्मूलन व हिन्दू-समाज
के विघटन पर आमदा चर्च-मिशनरी संगठनों की नीति व नीयत के अनुसार
भारत-विषयक मुद्दों-मसलों व मामलों का विश्लेषण किया करते हैं । इन
मीडिया-प्रतिष्ठानों का मर्म आप इस एक उदाहरण से ही समझ सकते हैं कि सन
२००४ में कांग्रेस के मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री नियुक्त हुए , तब इन
चर्च-मिशनरी संगठनों की एक समाचार-सेवी संस्था- मिशन नेटवर्क न्यूज
(एम०एन०एन०) ने उस खबर को ‘धर्मान्तरण का अच्छा अवसर’ शीर्षक से
विश्लेषित किया था । इनकी कुटिल रणनीति को समझने के लिए एक और उदाहरण
उल्लेखनीय है- एक बार श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) में सक्रिय चर्च-मिशनरियों
की धर्मान्तरण्कारी गतिविधियों से क्षुब्ध हो कर वहां जिहादी मुस्लिम
आतंकियों के एक समूह ने चर्च के दो स्कूलों- बर्न हॉल स्कूल व सेण्ट
जोजेफ्स स्कूल पर हथगोलों से हमला कर दिया, तब इस ‘एम०एन०एन’० से
प्रसारित खबरों में उन आतंकियों को ‘अज्ञात हमलावर’ कहा गया और फिर उसे
‘वॉयस ऑफ द मार्टर्स’ नामक सहयोगी मीडिया संस्थान के माध्यम से ‘हिन्दुओं
की करनी’ के तौर पर दुनिया भर में प्रचारित किया गया था । जाहिर है, ये
संस्थान जानबुझ कर अपनी छद्म रणनीति के तहत वास्तविक सच को छुपाते हैं और
‘सफेद झूठ’ को ‘सच’ के तौर पर स्थापित करते हैं । इसी तरह से एसिस्ट
न्यूज सर्विस (ए०एन०एस०) नामक मीडिया संस्थान चर्च-मिशनरियों के
धर्मान्तरणकारी कार्यों की बाधायें दूर करने के पक्ष में भारत-सरकार पर
वैश्विक दबाव बनाने का करने के लिए मशहूर है । ‘गुड न्यूज टीवी’ एवं
क्रिश्चियन ब्रॉडकॉस्टिंग नेटवर्क आदि ऐसे ही संस्थान है, जिसने अपने
प्रायोजित खबरिया कार्यक्रमों के प्रसारण हेतु भारत में कई
मीडिया-प्रतिष्ठानों और उनसे सम्बद्ध पत्रकारों-लेखकों के साथ गुप्त
अनुबन्ध कर रखा है । ऐसे में, नरेन्द्र मोदी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन
चीफ’ करार देने वाली ‘टाइम’ की उस आवरण-कथा से भारत की राष्ट्र्वादी
वैचारिकी पर प्रहार करने वाले इन बुद्धिबाजों की हालत अब उसी टाइम के
‘यु-टर्न’ से एकबारगी अकथनीय जरूर हो गई है , किन्तु उसके इस कदम और नये संस्करण के असली मर्म को उपरोक्त परिप्रेक्ष्य मेम समझना भी जरुरी है ।
• मनोज ज्वाला; जुन’ २०१९