टाइम’ की ‘कथा’ का अनावरण और नया संस्करण


... तो नरेन्द्र मोदी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन चिफ’ घोषित करने वाली
‘टाइम’ की आवरण-कथा का ‘अनावरण’ हो जाने के बाद उसका जो नया संस्करण आया
है , सो एक ओर उस विश्व-विख्यात अमेरिकी पत्रिका की नीति, नीयत व उसकी
हकीकत पर सवाल खडा कर दिया है, तो दूसरी ओर उसे ‘सच का आईना’ समझते रहने
वाले अपने देश के बुद्धिबाजों को बगलें झांकने के लिए विवश कर दिया है ।
अपने पिछले अंक में मोदी जी को ‘इण्डियाज डिवाइडर इन चीफ’ , अर्थात
‘भारत का विभाजनकारी प्रधान’ ! घोषित करने वाली ‘टाइम’ ने अब अपने ताजा
अंक में जो कथा प्रकाशित की है उसका शीर्षक है ‘मोदी हैज यूनाइटेड
इण्डिया , लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डिकेड्स’ । अर्थात, मोदी ने भारत
को ऐसा एकात्म / एकताबद्ध किया है, जैसा पिछले कई दशकों में किसी
प्रधानमंत्री ने नहीं किया ।
एक ही मोदी को एक ही महीने के भीतर पहले ‘भारत का विभाजनकारी
प्रधान’ और बाद में ‘एकात्मकारी प्रधान’ कहने-लिखने की इस धृष्ठता व
शिष्टता का कारण ‘टाइम’ का दृष्टि-दोष नहीं है, बल्कि भारत-विरोधी
वैश्विक शक्तियों की एक सोची-समझी साजिश है, जिसके तहत ‘टाइम’ पत्रिका से
ले कर ‘न्यूजवीक’ अखबार और ‘सीएनएन’ व ‘बीबीसी’ नामक समाचार चैनल तक सभी
मीडिया प्रतिष्ठान भारत व भारतीय राजनेताओं की छवि को चर्च-मिशनरियों की
योजना के अनुसार बनाते-बिगाडते रहते हैं ।
मालूम हो कि अमेरिकी मीडिया एवं अमेरिकी सरकार के बीच वैदेशिक
मामलों को ले कर परस्पर तालमेल बडा ही घनिष्ठ हुआ करता है , जबकि सरकार
की वैदेशिक नीतियों के निर्माण में वैश्विक चर्च-मिशनरियों की भूमिका
महत्वपूर्ण हुआ करती हैं । अमेरिकी राष्ट्रपति की सर्वोच्च सलाहकार
समिति- ‘प्रेसिडेण्ट्स एडवाइजरी काउंसिल ऑन फेथ बेस्ड नेबरहूड
पार्टनरशिप’ में दर्जनाधिक सदस्य वर्ल्ड विजन, क्रिश्चियन कम्युनिटी
डेवलपमेण्ट एशोसिएशन, रैण्ड कॉरपोरेशन व पॉलिसी इंस्टिच्यूट फॉर रिलीजन
एण्ड स्टेट आदि उन अन्तर्राष्ट्रीय चर्च-मिशनरी संगठनों के लोग हुआ करते
हैं, जिनकी प्राथमिकता में सनातन धर्म का उन्मूलन , हिन्दू-समाज का विघटन
व भारत राष्ट्र का विखण्डन प्रमुखता से शामिल होता है । यहां उल्लेखनीय
है कि रैण्ड कॉरपोरेशन व फोर्ड फाउण्डेशन आदि चर्च-मिशनरी संस्थायें सन
२००० से ही नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध मीडिया के माध्यम से अभियान चला रखी
हैं ।
ऐसे में जाहिर है, यूएसए० के वैदेशिक नीति-निर्धारण-क्रियान्वयन
और मीडिया के प्रकाशन-विश्लेषण का आवरण ओढ कर ये चर्च मिशनरियां ही
अपनी योजनाओं को क्रियान्वित कर रही होती हैं । अमेरिकी मीडिया की
वैदेशिक मामलों से सम्बन्धित किसी भी रिपोर्ट या कथा का आप अनावरण करेंगे
तो उसका कथ्य-कथानक व लेखक चाहे जो भी हो, उसके पीछे आपको यही सच दिखाई
पडेगा । इन अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं में चीन, सऊदी अरब, पाकिस्तान, जैसे
तानाशाही शासन-प्रणाली वाले देशों के प्रति तो संवेदना, सहानुभूति, व
सदभाव खूब मिलते हैं; किन्तु भारत के प्रति घृणा, दुर्भावना व दुष्प्रचार
ही दिखते हैं ।
यहां एक उदाहरण उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में जब सेनाधिकारी
जनरल मुशर्रफ ने तख्ता पलट कर जबरन सत्ता हथिया ली थी, तब अमेरिकी
साप्ताहिक ‘न्यूजवीक’ ने मुशर्रफ की तीखी आलोचना के साथ उस घटना की
विस्तृत रिपोर्ट छापी थी, जिसमें यह दर्शाया गया था कि किस तरह से
पाकिस्तान में सैनिक तानाशाही के कारण जनता के लोकतांत्रिक व मौलिक
अधिकारों का हनन होता रहा है । किन्तु उसी अखबार के अगले ही अंक में
उसी मुशर्रफ को ‘जेण्टल जनरल’ के विशेषण से विभूषित कर पाकिस्तान के
बेहतर भविष्य की स्वर्णिम तस्वीर खींच दी गई थी । जाहिर है, ऐसा उसी
हिसाब-किताब के अनुसार किया गया, जिसके मुताबिक विदेशों में प्रसारित
होने वाले अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं के वैदेशिक दृष्टिकोण तय होते हैं ।
कम्युनिस्ट चीन , जहां मानवाधिकार भी बहाल नहीं है तथा एक दलीय तानाशाही
कायम है और प्रेस पर प्रतिबंध है; उस चीन के विरुद्ध या चीनी आकाओं के
खिलाफ किसी ‘टाइम’ या ‘न्यूजवीक’ में कभी कोई नकारात्मक समाचार या
विश्लेषण आज तक प्रकाशित नहीं हुआ है । कारण यह है कि चर्च मिशनरियां
इस्लामी पाकिस्तान की ही तरह ‘बौद्ध-चीन’ को भी सनातनधर्मी भारत के
विरुद्ध अपना हितैषी मानती रही हैं तथा धर्मान्तरण व विखण्डन की दृष्टि
से भारत उनकी प्राथमिकताओं में सबसे पहले है और अमेरिकी विदेशनीति के मूल
में भी यही सूक्ष्म आवधारणा कायम है । आपको याद होगा कि चीनी कम्युनिष्ट
पार्टी के नेता देंग शियाओ पिंग के आदेश पर वर्षों पूर्व एक बार हजारों
निहत्थे चीनी छात्रों को सेना की टैंक से उडा दिया गया था , किन्तु किसी
‘टाइम’ या ‘वीक’ ने मानवाधिकारों का हनन करने वाली उस तानाशाही पर आज तक
भी कुछ नहीं लिखा । जबकि , भाजपा-सरकार ने जब पोखरण में परमाणु-विस्फोट
किया था, तब इसी ‘टाइम’ ने हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी
वाजपेई की एक अत्यन्त खतरनाक छवि गढ कर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दी
थी । किन्तु सन २००४ में कांग्रेस के मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री
नियुक्त हुए , तब इन चर्च-मिशनरी संगठनों की एक समाचार-सेवी संस्था- मिशन
नेटवर्क न्यूज (एम०एन०एन०) ने उस खबर को ‘धर्मान्तरण का अच्छा अवसर’
शीर्षक से विश्लेषित किया था ।
दरअसल , भारत की राष्ट्रीयता (जो सनातन धर्म अर्थात हिन्दुत्व
है) का राजनीतिक उभार जो है, सो अमेरिकी मीडिया का दृष्टिकोण तय करने
वाले अमेरिकी शासन के विदेश-विभाग और उसकी नीतियों को निर्धारित करने
वाली चर्च-मिशनरी संस्थाओं के पेट में उसी तरह से मरोड पैदा कर देता है,
जिस तरह से अधिकतर भारतीय मीडिया-प्रतिष्ठानों व बौद्धिक संस्थानों के
वामपंथी पत्रकारों-बुद्धिबाजों को दक्षिणपंथ का उभार फुटी आंखों भी नहीं
सुहाता । अमेरिकी शासन-मिशन व मीडिया का यह गठजोड ही भारत का डीविजन
चाहता है, इसलिए ये लोग भारत के असली ‘डीविजनकारी’ कांग्रेसी
‘डिवाइडरवादी’ राजनेताओं, जिनकी नीतियों के कारण सचमुच ही भारत का
विभाजन हुआ और जिनकी साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादी फिरकापरस्त राजनीति अब
पुनर्विभाजन की पृष्ठभूमि निर्मित करती दिख रही है, उन्हें ये
मीडिया-प्रतिष्ठान ‘डिवाइडर’ का विशेषण जानबूझ कर नहीं देते , बल्कि उनके
उन कारनामों के पक्ष में ही वातावरण बनाते रहते हैं ; किन्तु नरेन्द्र
मोदी के ‘सबका साथ - सबका विकास’ व दंगा-फसाद से मुक्त शासन एवं
अलगाववादी आतंकवाद पर नियंत्रण तथा आतंकपीडित-विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं
के पुनर्वास कार्यक्रमों में इस धूर्त्त गठजोड को ऐन चुनाव के वक्त
डीविजन का दृश्य दिखाई पड गया और उल्टे नरेन्द्र मोदी ही ‘इण्डियाज
डिवाइडर इन चीफ’ प्रतीत होने लगे , तो इसकी धूर्त्त मंशा को आप समझ सकते
हैं, जो निस्संदेह भारत की राष्ट्रवादी राजनीति के उभार को दिग्भ्रमित कर
अवरुद्ध करना और विघटनकारी साम्प्रदायिक तुष्टिकरणवादी राजनीति को बढावा
देने वाली ही थी । किन्तु भारत की राष्ट्रीयता के उफान से नरेन्द्र मोदी
का परचम फिर लहरा उठा तब ‘टाइम’ को अपनी छवि सुधारने के लिए एक रणनीति के
तहत अब यह रुख अपनाना पडा है ।
ध्यातव्य है कि अमेरिकी शासन, चर्च मिशन व वैदेशिक मीडिया के
इस गठजोड ने भारत में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यहां के कतिपय
पत्रकारों-लेखकों को ‘हिन्दुत्व-विरोधी गिरोह’ में तब्दील कर उनकी सोच का
अभारतीयकरण करते हुए उनका भरण-पोषण करते रहने वाला एक संजाल खडा कर रखा
है । चर्च के धन से निर्मित मन वाला यह महकमा हिन्दुत्व-प्रेरित भाजपा की
राजनीति व राजसत्ता का विरोध करते-करते भारत का ही विरोध करने लगता है और कश्मीर में भारतीय सेना के अलगाववादी-विरोधी मुहिम को ‘हिन्दू-मिलिट्री
बूट’ की इस्लाम-विरोधी कार्रवाई बताते हुए एकबारगी पाकिस्तान के पक्ष में
खडा हो कर अपने ही प्रधानमंत्री का चरित्र-हनन करने में जुट जाता है, तब
इन्हीं पत्रकारों-लेखकों द्वारा लिखी तत्सम्बन्धी ‘नीली-पीली खबरों’ से ‘टाइम’ को नरेन्द्र मोदी की छवि बिगाडने वाली आवरण-कथा गढने का ‘मशाला’ मिल जाता है । किन्तु ‘टाइम’ की इस नई कथा से अब हमारे देश के इन बुद्धिबाजों की हालत अकथनीय हो गई है ।
• मनोज ज्वाला; मई’ २०१९