जनमत की हेराफेरी के दंगलबाजों का नया पैंतरा /
सत्ता के सौदागरों की नई चाल
खबर है कि कांग्रेस-कम्युनिष्ट खेमे का कोई ‘भीम आर्मी’ नामक संगठन
१७वीं लोकसभा के चुनाव-परिणम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए तथा
नरेन्द्र मोदी को निर्वाचित प्रधानमंत्री मानने से इंकार करते हुए फिर से
चुनाव दुबारा कराने अन्यथा संडकों पर खून-खराबा करने की धमकी दी है ।
चुनाव में सत्ता के सहारे जनमत की हेरा-फेरी के एक से एक हथकण्डों का
आविष्कार-व्यवहार करते रहने के लिए कुख्यात रहे इस खेमे के नेताओं की
हालत सत्ता-बल से विहीन हो जाने के बाद अब देखने लायक है । मालूम हो कि
चुनावों में अपनी जीत के लिए सत्ता-बल के सहारे जन-मत की हेराफेरी करने
के शासनिक हथकण्डे का ईजाद व आगाज दोनों ही कांग्रेस और इसके स्वनामधन्य
नेता व प्रथम प्रधानमंत्री ज्वाहरलाल नेहरु के द्वारा प्रथम चुनाव के
दौरान ही किया गया था । तब मतदान का माध्यम सादा मतपत्र हुआ करता था, जिस
पर मुहर लगा कर उसे अपने पसंदीदा उम्मीदवार के नाम की मत-पेटी में डालना
होता था । दलों व उम्मीदवारों के नाम अथवा उनके चुनाव-चिन्ह मत-पत्रों पर
अंकित नहीं रहते थे । ऐसे में मत-पत्रों की हेरा-फेरी करना बहुत ही आसान
था, क्योंकि इसके लिए किसी की मत-पेटी में से मत-पत्रों को निकाल कर किसी
की मत-पटी में डाल देने मात्र की मशक्कत करनी होती थी । नेहरु-कांग्रेस
के द्वारा प्रथम चुनाव (१९५२) में ही मत-पत्रों की हेरा-फेरी का यह
हथकण्डा बडे पैमाने पर अपनाया गया था ।
उन दिनों उतर प्रदेश की सरकार के सूचना-निदेशक रहे शम्भूनाथ टण्डन
ने अपनी पुस्तक- ‘गांधी व नेहरु ; भारत के दुर्भाग्य’ में लिखा है कि
“चुनावी हेरा-फेरी के लिए मत-पत्रों की अदली-बदली एवं ‘बूथ कैप्चरिंग’
जैसे हथकण्डों के मास्टरमाइण्ड थे- जवाहरलाल नेहरु” । बकौल शम्भूनाथ
टण्डन- सन १९५२ में हुए प्रथम आम-चुनाव में जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर
प्रदेश की रामपुर सीट से पराजित घोषित हो चुके कांग्रेसी प्रत्याशी
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को किसी भी कीमत पर ज़बरदस्ती जिताने और
विजय-जुलूस निकाल चुके हिन्दू महासभा के नेता विशनचन्द सेठ को हराने पर
अड गए थे । उनकी धमकीपूर्ण जिद्द से विवश हो कर प्रदेश के मुख्यमंत्री
गोविन्द वल्लभ पंत ने इन्हीं टण्डनजी के माध्यम से जिलाधिकारी पर दबाव
बना कर पूर्वघोषित परिणाम को उलटवा दिया था । टण्डन जी ने अपनी उक्त
पुस्तक के एक अध्याय- “भारतीय इतिहास की एक अनजान घटना” में लिखा है कि
कांग्रेस के एक दर्जन हारे हुए नेताओं को नेहरु जी ने जबरिया विजयी घोषित
कराया था, जिनमें से एक तो वे (नेहरु) स्वयं भी थे ।
फिर दलों-उम्मीदवारों के नामों तथा उनके चुनावी-चिन्हों से
युक्त मतपत्रों का जब चलन शुरु हुआ, तब मतदान केन्द्रों (बूथों) पर कब्जा
करने , मत-पत्रों को लूटने, उन पर फर्जी तरीके से मुहर लगाने एवं उनकी
गिनती में गडबडी करने जैसे हथकण्डे अपनाये जाने लगे । शासनिक सत्ता चूंकि
लम्बे समय तक कांग्रेस के हाथ में ही रही और मतपत्रों की हेराफेरी का
आविष्कारक भी कांग्रेस ही रही, इस कारण जाहिर है- चुनाव-परिणामों को अपने
पक्ष में करने के बावत सत्ता-बल का इस्तेमाल करना और
शोसलिष्टों-कम्युनिष्टों जैसे अपने सहयोगियों से इस बावत
पहलवानी-दंगलबाजी कराते रहना कांग्रेस के नेताओं का शगल बना रहा ।
नेहरुजी के बाद इन्दिराजी ने चुनाव-परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए
शासन-तंत्र का किस कदर नाजायज इस्तेमाल किया था, सो इलाहाबाद हाईकोर्ट
के दस्तावेजों में दर्ज है । तब की कांग्रेस के नेताओं ने हाईकोर्ट के
सम्बन्धित न्यायाधीश को रुपये-पैसे व पदोन्नत्ति के प्रलोभनों से खरीदने
और अन्ततः सत्ता की धौंस देते हुए “पत्नी का करवाचौथ व्रत सदा के लिए
निषिद्ध कर देने” की धमकी देने का घिनौना काम भी किया था । किन्तु जस्टिस
जगमोहनलाल सिन्हा ने उस धमकी का उत्तर भी दे दिया था कि “मेरे लिए करवा
चौथ का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि पत्नी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी है”
और इन्दिरा को “सरकारी अधिकारियों व शासनतंत्र के गलत इस्तेमाल का दोषी
सिद्ध कर संसद की उनकी सदस्यता अवैध करार देते हुए उन्हें छह साल तक
चुनाव लडने के अयोग्य होने” का फैसला भी सुना दिया था । फिर तो कुपित
हुई इन्दिरा ने आपातशासन (इमरजेन्सी) के द्वारा इसी लोकतंत्र का गला
घोटने की कैसी घिनौनी कोशिश की थी , सो भी सारी दुनिया जानती है ।
लोकतंत्र , संविधान व अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता की दुहाई देते रहने वाले
वामपंथी मसीहा लोग तब उस इन्दिरा-कांग्रेस के सिपहसालारों में खास थे,
जबकि अन्य कारणों से नाराज चल रहे समाजवादियों को इन्दिराजी ने जेल की
सलाखों के भीतर धकेलवा दिया था , जो आज उसी कांग्रेस के साथ कदमताल कर
रहे हैं । भाजपा का तो तब अस्तित्व ही नहीं था ।
आज की कांग्रेस के साथ वामपंथियों-समाजवादियों व ‘भीम-आर्मियों’
का जो महगठबन्धन देखा जा रहा है, सो सब कांग्रेस की उस ‘लोकतंत्रभक्षी
कुलदेवी’ का महात्म जानते हैं । किन्तु खो चुके सत्ता-सुख व धन-वैभव
हासिल करने के लिए एक विशेष ‘देवी’ की तंत्रोपासना तो करनी ही पडती है,
सो ये लोग दिल्ली के ‘दस जनपथ की देवी’ का जयकारा करने में लगे हुए हैं
और भारत माता के उपासक मोदी–भाजपा पर वोटिंग मशिनों में हेराफेरी का आरोप
लगाते हुए स्वयं को लोकतंत्र का रक्षक बता रहे हैं । इस कांग्रेस-मण्डली
को घोर साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की राजनीति एवं घपले-घोटालों की प्रवृति
के कारण जनता द्वारा नकार दिए जाने पर चुनाव की ईवीएम-प्रणाली अविश्वसनीय
प्रतीत होने लगी है । चुनाव-परिणाम अपने पक्ष में आने पर इस
ठगबन्धनकारी महागठबन्धन के नेताओं को ईवीएम सही दिख रही होती है, किन्तु
परिणाम भाजपा के पक्ष में जाते देख वही ईवीएम इन्हें गलत प्रतीत होने
लगती है । जाहिर है, इनकी हालत उन बच्चों के समान है, जो खेल में हार
जाने पर रोने-झगडने लगते हैं । किन्तु ये तो बडे शातिर व सयाने लोग हैं,
जो हार जाने पर खेल का नियम गलत होने व परिणाम बदल देने एवं खेल फिर से
कराने की मांग कर रहे हैं , अन्यथा विजेता पक्ष का पारितोषिक छीन लेने
अथवा लूट-मार , खून-खराबा करने-कराने की धमकी देने लगते हैं । इन्हें
किसी संविधान से मतलब नहीं है, सत्ता इन्हें हर हाल में चाहिए । इस बावत
परस्पर गठबन्धन करते हुए पांच साल ये किसी तरह से गुजार लिए , अब ये कुछ
भी कर सकते हैं , सिवाय फिर पांच साल इंतजार के ; लूट-मार , दंगा-फसाद ,
हिंसा-बगावत कुछ भी ! मोदी जी को चुनावी हेरा-फेरी के इन दंगलबजों का यह
नया पैंतरा तथा इनका इस्तेमाल करते रहने वाले ‘सत्ता के सौदागरों’ की इस
नई चाल का समझना होगा और समय रहते इन्हें नाकाम कर देना होगा, इससे देश को ‘शुभ’-‘लाभ’ दोनो होगा ।
• मनोज ज्वाला ; मई’ २०१९
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