कांग्रेस के नेतागण जब चुनाव हार जाते हैं या हारने की सम्भावना
देख लेते हैं तब वे ईवीएम में गडबडी का राग अलापने लगते हैं । हॉलाकि
चुनाव में मतदान के लिए ईवीएम का इस्तेमाल ही हो रहा है पहले की व्यवस्था
में होती रही गडबडियों को रोकने के लिए । ईवीएम पर सवाल उठाते रहने वाले
आज के कांग्रेसी नेताओं को यह जान लेना चाहिए कि चुनावी हेरा-फेरी का
आविष्कार कांग्रेस के द्वारा ही की गई है , जिसके जनक हमारे चाचाजी हैं ।
लोकसभा के प्रथम चुनाव में ही इस आविष्कार का सफल परीक्षण कर चाचाजी ने
कांग्रेस को चुनाव जितने का यह मंत्र दे दिया था- भविष्य में इसका प्रयोग
करते रहने के लिए । जी हां, हमारे चाचाजी ! जिन्हें सारी दुनिया जवाहरलाल
नेहरु के नाम से जानती है और जिनकी विरासत है आज की यह कांग्रेस । यह
दावा मैं ऐसे ही नहीं कर रहा हूं , बल्कि उन्हीं चाचाजी के जमाने के उस
प्रशासनिक अधिकारी की पुस्तक से कर रहा हूं जो उस चुनावी हेरा-फेरी में
एक माध्यम बने हुए थे ।
उन दिनों उतर प्रदेश की सरकार के सूचना-निदेशक रहे
शम्भूनाथ टण्डन ने अपनी पुस्तक- ‘गांधी व नेहरु ; भारत के दुर्भाग्य’
में इस सत्य का विस्तार से खुलासा करते हुए लिखा है कि चुनावी हेरा-फेरी
के लिए मत-पत्रों की अदली-बदली एवं ‘बूथ कैप्चरिंग’ जैसे हथकण्डों के
मास्टरमाइण्ड थे- जवाहरलाल नेहरु अर्थात हमारे चाचाजी । बकौल शम्भूनाथ
टण्डन- सन १९५२ में हुए प्रथम आम-चुनाव में जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर
प्रदेश की रामपुर सीट से पराजित घोषित हो चुके कांग्रेसी प्रत्याशी
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को किसी भी कीमत पर ज़बरदस्ती जिताने और
विजय-जुलूस निकाल चुके हिन्दू महासभा के नेता विशनचन्द सेठ को हराने पर
अड गए थे । उनकी धमकीपूर्ण जिद्द से विवश हो कर प्रदेश के मुख्यमंत्री
गोविन्द वल्लभ पंत ने इन्हीं टण्डनजी के माध्यम से जिलाधिकारी पर दबाव
बना कर पूर्वघोषित परिणाम को उलटवा दिया और स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र की
उस पहली चुनावी प्रक्रिया में ही इसके प्रदूषण का बीजारोपण कर दिया ।
टण्डन जी ने अपनी उक्त पुस्तक के एक अध्याय- “भारतीय इतिहास की एक अनजान
घटना” में चुनावी हेरा-फेरी के उस घृणित कारनामें का विस्तार से वर्णन
करते हुए लिखा है कि कांग्रेस के एक दर्जन हारे हुए नेताओं को नेहरु ने
जबरिया विजयी घोषित कराया था, जिनमें से एक तो हमारे स्वनामधन्य चाचाजी
स्वयं भी थे ।
मालूम हो कि देश-विभाजन की वजह से आजादी के बाद के उस प्रथम
चुनाव के दौरान लोगों में कांग्रेस और खासकर नेहरू के प्रति बहुत आक्रोश
था । हिन्दू महासभा देश-विभाजन के लिए नेहरु व कांग्रेस को दोषी ठहराते
हुए देश भर में उनके विरुद्ध वातावरण बना रखी थी और उस लोकसभा-चुनाव में
प्रायः हर दिग्गज कांग्रेसी के खिलाफ अपने प्रत्याशी खडा किये हुए थी ।
उसने फूलपुर क्षेत्र में जवाहर लाल नेहरु के खिलाफ जाने-माने प्रखर संत
प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को खडा किया था, तो रामपुर में मौलाना आजाद के
विरुद्ध वहां के लोकप्रिय नेता विशनचन्द सेठ को । कांग्रेस के बडे नेताओं
को सर्वत्र कडी चुनौती मिल रही थी । किन्तु अन्तरीम सरकार की कमान चूँकि
नेहरू के हाथ में ही थी, इस कारण चाचाजी ने कांग्रेस-प्रत्याशियों की
जीत सुनिश्चित करने के लिए शासन-तंत्र का जम कर दुरुपयोग किया । मतदान के
दौरान शासन-तंत्र ने लोकतंत्र के लिए जो किया सो तो किया ही ; असली खेल
तो हमारे चाचाजी मतगणना के दिन खेले । शासनतंत्र को यह पाठ पहले ही पढा
दिया गया था कि लोकतंत्र की सलामती के लिए नेहरु को हर हाल में सदा ही
अजेय बनाये रखना है ; सो मतों की गिनती के दौरान प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
की जीत जब सुनिश्चित सी दिखने लगी, तब प्रशासनिक अधिकारियों ने अन्तिम
चक्र में उनकी पेटी से २००० मतपत्रों को निकाल कर नेहरुजी की पेटी में
मिला कर गिनती पूरी कर दी । इस प्रकार हमारे चाचाजी बहुमत से चुनाव जीत
गए । मालूम हो कि उन दिनों हर प्रत्याशी के लिए अलग-अलग मतपेटियां ही
हुआ करती थीं , प्रत्याशी या दल के नाम किसी चिन्ह पर मुहर नहीं लगाई
जाती थी, बल्कि मतपत्र को अपने पसंदिदा प्रत्याशी की पेटी में डाल देने
का विधान था । इस कारण मतपत्रों की हेरा-फेरी बहुत आसानी से हो सकती थी ।
अपनी पुस्तक में टण्डन साहब लिखते हैं- “सेठ विशनचन्द्र के पक्ष में
भारी मतदान हुआ था और मतगणना के पश्चात् प्रशासन ने बाक़ायदा
लाउडस्पीकरों से सेठ विशनचन्द्र को 10000 वोटों से विजयी घोषित कर दिया
था । उस जीत की ख़ुशी में हिन्दू महासभा के लोग विशाल विजय-जुलूस भी
निकाल चुके थे । किन्तु जैसे ही यह समाचार वायरलैस के द्वारा लखनऊ होते
हुए दिल्ली पहुँचा कि मौलाना अबुल आज़ाद चुनाव हार गए , सुनते ही चाचाजी
तिलमिला उठे । उन्होंने तुरन्त उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री
पं. गोविन्द वल्लभ पन्त को चेतावनी दे डाली कि मैं मौलाना की हार किसी भी
कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता, और अगर मौलाना को आप जिता नहीं सकते, तो
शाम तक मुख्यमंत्री-पद से इस्तीफा दे दीजिए । फिर क्या था ! पंतजी ने
आनन फानन में मुझे (सूचना निदेशक- शम्भूनाथ टण्डन को) बुलाया और रामपुर
के जिलाधिकारी से सम्पर्क कर उसे किसी भी कीमत पर मौलाना आजाद को जिताने
का आदेश देने को कहा” । बकौल टण्डन, उन्होंने पंतजी से जब यह बताया कि
ऐसा करने से देश में दंगे भी भड़क सकते हैं, तो पन्तजी ने कहा कि “देश
जाये भाड़ में, नेहरू जी का हुक़्म है” । फिर तो मौलाना को जिताने के
लिए रामपुर के जिलाधिकरी तलब कर दिए गए । तदोपरांत रामपुर का कोतवाल जीत
की बधाइयां स्वीकार कर रहे सेठ विशनचन्द्र के पास गया और कहा कि आपको
डीएम० साहब बुला रहे हैं । सेठ जी जब जिलाधिकारी से मिले तब उसने कहा कि
मतगणना अभी-अभी दुबारा होने वाली है । हिन्दू महासभा के उस उमीदवार ने
इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मेरे सभी कार्यकर्ता विजय-जुलूस निकाले
हुए हैं, तो ऐसे में आप मेरे मतगणना-एजेंट के बिना दुबारा मतगणना कैसे कर
सकते हैं ? लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई । जिलाधिकारी ने सेठ जी के सामने
ही उनकी मत-पेटी से हजारों मत-पत्र निकाल कर मौलाना की मत-पेटी में
मिलाते हुए साफ़-साफ़ कह दिया कि सेठ जी ! हम अपनी नौकरी बचाने के लिए
आपकी बलि ले रहे हैं, क्योंकि यह नेहरूजी का आदेश है । असहाय बने सेठ जी
देखते रह गए और जिलाधिकारी ने पूर्व घोषित चुनाव-परिणाम को रद्द करते
हुए पुनर्घोषित चुनाव-परिणाम के आधार पर हिन्दू महासभा के उस प्रत्याशी
को चुनाव हरा कर कांग्रेस-प्रत्याशी मौलाना अब्दुल कलाम को विजयी घोषित
कर दिया । इस तरह से हमारे चाचाजी ने कांग्रेस को चुनावी जीत-हार का
मंत्र प्रदान करते हुए लोकतंत्र की स्थापना का श्रेय भी बटोर लिया । उसके
बाद विशनचन्द सेठ सन १९५७ व सन १९६२ में दो-दो बार हिन्दू महासभा से
निर्वाचित हो कर सांसद बने किन्तु प्रथम चुनाव में तो उनका सारा श्रम
नेहरु-कांग्रेस से लोकतंत्र का पाठ पढने में ही व्यर्थ हो गया । उसी
नेहरु-कांग्रेस की विरासत ढो रही वर्तमान सोनिया-कांग्रेस के लोग चुनाव
की ईवीएम-प्रणाली में गडबडी का राग अलाप रहे हैं , तो यह ‘खिसियानी
बिल्ली खम्भा नोचे’ की तरह अत्यन्त हास्यास्पद है ।
• मनोज ज्वाला ; मई’ २०१९
//php// if (!empty($article['pdf'])): ?>
//php// endif; ?>