जनता की अदालत के कठघरे में दिग्विजय सिंह की पेशी !


जनता की अदालत के लोकतंत्री कठघरे में भगवा आतंक नामक
षड्यंत्र-मामले की सुनवाई शुरु हो चुकी है । इस षड्यंत्र की शिकार हुई
साध्वी प्रज्ञा के विरुद्ध कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाने के कारण शासनिक
सत्ता की अदालत ने उन्हें जमानत दे रखा है, जबकि इसके मुख्य रचनाकार-
दिग्विजय सिंह उस अदालती प्रक्रिया से निहायत ‘असंज्ञेय’ ही रहे ।
हॉलाकि संघ-परिवार व अन्य हिन्दू-संगठनों को बदनाम करने हेतु शासनतंत्र
का गलत इस्तेमाल कर ‘हिन्दू-आतंकवाद’ व ‘भगवा-आतंक’ नाम की अनुचित
अवांछित खतरनाक अवधारणा गढने-रचने वाले दिग्विजय सिंह त बहुत पहले स्वयं
ही इस मामले में अपनी भूमिका स्वीकार कर चुके हैं । बावजूद इसके ये महोदय
उस मामले से कानूनन असंज्ञेय रहे तो अब जनता की अदालत ने इन्हें लोकतंत्र
के कठघरे में खींच लिया है । मालूम हो कि कांग्रेस-नेतृत्व वाले
युपीए०-शासन के दौरान जिन दिनों इस्लामी जिहादी आतंक पर पर्दा डालने के
बावत हिन्दू-समाज को आतंकवादी सिद्ध करने का उनका षड्यंत्र शांत-सहिष्णु
हिन्दू समाज के धवल निर्मल पर्दे पर ‘भगवा आतंक’ नाम से फिल्माया जा रहा
था, जिसे देख-सुन कर पूरा देश हतप्रभ था उन्हीं दिनों सिंह जी ने उस
फिल्म के निर्माण का श्रेय स्वयं लेते हुए यह बयान दिया हुआ था कि “भगवा
आतंक पर काम करने के लिए दस-जनपथ को तैयार करने में मुझे चार वर्ष का समय
लग गया” । ऐसे एक नहीं अनेक बयान हैं दिग्विजय सिंह के जो प्रमाणित करते
हैं कि हिन्दू-समाज को आतंकवादी सिद्ध करने के लिए भाडे के मुस्लिम
आतंकियों को हिन्दू-शक्ल दे कर समस्त भारत भर में हिंसक-विस्फोटक हमला
करा कर उसे भगवा आतंक नाम से प्रचारित कराने की योजना इन्हीं के दीमाग की
एक ऊपज थी । इनका नार्को-टेस्ट कराने की कोई जरूरत नहीं है । बहरहाल इनसे
कतिपय सवालों के जवाब ले लेना ही पर्याप्त है ।
....... तो जनता की अदालत में पेश हो चुके दिग्विजय सिंह ! आप यह
बताइए कि कश्मीर घाटी से हिन्दुओं कर सफाया कर देने वाले तथा भारतीय
सुरक्षा-बल के जवानों पर हमला करते रहने वाले और वाराणसी दिल्ली मुम्बई
आदि महानगरों के सार्वजनिक स्थानों पर ही नहीं बल्कि भारत की संसद में भी
बम-विस्फोट करने वाले आतंकियों में सारे के सारे मुस्लिम होने के बावजूद
आपके अनुसार आतंकवाद का कोई धर्म, रंग या मजहब नहीं होता है, तो फिर आपने
अजमेरशरिफ व मालेगांव विस्फोट मामले से महज संयोगवश कुछ हिन्दुओं का नाम
जुड जाने पर उसे ‘हिन्दू आतंकवाद’ व ‘भगवा आतंक’ नाम से कैसे विभूषित कर
दिया ? जिस मालेगांव-विस्फोट मामले में गिरफ्तार ०९ मुस्लिम युवकों ने
अपना वह अपराध कबूल कर लिया था, उसी मामले में उन सभी अपराधियों को रिहा
करा कर हिन्दू युवकों को आरोपित करने-कराने का खेल जांच-एजेन्सियां किसके
इशारे पर खेल रही थीं ? जुलाई २००९ में अमेरिकी सरकार के ट्रेजडी
डिपार्टमेण्ट ने अपने एक एक्स्क्युटिव ऑर्डर (संख्या- १३२२४) में
इस्लामी जिहादी गिरोह- ‘लश्कर-ए- तोएबा एवं ‘अल कायदा’ से जुडे चार
आतंकियों का ब्यौरा जारी करते हुए उन्हें भारत के समझौता
एक्सप्रेस-विस्फोट मामले का आरोपी सिद्ध कर रखा था, जिसके आधार पर
संयुक्त राज्य सुरक्षा परिषद ने इन्हें प्रतिबन्धित कर दिया था और
पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मल्लिक ने भी डॉन अखबार (२३ जनवरी, २०१०)
को दिए साक्षात्कार में साफ-साफ यह स्वीकार किया हुआ था कि “समझौता
एक्सप्रेस-विस्फोट में पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है” तब भी आप उन
मामलों में हिन्दुओं की संलिप्तता का राग आखिर क्यों आलाप रहे थे ? आप इन
सवालों के जवाब नहीं दे सकते तो कम से कम यही बता दीजिए कि मुम्बई-ताज व
शिवाजी टर्मिनल पर हुए विस्फोट में हिन्दू-संगठनों का हाथ कैसे दिखा था
आपको ? और , उस हाथ को हिन्दू प्रमाणित करने के लिए आपने ०६ दिसम्बर २०१०
को जिस अजीज बर्नी की किताब- ‘आरएसएस की साजिश’ का लोकार्पण किया था उसकी
कितनी प्रतियां मुद्रित हुई थीं ? मैं जानता हूं कि जनता की अदालत को आप
यही कहेंगे कि आपको नहीं मालूम । तो लीजिए मैं बताता हूं- नामी-गिरामी
लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तक भी प्रथम संस्करण में जहां एक हजार से अधिक
नहीं छपती हैं, वहीं उस किताब की पच्चीस हजार प्रतियां छपी थीं , पूरे
देश भर में वितरित करने के लिए । उस किताब का लेखन-प्रकाशन आपके भगवा
आतंक नामक षड्यंत्र के तहत ही हुआ था या नहीं ? मैं जानता हूं आप कुछ
नहीं बोलेंगे, क्योंकि जनता की अदालत में उस अजीज बर्नी का बयान पहले ही
आ चुका है । उस किताब का आपके हाथों विमोचन होने के एक साल बाद अजीज
बर्नी ने जनता से माफी मांगते हुए अपने उक्त माफीनामें में यह कह रखा है
कि “भारतीय नागरिक होने के नाते भारत की विदेश नीति के तहत वह हमेशा
भारत-सरकार के फैसले का पक्षधर रहा है किन्तु उस किताब के बावत यु०पी०ए०
सरकार ने उससे जो कहा, वही उसने लिखा” । अब आप कह सकते हैं कि उस दौर की
युपीए० सरकार में किसी पद पर नहीं थे आप । -जाहिर है । लेकिन सरकार की
रिमोट-कण्ट्रोलर का खास प्यादा आप ही थे धिग्गी बाबू । और अगर नहीं, तो
फिर यह बताइए कि टुकडे-टुकडे तारों को जोड-मोड कर भगवा आतंक नामक आपके
षड्यंत्र को एक दैत्य का आकार देने के काम पर आपकी सरकार ने जिस
आई०पी०एस० अधिकारी- हेमन्त करकरे को प्रतिनियुक्त कर रखा था, उस करकरे के सरकारी फोन पर आप किस हैसियत से इस सम्बन्ध में लगातार बातें किया करते थे ? अब आप यह नहीं कह सकते कि बात नहीं करते थे, क्योंकि आप उस आईपीएस अधिकारी के साथ बैठकें भी किया करते थे, जिसका पूरा ब्योरा गृहमंत्रालय के एक अण्डर सेक्रेटरी आरवीएस मणि की पुस्तक में दर्ज है, जबकि करकरे के ‘चूक जाने’ के बाद आप स्वयं यह बयान दे चुके हैं कि ताज में विस्फोट होने से महज दो घण्टे पूर्व करकरे ने फोन पर आपको बता दिया था । क्या बताया
था यह जानने की जरुरत नहीं । और , आपने जब यह तय कर लिया है कि किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं देंगे, तो मत दीजिए, जनता की अदालत भी फैसला कर चुकी है, जो फिलहाल सुरक्षित है ।
• मनोज ज्वाला ; अप्रेल’ २०१९