कांग्रेस का ‘सफेद आतंक’ तार-तार ,
‘भगवा आतंक’ महज दुष्प्रचार
चुनावी वोट-बैंक हेतु एक सम्प्रदाय को तुष्ट करने के निमित्त “आतंक
का कोई मजहब-धर्म नहीं होता और एक सम्प्रदाय-विशेष के लोग ही आतंकी नहीं
हैं” , इस फर्जी सत्य को सिद्ध करने वास्ते हिन्दू-साधु-साध्वी सहित
कतिपय संघ-प्रचारकों को कुछ आतंकी घटनाओं से जबरिया सम्बद्ध कर ‘भगवा
आतंक’ नामक हौव्वा खडा कर देने का कांग्रेसी षड्यंत्र न्यायालय में भी
तार-तार हो गया । इस्लाम के नाम पर जिहाद की हिंसक-विस्फोटक घटनाओं को
अंजाम देने वाले आतंकियों की वजह से देश-दुनिया भर में बदनाम हो चुके एक
सम्प्रदाय-विशेष के बचाव हेतु हिन्दू-समाज के कतिपय संगठनों को भी आतंकी
घोषित-प्रमाणित करने वाले भगवा-आतंक नामक उक्त षड्यंत्र से प्रताडित
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अब संत असीमानन्द सहित लगभग तमाम वे लोग
न्यायालय के द्वारा बरी कर दिए गए जिन्हें युपीए-शासनकाल में
कांग्रेस-नेतृत्व के इशारे पर सरकारी मिशनरियों ने आतंकी घोषित कर जेलों
के भीतर डाल रखा था । युपीए-शासन-२ के दौरान इस्लामी-जिहाद व
मुस्लिम-आतंकवाद के समानान्तर हिन्दू-समाज को भी आतंकी सिद्ध करने के लिए
मालेगांव मस्जीद-विस्फोट काण्ड व समझौता एक्सप्रेस ट्रेन-विस्फोट-काण्ड
जैसे जिहादी मामलों के ९ वास्तविक अपराधियों को उनके द्वारा अपराध
स्वीकार कर लिए जाने के बावजूद जांच-एजेन्सियों से उन्हें आरोप-मुक्त करा
देने और उनके बदले निर्दोष हिन्दू-साधु-साध्वी एवं
संघ-प्रचारकों-स्वयंसेवकों को आरोपित करा कर जेलों में डाल देने के
पश्चात उनसे जबरिया स्वीकारोक्ति बयान दिला कर उसके आधार पर भगवा आतंक का
आविष्कार करने वाली कांग्रेस अब एकबारगी बेनकाब हो चुकी है ।
सफेद झूठ के आधार पर ‘भगवा आतंक’ की निहायत काल्पनिक कहानी
गढना और उसे सत्य सिद्ध करने के लिए देश के शासन-तंत्र का नाजायज
इस्तेमाल करना वस्तुतः कांग्रेस-नेतृत्व की उस आतंकी मानसिकता की
उतरोत्तर अभिवृद्धि एवं षड्यंत्रकारी गतिविधियों की अनुवांशिक व्याप्ति
का प्रमाण परिलक्षित हुआ, जिसके तहत आपात-शासन लागू कर इन्दिरा गांधी ने
अपने तमाम प्रतिद्वंदियों को झूठे-झूठे मामलों में आरोपित कर अमानवीय
तरीके से प्रताडित किया था । सच को झूठ , एवं झूठ को सच ;
घोषित-प्रचारित करना तो पहले से भी एक विशेष प्रकार का कांग्रेसी आतंक
रहा है , किन्तु इस्लामी-जिहादी आतंक को संरक्षण देने के बावत
जिहादी-आतंकियों को निर्दोष और साधु-संतों-साध्वियों को आतंकी के रुप में
आरोपित-प्रताडित करते-कराते हुए सोनिया-कांग्रेस ने ‘भगवा आतंक’ नाम का
जो षड्यंत्र कायम किया था उसे तो कांग्रेस का ‘सफेद आतंक’ ही कहा जा
सकता है, क्योंकि इसकी पूरी व्यूह-रचना सफेद-झूठ पर आधारित थी ।
कांग्रेस के इस ‘भगवा-आतंक’ नामक दुष्प्रचार-हथियार को तार-तार करने के
लिए उन्हीं दिनों मैंने ‘सफेद आतंक – ह्यूम से माइनों तक’ नामक एक पुस्तक
लिखी डाली थी, जिन दिनों साध्वी प्रज्ञा व संत असीमानन्द को
कांग्रेस-नेतृत्व के इशारे पर कांग्रेसी हाकिम-हुक्मरान प्रताडित करते
हुए इस कपोल-कल्पित आतंक की कांग्रेसी पटकथा को फिल्माने में लगे हुए थे
।
दस जनपथ की रानी कही जाने वाली सोनिया माइनों की कांग्रेस के
रणनीतिकारों ने भगवा आतंक का आविष्कार असल में इन्हीं मैडम के पप्पू को
प्रधानमंत्री बनाने वास्ते अपने मस्लिम-वोट-बैंक सुरक्षित करने तथा
संघ-भाजपा-मोदी की राह रोकने और उनके गैर-कांग्रेसी वोट-बैंक में भी सेंध
लगाने की दूरगामी योजना के तहत की थी । यह वह दौर था जब संसद पर हमला
करने वाले आतंकी अफजल की फांसी को टालती रही थी कांग्रेसी-सरकार और उधर
पाकिस्तान-प्रायोजित मुस्लिम आतंकियों द्वारा एक से एक जिहादी
बम-विस्फोटों को दिया जा रहा था अंजाम । जबकि , राष्ट्रमण्डल-खेल, २-जी
स्पेक्ट्रम व आदर्श सोसाइटी आदि विविध घोटालों के खुलासे तो कांग्रेस की
कोढ में खाज के समान ऐसे बजबजा रहे थे कि पप्पू को जनता के बीच स्थापित
करना और उसे सियासी मुकाम तक पहुंचाना मुश्किल होता प्रतीत होने लगा था ।
ऐसे में जिहादी आतंकवाद के संरक्षण तथा धर्मान्तरणकारी साम्प्रदायिक
तुष्टिकरण और घपलों-घोटालों के उद्भेदन से कांग्रेस की साख जब तेजी से
गिरने लगी और भाजपा मोदी की लोकप्रियता बढने लगी, तब दस-जनपथ की मैडम के
दरबार में ताता-थैया करते रहने वाले ढोकचियों-तबलचियों ने उनके पप्पू की
राजनीति चमकाने के बावत किसिम-किसिम की युक्तियां पेश की । मसलन यह कि
कुछ हिंसक-विस्फोटक-जिहादी घटनाओं के आरोपियों में कुछ साधु-संतों व
संघ-स्वयंसेवकों-नेताओं के नाम संलग्न कर दिए जाएं और उनकी उस संलग्नता
को हिन्दू-आतंक या भगवा आतंक के रुप में प्रचारित किया जाए तो इससे जनता
का ध्यान भी बंट जाएगा तथा जिहादी आतंकियों पर कार्रवाई का दबाव ही नहीं
झेलना पडेगा और मुस्लिम वोटबैंक तुष्ट-पुष्ट हो जाएगा तो
संघ-भाजपा-मोदी के विरुद्ध एक बडा मुद्दा भी खडा हो जाएगा । जैसा कि
दिग्विजय सिंह ने उन दिनों कहा भी था- “भगवा आतंक को राष्ट्रीय मुद्दा
बनाने के लिए दस-जनपथ को तैयार करने में मुझे चार वर्ष का समय लग गया” ।
जाहिर है, बहुत सोच-समझ कर गहन विचार-मन्थन के पश्चात रचा-गढा गया था-
भगवा आतंक नामक षड्यंत्र , जिसके तहत एक ओर पप्पू को संघ के विरुद्ध
आपत्तिजनक बयान देते रहने और इसके मास्टर-माइण्ड दिग्विजय सिंह को
साधु-संतों के खिलाफ कुछ भी बोलते-भौंकते रहने के लिए मुस्तैद कर दिया
गया, तो दूसरी ओर पुलिस की विभिन्न जांच-एजेन्सियों को जिहादी-आतंकी
मामलों में असली आरोपियों को छोड देने और लक्षित लोगों को आरोपी बनाने
के गुप्त निर्देश दिए जाते रहे ।
‘भगवा आतंक’ नामक इस षड्यंत्र की कहानी को रचने-गढने में
कांग्रेस के अनेक रणनीतिकारों के अनेकानेक बददिमाग लगे हुए थे , जिसके
कारण इसके कथ्य व कथानक परस्पर उलझते गए । इस षड्यंत्र की रचना में
कांग्रेस-नेतृत्व ने केन्द्र-सरकार की सी०बी०आई० से ले कर एन०आई०ए०
(नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेन्सी) और महाराष्ट्र-पुलिस की एटीएस (आतंक
निरोधक दस्ता) तक का बेजा इस्तेमाल किया । इन एजेन्सियों के माध्यम से
मालेगांव धमाका, मक्का-मस्जीद बम-विस्फोट, अजमेर शरिफ विस्फोट काण्ड तथा
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामलों में सोनिया मैडम के ढोलची-तबलची
दरबारियों निर्देशानुसार असली आरोपियों को आरोप-मुक्त कर उनके स्थान पर
साध्वी प्रज्ञा व संत असीमानन्द सहित संघ के कतिपय स्वयंसेवकों को आरोपित
कर उनसे जबरिया उनके स्वीकारोक्ति बयान लिए जाते रहे । कभी नार्को टेस्ट
की आड में कभी तो कभी ब्रेन मैपिंग व पॉलीग्राफी की ढाल में इन बेकसूर
लोगों को कसूरवार सिद्ध करने का पुलिसिया मशक्कत किया जाता रहा और
मीडिया में सनसनी खेज खबरें जारी की जाती रहीं । और तो और , इस
कपोल-कल्पित कहानी को विश्वसनीय बनाने के लिए सेना के कुछ अधिकारियों
(कर्नल पुरोहित आदि) को भी घसिट लिया गया, यह कहते हुए कि इन्होंने ही
साधु-संतों को सैन्य-भण्डार से आरडीएक्स नामक विस्फोटक उपलब्ध कराये ।
अलबत्ता, तत्कालीन सेनाध्यक्ष ने जब यह खुलासा किया कि सेना के भण्डार
में आरडीएक्स रहता ही नहीं तब इस कहानी के रचनाकारों ने निर्लज्जतापूर्वक
अपने दांत निपोर लिए थे ।
मालूम हो कि जिन दिनों दस जनपथ पर मैडम की पालकी ढोने वाले
बयानबहादुर कांग्रेसी भांटगण देशवासियों को भगवा आतंक नामक जुमला सुनाने
में लगे हुए थे, उन्हीं दिनों (०१ जुलाई २००९) अमेरिकी सरकार के ट्रेजडी
डिपार्टमेण्ट ने अपने एक एक्स्क्युटिव ऑर्डर (संख्या- १३२२४) में
इस्लामी जिहादी गिरोह- ‘लश्करे तोएबा और ‘अल कायदा’ से जुडे चार आतंकियों
का ब्यौरा जारी करते हुए उन्हें भारत के समझौता एक्सप्रेस-विस्फोट मामले
का आरोपी सिद्ध कर रखा था, जिसके आधार पर संयुक्त राज्य सुरक्षा परिषद ने
इन्हें प्रतिबन्धित कर दिया था । इतना ही नहीं, पाकिस्तान के गृहमंत्री
रहमान मल्लिक ने भी डॉन अखबार (२३ जनवरी, २०१०) को दिए साक्षात्कार में
साफ-साफ यह स्वीकार किया हुआ था कि “समझौता एक्सप्रेस-विस्फोट में
पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ है” । तब भी सोनिया कांग्रेस के निर्लज्ज
ढोलची तबलची भगवा आतंक का ही राग आलापते रहे तथा प्रधानमंत्री का उनका
उम्मीदवार संघ को लश्कर-ए-तोएबा व जैश-ए-मोहम्मद से ज्यादा खतरनाक बताने
वाले शब्दों से खेलता रहा और जिन ०९ मुस्लिम युवकों ने मालेगांव-विस्फोट
को अंजाम देने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था अथवा ‘सिम्मी’ के जिन
आतंकियों ने समझौता एक्सप्रेस धमाका मामले की जिम्मेवरी स्वयं ही ली हुई
थी, उन सबको आरोपित करने से जांच-एजेन्सियां कतराती रहीं ; जबकि जिन
साध्वी-संतो-स्वयंसेवकों का ऐसे किसी भी मामले से दूर-दूर का भी कोई
सम्बन्ध नहीं रहा था, उन्हें आरोपित कर ‘भगवा आतंक’ की फर्जी कहानी पूरे
देश को सुनाती रही । अब जब न्यायालय ने ऐसे तमाम निर्दोष लोगों को बरी कर
दिया है, तब जाहिर है कांग्रेस का यह ‘सफेद-आतंक’ असली सिद्ध हो चुका है
और कपोल-कल्पित भगवा आतंक की पूरी कहानी नकली प्रमाणित हो चुकी है ।
लेकिन असली आरोपियों-दोषियों को बचाने और निर्दोष लोगों को फंसाने वाले
कांग्रेसी ढोलचियों-तबलचियों को दण्डित किये बिना पिडितों को न्यायालय
द्वारा बरी कर देना भी एक विड्म्बना ही है । न्याय हुआ तो तब माना जाता
जब षड्यंत्रकारी कांग्रेसी सफेद-आतंकियों को दण्डित किया गया होता ।
• मनोज ज्वाला ; मार्च’२०१९
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