अक्षयवट का लोक-पदार्पण भावी अनीति-उन्मूलन का लक्षण
पिछले चार सौ पच्चीस वर्षों से प्रयागराज-स्थित ‘अकबर का किला’
नामक एक मस्जीद में कैद ‘अक्षयवट’ का अब सामान्य श्रद्धालुओं के बीच
पदार्पण हो चुका है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उतरप्रदेश के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोडी ने युगों-युगों से प्रलय व सृजन का
अमर साक्षी रहने वाले इस पौराणिक सार्वकालिक अक्षयवट का दर्शन-पूजन करने
के पश्चात इसे मुक्त करने का जो ऐतिहासिक काम किया है, सो देखने में भले
साधारण प्रतीत हो , किन्तु यह एक असाधारण परिघटना है ।
मत्स्य पुराण में वर्णन है कि जब प्रलय आता है, तब उस समय भी इस
अक्षयवट का नाश नहीं होता , क्योंकि सृष्टिकर्ता पुनःनई सृष्टि की रचना
इस वृक्ष पर से ही करते हैं । इसी कारण इस वटवृक्ष का नाम ‘अक्षयवट’ है ।
ऐसी भी मान्यता है कि इसी वटवृक्ष के नीचे सावित्री को उसके मृत पति के
पुनर्जीवन का वरदान मिला था । इस वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में
विष्णु व शीर्ष पर शिव का वास माना गया है । जैन और बौद्ध पन्थ में भी इस
अक्षयवट को पूजनीय माना गया है । बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट इस अक्षय
वट का ही एक बीज बोया था । जैनियों के आदि तीर्थंकर- ऋषभदेव ने अक्षय वट
के नीचे ही तपस्या की थी । प्रयागराज में इस स्थान को ‘ऋषभदेव की
तपस्थली’ और ‘तपोवन’ के नाम से भी जाना जाता है । रामायण में भी इस
अक्षयवट का उल्लेख है । वनवास के दौरान यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते
ही सीता माता ने इस ‘अक्षयवट’ को प्रणाम किया था । इतिहास में प्रलय व
सृजन के प्रतीक इस अक्षयवट की व्याप्ति व परिणति बडी त्रासदपूर्ण है ।
मालूम हो कि जिस अकबर ने प्रयागराज का नाम बदल कर
‘अल्लाहाबाद’ कर दिया था , उसने त्रिवेणी-तट पर यमुना किनारे अपना एक
किला भी स्थापित कराया था । किला के लिए उसने जिस स्थान का चयन किया था ,
वहां अनेक मन्दिरों के मध्य यह अक्षयवट लहलहा रहा था । सो आनन-फानन में
शाही फरमान से वहां के सभी मन्दिर तोड डाले गए और अक्षयवट को उक्त किला
के घेरे में कैद कर लिया गया । जाहिर है, उसके बाद हिन्दू श्रद्धालुजन
ऐसे श्रद्धा-सिक्त अक्षयवट के दर्शन से भी वंचित रहने लगे थे ।
परन्तु उस किले की चारदीवारी के भीतर कैद अवस्था में भी वह
वटवृक्ष सनातन धर्म की चिरंतनता का संदेश सुवासित करता रहा, जो अकबर को
रास नहीं आया । इसीलिए उसके आदेश पर वर्षों तक इस वटवृक्ष की जड़ों में
गर्म तेल डाला जाता रहा , ताकि यह सूख कर नष्ट हो जाए । लेकिन इसकी
हरियाली यथावत बनी रही । फिर अकबर का उतराधिकारी जहाँगीर भी उस अक्षयवट
का क्षय करने की मशक्कत करने लगा । उसने इसमें आग लगवा कर इसे नष्ट करने
का यत्न किया और अन्ततः इसे कटवा दिया । किन्तु जिस वटवृक्ष का प्रलय
में भी क्षय नहीं होने के कारण ही ‘अक्षयवट’ नाम पडा है , उसे नष्ट कर
पाना सम्भव नहीं हो सका । यह वटवृक्ष पनपता रहा और ‘अक्षयवट’ होने की
प्रामाणिकता सिद्ध करता रहा । जहाँगीर के बाद भी मुगलों ने इस वृक्ष को
नष्ट करने का प्रयास किया. लेकिन यह वटवृक्ष सभी प्रहारों का प्रतिकार
करता हुआ अक्षयवट बना रहा । इतना ही नहीं, बल्कि जिस तरह से कभी
असुराधिपति रावण के दरबारियों द्वारा महाबलि हनुमान की पूंछ में आग लगाया
जाना उसके राज-पाट-वैभव-विलास के नाश का कारण बना, उसी तरह मुगल शासकों
द्वारा इस अक्षयवट पर बहुविध प्रहार किये जाने के परिणामस्वरुप वह
मुगलिया सलतनत भी पतन-पराभव का शिकार हो कर अंग्रेजों के हाथों समाप्त हो
गया ।
अंग्रेज-शासकों ने इस वटवृक्ष पर कोई प्रहार तो नहीं किया,
किन्तु उनने इसकी कैद को कायम ही रखा । अंग्रेजों के बाद अकबर का वह किला
यद्यपि भारतीय सेना के नियंत्रण में हो गया, तथापि उसकी चारदीवारी के
भीतर अवस्थित ‘अक्षयवट’ आम श्रद्धालुओं की पहुंच से दूर ही रहा ।
साधु-सन्तों-श्रद्धालुओं द्वारा राज्य और केन्द्र की सरकारों से इस
अक्षयवट को मुक्त कर देने-सम्बन्धी प्रार्थना-याचना लगातार की जाती रही,
किन्तु ‘धर्मनिरपेक्षता’ नामक ‘घोर साम्प्रदायिकता’ की घिनौनी सोच से
ग्रसित कांग्रेसियों-समाजवादियों की सरकारें हजरत मोहम्मद के किसी
कल्पित-प्रक्षेपित ‘बाल’ से युक्त एवं आतंकी गतिविधियों में लिप्त एक
दरगाह के प्रति श्रद्धा-निष्ठा तो जताती रहीं, किन्तु युगों-युगों से
भारत राष्ट्र की सनातनता का बोध कराते रहने वाले इस दिव्य-वृक्ष को
जन-सुलभ करने के प्रति उदासीन ही बनी रहीं । ऐसे में कांग्रेस-बसपा-सपा
का सफाया हो जाने और अप्रत्याशित रुप से भाजपा की सत्ता कायम हो जाने के
व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो हिन्दूत्व-विरोधी अनैतिक राजनीति को
युगो-युगों से चुनौती देते रहने वाले इस लोक-श्रद्धा-सम्पन्न ‘अक्षयवट’
के अब कैद-समापन अर्थात ‘लोक-पदार्पण’ की यह असाधारण परिघटना अनेक भावी राजनैतिक अनीतियों- अवांछनीयताओं के उन्मूलन का लक्षण भी है ; क्योंकि
संहार व सृजन का क्रियान्वयन ही इसके युगान्तरकारी अस्तित्व का प्रयोजन है ।
• मनोज ज्वाला; जनवरी’ २०१९
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