अल्लाहबाद का अवसान, अकबर का भी हो तिरोधान


संगम-तट पर बसे पौराणिक महानगर को ‘प्रयागराज’ नाम से उसकी
वास्तविक पहचान दे दिए जाने के साथ ही ‘इण्डिया दैट इज भारत’ के
वाम-बुद्धिबाजों और धर्मनिरपेक्षी राजनीतिकारों की भृकुटियां चढी हुई हैं
। ये वे लोग हैं, जिन्हें भारत को भारत कहने-मानने में पिछडेपन का बोध
होता है और इसे इण्डिया कहने में प्रगतिशीलता का गर्व होता है । दर-असल
ये लोग अंग्रेजी औपनिवेशिक सोच व साजिश की चेरी बनी कांग्रेसी राजनीति
को बौद्धिक सेवायें व ऐतिहासिक सुविधायें प्रदान करते रहने वाले उस
अंग्रेजीदां वर्ग से सम्बद्ध हैं, जिसने ब्रिटिश-संसद से पारित ‘इण्डियन
कांउसिल एक्ट’ (१८६१-९२) और ‘गवर्ण्मेण्ट आफ इण्डिया एक्ट’ (१९३५) की
कण्डिकाओं को ही लाखों साल प्राचीन भारतवर्ष नामक सनातन राष्ट्र व समाज
का नियन्ता-नियामक सदृश ‘संविधान’ का रुप दे कर उस पर ‘इण्डिया’ की मुहर
लगा रखा है । ये लोग सन १९४७ से पहले के भारत को राष्ट्र तो मानते ही
नहीं हैं , बाबर से पहले बहुत खींच-तान कर सिकन्दर तक जाते-जाते ही थक
जाते हैं और वहीं से भारत के इतिहास का आरम्भ हुआ मानते हैं । जाहिर है ,
इनकी कमजोर बौद्धिकता वेद-पुराण-उपनिषद-रामायण-महाभारत के चिर-पुरातन
अस्तित्व को सहन कर पाने में इस कदर अक्षम है कि ऋषि वशिष्ठ,
विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, सगर, भगीरथ, जैसे ऋषियों व राम,
कृष्ण, कौरव-पाण्डव आदि महामानवों की तो छोडिए
चरक-आर्यभट्ट-चाणक्य-वराहमिहिर जैसे विद्वानों और
चन्द्रगुप्त-विक्रमादित्य-महाराणाप्रताप जैसे राजाओं-योद्धाओं के नाम
सुनते ही ये लोग असहज हो जाते हैं और अपनी झेंप मिटाने के लिए सिकन्दर को
‘विश्व-विजेता’ और अकबर को ‘महान’ बनाने-बताने की कलाबाजियां दिखाने
लगते हैं । गंगा व यमुना नदी के साथ मिल कर संगम बनाने वाली सरस्वती नदी
से भी अपरिचित या जान-बूझ कर उसका अस्तित्व नकारते रहे ऐसे लोग संगम-तट
पर अवस्थित इस महानगर की पौराणिकता ऐतिहासिकता और धार्मिक-सांस्कृतिक
महत्ता को भला कैसे स्वीकार सकते हैं ? भारत की सनातन-वैदिक संस्कृति के
विरूद्ध कपोल-कल्पित ‘गंगा-जमुनी’ संस्कृति की वकालत करते रहे इन
धर्मनिरपेक्षी राजनीतिकारों और वामपंथी बुद्धिबाजों की मानें तो इस
महानगर का नाम ‘अल्लाहाबाद’ ही रहना चाहिए था ; क्योंकि वह नामकरण उस
अकबर ने किया हुआ था , जिसे महान बनाने-बताने में ये लोग इतिहास के
पृष्ठों की भी उसी तरह ऐसी-तैसी करते रहे हैं , जिस तरह से इनका वह
तथाकथित महानायक प्रथम यज्ञ-स्थल अर्थात ‘प्रयाग’ में तोड-फोड-हिंसा-आतंक
बरपा कर उसे पद-दलित व परिवर्ततित किया था ।
इतिहास में अकबर की महानता का बखान मुस्लिम-तुष्टिकरण के
उद्देश्य से सर्वथा प्रायोजित और सुनियोजित है । सच तो यह है कि अकबर
अव्वल दर्जे का आतंकी, जिहादी, बलातकारी, ऐय्यास , धोखेबाज , फिरकापरस्त
, हिन्दू-विरोधी और इस्लामी कट्टरवादी था । उसने तीर्थनगर- प्रयागराज पर
कब्जा करने के साथ ही वहां की हिन्दू-आबादी का बेहिसाब कत्लेआम करने के
बाद सभी भवनों को ध्वस्त करा दिया था और संगम-तट के सभी मंदिरों व घाटों
को तुडवा कर इस कदर विरान कर दिया था कि उसके दुःखद साक्ष्य आज भी
धर्म-परायण लोगों को चुभते हैं । प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टाड ने लिखा
है- “सन १५६७ में अकबर ने कांगडा मंदिर को लूट कर वहां की मूर्तियों को
खण्डित किया और फिर गायों का कत्ल कर गौ-रक्त को जूतों में भर कर उससे
मंदिर की प्राचीरों पर छाप लगाई । इसी तरह से उसने एकलिंग की मूर्ति तोड
डाली और वहां नमाज पढी ।” अकबर की जीवन और शासन पर शोध करने वाले
इतिहासकार- विण्सेन्ट स्मिथ ने लिखा है- “अकबर एक दुष्कर्मी व घृणित
व्यक्ति था और नृशंस हत्यायें करने वाला क्रूर शासक था । उसकी नसों में
एक बूंद भी भारतीय खून नहीं था, वह मुगल से अधिक तुर्क था ।” ऐसे ही अकबर
को जवाहरलाल नेहरु ने अपनी ‘डिस्कवरी आफ इण्डिया’ में ‘महान कहा है ।
इस तथ्य के सत्य की पुष्टि अकबर के ही एक दरबारी तारीखदां अबुल फजल
द्वारा लिखे गए ‘अकबरनामा’ के इन शब्दों से हो जाती है- “अकबर जब १४ साल
का था तब उसके संरक्षक बैरम खां ने बुरी तरह से घायल निहत्थे हिन्दू
राजा- हेमू को बांध कर उसके सामने पेश करते हुए कहा कि इस काफिर का कतल
कर के गाजी होना कबूल करो और अकबर ने वैसा ही किया- सिर को धड से अलग कर
दिया । इतना ही नहीं, उसने हेमू के सिर को काबुल भिजवा दिया और धड को
दिल्ली-दरवाजे पर टंगवा दिया ।” अबुल फजल ने यह भी लिखा है- “फिर हेमू के
बृद्ध पिता को जीवित पेश किया गया और इस्लाम कबूल करने का हुक्म फरमाया
गया । किन्तु उसने इंकार कर दिया तब मौलाना पीर मोहम्मद के हाथों उसका
सिर कलम करा दिया गया ।” अंग्रेज लेखकद्वय- एलियट और डाउसन विरचित
पुस्तक- ‘अकबरनामा-अबुल फजल’ में पृष्ठ- २१ पर लिखा है- “०२ सितम्बर १५७३
को अकबर ने अहमदाबाद में लगभग दो हजार हिन्दुओं का कतल करवा कर उनके
सिरों की मीनार बनवा कर अपने दादा- बाबर का रिकार्ड तोड दिया । इसी तरह
मार्च १५७५ में अकबर ने बंगाल-विजय के दौरान इतना कत्लेआम किया-कराया कि
धडों से अलग हुए सिरों की उसने आठ मीनारें बनवायी । उस युद्ध में हारे
हुए बंगाल के शासक ने मरते वक्त पानी मांगा तो उसे जूते में भर पानी
पिलाया ।” अकबरनामा में यह भी दर्ज है कि अकबर विजित क्षेत्र की
स्त्रियों का अपहरण करा कर उनसे अपने हरम को समृद्ध करता था । उसके महल
का हरम हजारों स्त्रियों से भरा हुआ होता था, जिन्हें वह स्वयं के और
अपने खास मेहमानों व सैनिकों के हवश का शिकार बनाते रहता था । उसने स्वयं
३८ क्षत्राणियों से शादियां की थी किन्तु किसी एक भी मुस्लिम स्त्री की
शादी किसी हिन्दू से नहीं होने दी थी । प्रसिद्ध इतिहासकार आर०सी०मजुमदार
ने ‘दी मुगल एम्पायर’ में लिखा है- “अकबर की गन्दी नजर गोण्डवाना की
विधवा रानी दुर्गावती पर भी थी, जिसके कारण अपनी हवश बुझाने के लिए उसने
उस पर आक्रमण किया था, किन्तु रानी की वीरता के समक्ष वह टिक नहीं पाया
।” अकबर इतनी गन्दी प्रवृति का ऐसा हवशी शैतान था कि वह हर साल की पहली
शाम को राजधानी में सिर्फ स्त्रियों का मीना बाजार लगवाता था, जिसके बावत
उसके दरबारियों को उसका हुक्म होता था कि वे अपनी-अपनी स्त्रियों को शहर
की अन्य स्त्रियों के साथ उस बाजार में भेजें । वह स्वयं भी स्त्री वेश
में उस बाजार में जाता और वहां जो स्त्रियां उसे पसंद आतीं उन्हें शाही
सैनिक उठा ला कर उसके हरम में धकेल देते, जिनके साथ वह महिनों मनमानी
करता था ।
नेहरु और उनके पिट्ठुओं का आदर्श बना अकबर महान एहसानफरामोस भी
इतना था कि उसे गाजी बनाने वाले जिस बैरम खां ने उसके बचपन से ले कर
बादशाह बनने तक एक पिता की तरह उसकी परवरिश की थी उसी की उसने बाद में
हत्या कर दी और उसकी विबी से स्वयं निकाह कर लिया था । वह इस्लामी शरीअत
के प्रति भी वफादार नहीं था और स्वयं को रुहानी ताकत वला सिद्ध करने के
लिए न केवल ऐसा प्रचारित कर रखा था कि उसके पैरों को धो कर पीने से किसी
की भी लाईलाज बीमारी ठीक हो सकती है , बल्कि वह जबरिया ऐसा कराता भी था ।
उसने मुसलमानों के बीच यह फरमान जारी कराया था कि वे “अस्सल्लाम वालेकुम”
के बाजाये “अल्लाह ओ अकबर” कह कर परस्पर अभिवादन करें । इसी तरह से उसने
हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक उपनिषद- “अल्लाहोपनिषद” लिखवाया था,
जिसमें स्वयं को खलीफा के तौर पेश कराया था । उसके उस फर्जीवाडे का
उल्लेख महर्षि दयानन्द सरस्वती के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में भी है ।
इस तरह से स्पष्ट है कि हमारे देश के प्रचलित इतिहास में
अकबर की महानता के बावत जो भी पढने को मिलता है उसमें सच्चाई ‘राई’ के
बराबर भी नहीं है । किन्तु नेहरु ने जब उसे महान कह दिया तब नेहरु की
कांग्रेसी सत्ता से पोषित-उपकृत इतिहासकारों व बुद्धिबाजों की पूरी
वामपंथी फौज ही उसे महान प्रमाणित करने और उसकी महानता में
धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा, सहिष्णुता , न्यायकारिता आदि के पुट भर-भर कर
चार चांद लगाने का काम किया । ऐसे में अब उतर प्रदेश की भाजपाई सरकार
द्वारा ब्रह्मा के उस प्रथम यज्ञ-स्थल को उसका वास्तविक नाम प्रदान कर
दिए जाने से संगम की धारा में अल्लाहाबाद का अवसान तो हो गया, किन्तु
अकबर की तथाकथित महानता का तिरोधान होना भी आवश्यक है ; क्योंकि तभी
हमारी पीढियों को ‘प्रयागराज’ नाम की पुनर्प्रतिष्ठा की सार्थकता समझ में
आएगी ।
• मनोज ज्वाला ; अक्तुबर’ २०१८