किसिम-किसिम के बौद्धिक प्रपंच ; अर्थात सफेद आतंक

आतंकवाद के मुद्दे पर अपने देश के धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं व अंग्रेजी मानसभूमि के तथाकथित बुद्धिजीवियों की नीति , नीयत व भूमिका से आतंक का एक छद्म प्रकार ही अब आकार ले चुका है । आपको याद होगा कि एक बार देश के कांग्रेसी गृहमंत्री सभी तत्कालीन मुख्य मन्त्रियों को यह निर्देश दे रखे थे कि आतंकी मामलों में मुसलमानो की गिरफ्तारी से परहेज करें, तो देश का पूर्व कानून मंत्री रहे एक अधिवक्ता उन्हीं दिनों कश्मीरी अलगाववादी आतंक के समर्थन में खडा हो कर आतंकियों के विरूद्ध वहां तैनात सेना को हटाने तथा कश्मीर को भारत से अलग करने की आतंकी योजना के अनुरूप वहां जनमत-संग्रह कराने की वकालत करने लगे थे । वही कुख्यात अधिवक्ता
कभी नक्सली आतंक के विरुद मोर्चा सम्भाले सरकारी सुरक्षा-बलों को हटाने की भी पैरबी करता रहा है । आप यह तो कतई नहीं भुले होइएगा कि कभी उतर प्रदेश का मुख्यमंत्री आतंकी वारदातों के आरोपी मुसलमानों पर से तत्सम्बन्धी मुकदमें वापस लेने की अपनी चुनावी घोषणा पर अमल करने का सरकारी अभियान चला रहा था, जिस पर न्यायालय द्वारा आपत्ति जतायी गई थी । बावजूद उसके बाप-बेटा भाई-भौजाई के समाज और वाद की उस पार्टी के नेताजी ने आतंकियो के एक घोषित सरगना को राज्य-सभा का सांसद ही बना डाले थे । उधर केरल का मुख्य मंत्री भीषण हिंसक विस्फोट्क आतंकी की जेल से रिहाई का प्रस्ताव ही विधान सभा से पारित करवा चुका होता है, तो इधर तमिलनाडू का मुख्यमंत्री जेल में बंद किसी भारी-भरकम आतंकी की देह-मालीस के लिये चिकित्सकों की सरकारी नियुक्ति ही कर डालता है । कभी प्रेस- काउंसिल का अध्यक्ष ही मुम्बई सीरियल-ब्लास्ट के आरोपी 'मुन्नाभाई' को राष्ट्रपति से क्षमादान दिलाने की वकालत करने लगता है, तो कभी मैग्सेसे पुरस्कार- सम्मानित लेखक-लेखिका कश्मीरी अलगाववादी के साथ देश की राजधानी में ही कश्मीर को भारत से अलग कराने का सेमिनार आयोजित करते फिरते रहे हैं । और तो और, वर्षों से घटित हो रहे आतंकी वारदातों को मुस्लिम संगठनों का जिहाद प्रमाणित होते रहने पर उस सम्प्रदाय विशेष के तुष्टिकरण हेतु ऐसे-ऐसे राजनेताओं व बुद्धीजिवियों द्वारा उस जिहादी-आतंक के समानान्तर भगवा-आतंक नाम का एक षड्यंत्र भी रचा जा चुका है इस देश में , तब आतंक के इस छद्म प्रकार की शिनाख्त करना आवश्यक प्रतीत होता है।
यद्यपि आतंक और आतंकवाद का कोई रंग नही होता,तथापि जिस आतंक से लाल हो जाती हो धरती,अथवा खून बहना-बहाना ही होती है, जिसकी परिणति, उस आतंक को “लाल आतंक”या खूनी आतंक कह बैठते हैं लोग ; जबकि उस खूनी आतंक को जन्म देना, अथवा उसका पालन-पोषण-संरक्षण-समर्थन करना भी समान परिणामदायी होने के कारण एक तरह का आतंक ही है । मेरा मानना है कि इस देश में दो तरह के आतंक विद्यमान हैं- एक वह जो बम-बन्दूक-गोला-बारूद से क्रियान्वित होता है ; और दूसरा वह जो ऐसे हिंसाचारों को प्रेरित-प्रोत्साहित-संरक्षित करता है । चूंकि आतंकी गतिविधियों का संरक्षण-समर्थन भी आतंक ही है, तो ऐसे में इस दृष्टि से देखने पर आप पायेंगे कि मोटे तौर पर आतंक के दो भेद हैं- रक्तरंजित व रक्तहीन या क्रियात्मक व विचारात्मक अर्थात खूनी और सफेद । सूक्ष्म रूप में होने की वजह से दिखाई नहीं पडनेवाला यह सफेद बौद्धिक-बैचारिक--राजनैतिक आतंक ही वास्तव में दिखाई पडनेवाले लाल –रक्तिम - हिंसक आतंक का संरक्षक-समर्थक होता है । तोड-फोड , दंगा-फसाद आदि खूनी आतंक के जो भी घटक हैं, उन सबका जनक-पालक-पोषक यह ‘सफेद-आतंक’ ही होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि खूनी आतंक जो है सो हिंसक तोड-फोड युक्त स्थूल-प्रत्यक्ष-क्रियात्मक आतंक है ; तो ‘सफेद-आतंक’ स्वार्थजनित पक्षपात व भेदभावपूर्वक सही को गलत व गलत को सही तथा सत्य को असत्य एवं असत्य हो सत्य , यथा - आतंकी को निर्दोष व संत को आतंकी तथा राष्ट्रीयता को साम्प्रदायिकता व साम्प्रदायिकता को धर्मनिरपेक्षता घोषित-प्रचारित करने की हेहरई-थेथरई युक्त बौद्धिक-बैचारिक-राजनैतिक आतंक है । यह सफेद-आतंक बम-बन्दूक-गोला-बारूद से नही, बल्कि समाचार-संचार माध्यमों , अखबारी बयानों व कल्पित आख्यानों और गोष्ठियों-सभाओं से विस्तार.पाता है । ,विश्वव्यापी ‘इस्लामी जिहादी आतंक’ हो या क्रिश्चियन-क्रूसेड-टेरर ; साम्यवादी-लेनीनवादी-मार्क्सवादी सर्वहारा आतंक हो , या माओवादी-नक्सलवादी-जनवादी हिंसक प्रतिरोध ; या फिर कश्मीरी अलगाववादी आतंक हो या पुर्वोत्तर भारत में व्याप्तचर्च का आतंकी षड्यंत्र ; इन सबको प्राप्त है किसी न किसी राजसता व राजनीतिक शक्ति-संगठन का संरक्षण और ; इन सबके लिये यह सफेद- आतंक तैयार करता है वातावरण ।
इस आतंकवाद का भारत में बहुत पूराना इतिहास नहीं है । यह यहां विदेशी आक्रमणकारियों के साथ आया , जिसे अंग्रेजों ने अपनी सता के आतंक पर सफेद आवरण डालने के लिये रचा गढा व खडा किया हुआ था ।
मैकाले-शिक्षण पद्धति के सांचे में ढले अंगरेजी-परस्त बुद्धिजीवियों के एक समुदाय और उस समुदाय के लोगों को गोलबंद करने के लिए अभारतीय अंग्रेजी राजसत्ता के हाथों स्थापित हुई कांग्रेस वस्तुतः सफेद आतंक निर्माण की कार्यशाला ही रही है । वर्ष १८५७ के बाद ईजाद हुआ यह सफेद-आतंक इसी समुदाय द्वारा इसकी बुद्धिबाजी से ढाया जाता रहा है । स्वतंत्रता-संघर्ष के दौरान राष्ट्रभक्त-कांग्रेसियों-क्रांतिकारियों के विरुद्ध राजभक्त-कांग्रेसियों का अंग्रेज-परस्त अनर्गल प्रलाप हो, या मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस व सावरकर के विरुद्ध कांग्रेसी दुष्प्रचार का विलाप ; अलगाववादी मुस्लिम-लीग का हिंसक दंगाई डायरेक्ट-ऐक्सन हो , या उससे भयभीत कांग्रेस का तत्कालीन राजनीतिक क्रियान्वयन,जिससे हुआ देश-विभाजन और स्वतंत्रता-पश्चात जवाहरलाल द्वारा पैदा किया गया कश्मीर-विवाद हो या नेहरु के निधनोपरान्त इन्दिरा गांधी द्वारा थोपा गया आपात ,पंजाब का वह अलगाववाद हो या सन ८४ का सिक्ख-कत्लेआम, अयोध्या का मंदिर-मस्जिद मामला हो या गोधरा-गुजरात-संहार , सब इसी सफेद-आतंक के परिणाम थे । जबकि, न्यायालय द्वारा नरेन्द्र मोदी को ‘क्लीन-चिट’ दे दिये जाने के बावजूद कांग्रेस के नेताओं द्वारा उन्हें दंगाई विनाशकारी मौत के सौदागर घोषित करना और जिस कांग्रेस के शासन में सैकडों दंगे हो चुके जिसके नोताओं को सिक्ख-कत्लेआम का गुनहगार प्रमाणित किया जा चुका है उसी कांग्रेस और उसकी चाकरी में लगे तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा किसी असत्य को हजार- हजार बार दुहरा कर उसे ही सत्य का जामा पहना देने की भंति भाजपा को जबरन साम्प्रदायिक सिद्ध किया जाता रहना उनका सफेद-आतंक ही है ।
दरअसल , भारत की सनातन राष्ट्रीयता के उभार को रोकने हेतु थॉमस मैकाले और ए० ओ० ह्यूम की दुरभिसंधि से पैदा हुआ यह बुद्धिजीवी समुदाय और कांग्रेस, दोनों , तब से लेकर अब सोनिया माईनो के हाथों संचालित होने तक, उसी हेतु को क्रियान्वित कर रहे हैं । इस विषय पर तो मैनें एक पुस्तक भी लिखी है- “सफेद- आतंक ; ह्युम से माईनो तक” , जिसमें विस्तार इस तथ्य का विश्लेषण हुआ है कि अपने देश में आतंक व आतंकवाद के पालक-पोषक- संरक्षक वे ही लोग हैं, जो धारण कर रखे हैं उस धवल-निर्मल खादी का सफेद आवरण , जिसे एक महात्मा ने सत्य-अहिंसा-सेवा-संयम-स्वदेशी की पञ्चाग्नि में तप कर तपाया था आजीवन । इन्हें सीधे सीधे सफेद आतंकी भी कह सकते हैं आप । ऐसा इस कारण , क्योंकि; ईसा, बुद्ध, मार्क्स, माओ को माननेवाले, उनका समर्थन करनेवाले, उनके विचारों का अनुसरण करनेवाले तथा उनके कार्यक्रमों का क्रियान्वयन-समर्थन-संरक्षण करनेवाले जब क्रमशः ईसाई, बौद्ध व मार्क्सवादी, माओवादी कहे जा सकते हैं, कहे ही जाते हैं ; तो आतंक, आतंकी व आतंकवाद को सहयोग-समर्थन-संरक्षण करनेवाले तथा उनकी योजनाओं एवं उनके कार्यक्रमों को प्रत्यक्ष-परोक्ष रुप से क्रियान्वित करने-करवानेवालों अर्थात सफेद-आतंक बरपानेवालों को आप क्या कहेंग ? निश्चय ही सफेद- आतंकी ।

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