उत्तम रीति से आएंगे भगवान
१
अभी-अभी पिछले दोनों की बात है । एक दिन परलोक में मर्यादा पुरुषोत्तम राम और महा पण्डित रावण की मरणेत्तर काया एक-दूसरे के आमने-सामने हो गईं । तब राम ने मुस्कुराते हुए पूछा-“ कहिए , कैसे हैं महाब्राह्मण ” ?
-अरे..र..रे , मैं तो तुम्हें खोज ही रहा था भगवन …!
- कहो, क्या बात है ? इस लोक में कोई कष्ट-कठिनाई तो नहीं है यहां ?
-नहीं कोई कठिनाई नहीं है यहां , सब कुछ दिव्य-भव्य, अलौकिक और अद्भूत है ; किन्तु एक सवाल मुझे अब लगातार सालते जा रहा है, जिसका उतर आप ही दे सकते हैं ।
- कहो , कौन सा सवाल ?
- सदियों की पीडा समेटते हुए रावण बोल उठा- मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है…प्रभु ………….!- वह आगे बोल नहीं पा रहा था ।
- कहो , क्या बात है ? बोलो तो सही ।- राम ने उसे दिलाशा दी तो वह फिर बोलने लगा- अरे मैंने देव-संस्कृति-सुता, जनकनन्दनी जानकी , अर्थात आपकी भार्या सीता का अपहरण तो अवश्य किया था, किन्तु उन्हें लंका ले जा कर अशोक वाटिका में नैतिकतापूर्वक-शुचितापूरवक ही रखा था, सो तो आपने मेरे प्राण ले लिए , मेरे समस्त कुल का नाश कर दिया आपने और मेरी स्वर्णमयी लंका को भी तहस-नहस करा दिया , किन्तु मैं पूछता हूं कि ….आप अब धरती पर क्यों नहीं जा रहे हैं….? उसके दसों मुख क्रमशः बोलने लगे- अब क्यों नहीं जा रहे अब……………., अब, जबकि अब वहां………………………….
- ……लभियों-जिहादियों के हाथों रोज अपहृत हो रही हैं सीता ………..
- …..सरेआम नंगी की जा रही है संस्कृति-सुता…………………….
- …..इण्डिया बन कर कराह रही है आर्यावर्त-अयोध्या की अस्मिता……
- …..धर्म के विरूद्ध जेहाद फैलाने में लगी है सुरसा साम्प्रदायिकता…….
- …..धर्मनिरपेक्षता की मार झेल रही है भारतीयता-राष्ट्रीयता………….
- …..सैकडों कतलखानों में त्राहि-त्राहि कर रहीं हैं गौ माता …………..
- …..पाप के परनालों में बह रही है सदाचारिता…………………….
- …..शिक्षा-नीति में भी नहीं बची है नैतिकता……………………..
- …..सिर चढ कर बोल रही है पश्चिम की पाश्विकता………………..
- …..पूरी दुनिया को ग्रसते जा रही है वेटिकन सिटी की असुर-सत्ता……
फिर , केवल मुझसे ही क्यों रही आपकी शत्रुता कि आज भी मेरा पुतला जलाया जाता ? ऐसा भेद-भाव आपको नहीं शोभता ।
प्रश्नों की फेहरिस्त सुन गहरी सोच में डूब गई भगवान राम चन्द्र की माया । तभी न जाने किधर से वीणा बजाते हुए चले आये नारद जी – नारायण !......नारायण !! आते ही उन्होंने कहा- रावण का प्रश्न वाजीब है भगवन , आपको फिर धारण करना चाहिए मानव-तन !
०२
मैं भेद-भाव कतई नहीं करता ब्रम्हात्मज !- अपना मौन तोडते हुए राम ने कहा-
- मैं फिर धरती पर जाने के लिए तैयार हूं । मगर कहां जाऊं, कैसे जाऊं ? कोई दशरथ-कौश्ल्या अब तक नहीं दिखे कहीं । वसुदेव और देवकी भी नहीं कहीं ; न जेल में , न जेल के बाहर । धरती पर मेरे जाने के लिए किसी न किसी को दशरथ और कौशल्या या वसुदेव और देवकी बनना पडेगा । मैं वहां जाने के लिए तैयार हूं , किन्तु एक समस्या और है ।
- क्या ??- नारायण ! नारायण !!
- वहां अब न कोई विश्वामित्र है , न कोई वशिष्ठ । गुरुकुल और आश्रम भी नहीं है कहीं कोई । पूरा भारतवर्ष तो इण्डिया बन गया है । अगर ऐसे ही किसी तरह से मानव-तन धारण कर मैं चला भी जाऊं , तो वहां अल्पकाल में विद्या कहां से पाऊंगा सब ?
- नारायण !....नारायण !! ….किन्तु , आप तो यह कह चुके हैं द्वापर में कि “ यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ” ?
- मैं अपने दिए वचनों पर सदैव कायम रहता हूं , अब भी कायम हूं , आगे भी कायम रहूंगा ।
- तो फिर ?....रावण के दसों मुख एक साथ फिर बोल उठे- ….तो फिर क्यों नहीं जा रहे हैं ?
- धैर्य रखो अहंकारी ब्राह्मण !- नारायण !.....नारायण !!- प्रभू की समदर्शिता और वचनवद्धता पर संदेह मत करो । नारद ने रावण को डपटते हुए भगवान से कहा- इस ब्राह्मण की आतुरता दूर कीजिए प्रभू , उधर पूरी वसुधा भी त्राहि-त्राहि कर रही है आपके लिए ,…नारायण !.....नारायण !!
- मेरे पुनरावतार के लिए- श्री राम बोल उठे- महाकाल की योजना से आर्यावर्त की धरती पर वशिष्ठ और विश्वामित्र की परम्परा के उत्तम-ऋषि ने हेमचन्द्राचार्य गुरुकुल स्थापित कर दिया है, जहां मृत हो चुकी समस्त मानवीय कलायें पुनर्जीवित की जा रही हैं, सजाये जा रहे हैं- तिर-तरकश, धनुष-वाण , गढे जा रहे हैं- लक्ष्मण-भरत-सुग्रीव-हनुमान और जनक अष्टावक्र जैसे चरक-आर्यभट्ट-वराहमिहिर विद्वान ; जिसके लिए ‘मैकालासुर’ से छिड चुका है उनका बौद्धिक संग्राम । ऋषि-परम्परा की उस ‘उत्तम रीति ’ से जब खडा हो जाएगा भारतवर्ष , चूर-चूर हो जाएगा इण्डिया का दर्प ; तब देख लेना ब्रम्हात्मज नारद ! कोई कौशल्या-दशरथ, देवकी-वसुदेव बने या न बने , मैं नृसिंह-वाराह-वामन की तरह किसी भी रूप में पॄथ्वी पर जाकर धर्म की स्थापना कर दूंगा । पहले खडा तो हो भारतवर्ष ! मिटने तो दो इण्डिया का दर्प !!
- नारायण !....नारायण !!.... तो इसका मतलब कि मैकालासुर के बौद्धिक विमर्श की कोख से होगा इस बार आपका अवतरण !................ नारायण !............नारायण !!!
------------------------------------------------------------------------------
रावण के समर्थन में नारद जी का अनशन
जे०एन०यु० में आतंकी अफजल की फांसी के विरोध में वामपंथी छात्रों के तरफ से हुई नारेबाजी की घटना पर प्रतिक्रियाओं का दौर अभी थमा भी नहीं था कि उधर देवलोक में नारद जी रावण की दसमुखी प्रेतात्मा के साथ अनशन पर बैठ गए और राम के विरूद्ध नारेबाजी करने लगे । रावण हम शर्मिन्दा हैं- अनेक राक्षस जिन्दा हैं……किसी को सजा, किसी को सम्मान ; कहां समदर्शी हैं भगवान ? यह तो अन्याय है, अन्याय है ! हर जोर-जुल्म से टक्कर में , रावण को हम साथ दें ! आदि…आदि……………….। अनशन के ताप और उत्तेजक नारों की आवाज से पूरा देवलोक डोलने लगा, इन्द्रासन हिलने लगा । सारे देवतागण आपद्ग्रस्त हो आश्चर्य के साथ अनशन-स्थल की ओर भागे । वहां रावण की प्रेतात्मा के साथ नारद जी को अनशन करते , नारा लगाते देख सभी हतप्रभ हो गए – देवर्षि नारद और रावण के समर्थन में अनशन-धरना-प्रदर्शन ! नारायण……नारायण का राग अलापते रहने वाली वीणा से ये ऐसे कठोर वचन !!
किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । देवताओं को देख नारद जी और उत्तेजित हो उठे-आइए ! आप भी आइए !! रावण को साथ दीजिए ! नारद जी के बदले हुए तेवर और उनकी वीणा के बदले हुए सुर से घबरा कर देवताओं के कदम थोडा पीछे हट गये । नारद जी और जोर-जोर से चिल्लाने लगे- रावण तूं मत घबराना, देवताओं का भी यही है कहना \ देवता कुछ समझ नहीं पा रहे थे \ सभी अचरज भरी नजरों से एक-दूसरे को देखने लगे \ तब देवाधिपति इन्द्र थोडी हिम्मत जुटा कर नारद जी के समीप गए \ दण्डवत प्रणाम कर डरते-डरते पूछे- देवर्षि नारद ! आप तो नारायण के बहुत बडे भक्त हैं , नारायण को भी आप बहुत प्रिय हैं , तो फिर यह अनशन और नारायण-द्रोही रावण को समर्थन !
- हां रावण के साथ अन्याय हुआ है , इसीलिए यह अनशन किया है , मैंने ऐसे ही नहीं समर्थन दिया है \
- क्या ? अन्याय हुआ है ? किसने अन्याय किया है ?
- हां अन्याय ही हुआ है । और , न्यायकर्त्ता तो बस एक ही हैं ।
- तो क्या नारायण प्रभु राम ने अन्याय किया है ! ? ऐसा हो नहीं सकता , असम्भव !
- नारायण प्रभु राम ने जो न्याय किया था , सो अब अन्याय प्रतीत होता है देवेन्द्र !
लंकाधिपति ने सीता का अपहरण तो किया था किन्तु उन्हें लंका ले जा कर वहां नैतिकतापूर्वक ही रखा । असुर होने के कारण रावण मांस-भक्षण जरूर करता था , किन्तु बीफ फेस्टिबल का आयोजन इसने कहीं भी ,कभी नहीं किया । शिव को शीश अर्पित करने लंका से कैलाश तो रोज ही जाता था रावण, अयोध्या होते हुए जनकपुर भी गया था- सीता को स्वयंवर में जीतने के लिए ; किन्तु कहीं भी , कभी भी इसने आर्यावर्त-भारतवर्ष को टुकडे-टुकडे करने की बात नहीं कही , न ऐसा कभी कोई विचार ही रखा । मनुष्यों के श्वेत-अश्वेत रंग-भेद के आधार पर कहीं कोई विभाजन भी नहीं किया इसने कभी । न कभी कोई जेहाद किया , न धर्मान्तरण का कहीं कोई धंधा । लंका नगरी को स्वर्णमयी बनाने के लिए सिर्फ कुबेर को बन्दी बनाया इसने किन्तु
//php// if (!empty($article['pdf'])): ?>
//php// endif; ?>