वह जो है ‘वेटिकन सिटी’ ! अर्थात, रुमाल को तिरपाल बताने की धूर्त्त राजनीति की परिणति

वह जो है ‘वेटिकन सिटी’ ! अर्थात,
रुमाल को तिरपाल बताने की धूर्त्त राजनीति की परिणति
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वेटिकन सिटी वस्तुतः ‘इटली’ नामक युरोपीय देश के ‘चिट्टाडेल वाटिकानो’ (chittadel vaticano ) नगर का एक छोटा सा उपनगर है, जिसे दुनिया के समस्त ईसाई राज्यों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वतंत्र ‘ईश्वरीय राज्य’ की मान्यता प्रदान किया हुआ है । जी हां, ‘ईश्वरीय राज्य’ , किन्तु उस ईश्वर का राज्य नहीं, जो सम्पूर्ण विश्व-वसुधा की व्यवस्था का नियामक-नियन्ता है; अपितु ‘यीसु’ का राज्य अर्थात ‘यीसुवरीय राज्य’ ! यीसु के तथाकथित राज्य से ‘ईश्वरीय राज्य’ नाम का छद्म विशेषण धारण किया हुआ ‘वेटिकन सिटी’ जो ईसाइयत की सर्वोच्च नियामक सत्ता- ‘पोप’ का वैश्विक मुख्यालय है, सो वैसे तो इटली (प्राचीन रोम) नामक सामान्य संप्रभु राज्य में ही अवस्थित है, किन्तु महज ४३ हेक्टेयर(१०८ एकड) क्षेत्रफल तथा मात्र कुछ हजार लोगों की आबादी और ‘सेण्ट पिटर’ नामक चर्च-समूहों की ख्याति वाले उस छोटे से उपनगर को दुनिया के तमाम ईसाई-राज्यों-राष्ट्रों ने षड्यंत्रपूर्वक एक ‘परम-स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे रखा है और शेष दुनिया के सभी संप्रभु राज्यों-राष्ट्रों से भी दिलवा रखा है । ‘वेटिकन सिटी’ नामक उक्त षड्यंत्रजनित राज्य की अपनी मुद्रा व अपनी स्वतंत्र संचार-व्यवस्था तो है ही , समस्त राजनयिक नखरों-ठसकों-सुविधाओं-अधिकारों से युक्त उस तथाकथित यीसुवरीय राज्य अर्थात छद्म ‘ईश्वरीय राज्य’ के राजदूत भी दुनिया के सभी देशों (गैर-ईसाई देशों में भी) में पदस्थापित हैं । पोप के ऐसे प्रभाव और उसके प्रति विश्व भर के समस्त ईसाई-राज्यों के ऐसे समर्पण-भाव का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ और सिर्फ चर्च-समूहों से आच्छादित ‘वेटिकन सिटी’ नामक उस विस्मयकारी राज्य का अपना कोई कृषि-वाणिज्य-उद्योग-उद्यम नहीं है , किन्तु उसके राज्याध्यक्ष- ‘पोप’ को दुनिया के किसी भी बडे से बडे राज्य के प्रमुख से ऊंचा दर्जा प्राप्त है, क्योंकि उसे साक्षात ईश्वर का प्रतिनिधि मान लिया गया है । इसी कारण वह संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य भी नहीं है, किन्तु दुनिया की यह सबसे बडी वैश्विक संस्था- (यु०एन०ओ०) उसके इशारों पर ही काम करती है, क्योंकि वह उसका स्थाई पर्यवेक्षक है । युएनओ० का कोई भी कानून वेटिकन सिटी पर लागू नहीं होता है, जबकि वेटिकन के हर फरमान को युएनओ० किसी न किसी रुप में सारी दुनिया पर लागू करता-कराता है । ऐसा इस कारण, क्योंकि तमाम ईसाई-राज्यों ने उसे दुनिया से परे दुनिया के रचयिता- ‘ईश्वर का राज्य’ घोषित कर ईश्वरीय होना प्रचारित कर रखा है , किन्तु है तो वह ‘यीसुवरीय’ और इसी आधार पर उनने पूरी दुनिया को ‘यीसु’ की अमानत मान लिया है । दरअसल जिसस क्राईस्ट नामक संत को यीसु और फिर उन यीसु को ईश या ईशु तथा यीसुवरीय को ईश्वरीय कहना भी बहुत बडा शाब्दिक षड्यंत्र ही , जिसके कारण यह घालमेल बहुत सहज हो गया है । ऐसे में, जाहिर है ; यीसाई विस्तारवाद के झण्डाबरदारों की रणनीति के तहत वह यीसुवरीय राज्य पूरी पृथ्वी को दया-क्षमा-छाया प्रदान करने वाला ‘छत्रप’ है और सारी पृथ्वी उसकी शरणागत है । यह ठीक उसी तरह का प्रहसन है, जैसे कोई किसी रुमाल को तिरपाल बताता फिरे । लेकिन, इस प्रहसन को राजसत्ता के सहारे संसार भर में क्रियान्वित कर देना तो एक प्रकार की धूर्त्त राजनीति की पराकाष्ठा ही है । बावजूद इसके , वह तथाकथित ‘ईश्वरीय राज्य’ जो प्रकारान्तर से वस्तुतः ‘यीसुवरीय राज्य’ है , सो समस्त दुनिया भर के गैर-यीसाइयों को कथित ‘पापों’ से मुक्त करने में लगा हुआ है, जिसके लिए वह अपनी नीतियों, योजनाओं एवं तत्सम्बन्धी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन संयुक्त राज्य अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा दुनिया भर में कायम अपनी विभिन्न चर्च-मिशनरियों और उनसे सम्बद्ध गैर-सरकारी संस्थाओं (एन०जीओ०) के माध्यम से करता-कराता है ।
दरअसल उक्त यीसुवरीय राज्य की रचना और समस्त विश्व को पापों से मुक्त करने की उसकी योजना यीसाई-विस्तारवाद का एक बहुत बडा वैश्विक षड्यंत्र है, जिसका उद्देश्य पूरी पृथ्वी पर ‘श्वेत चमडी वाली प्रजा’ का वर्चस्व बढाना एवं इस हेतु यीसु के नाम से रिलीजियस असुर-साम्राज्य स्थापित करना और धार्मिक एवं गैर-यीसाई अश्वेत प्रजा का उन्मूलन कर देना है । इस निमित्त समस्त यीसाई-जगत की नियामक सत्ता- ‘पोप’ ने यीसाइयत बघारने वाली तथाकथित ‘ज्ञान की इकलौती पुस्तक’ के आधार पर सैकडों वर्ष पूर्व ही स्वयं को पृथ्वी का स्वामी घोषित करते हुए यीसाई-विस्तारवाद के तत्कालीन दो-दो झण्डाबरदारों के बीच इस पृथ्वी का बंटवारा भी कर रखा है, जिसके बावत हम अगले अध्यायों में विस्तार से चर्चा करेंगे । पोप की इस योजना के तहत यीसुवरीय राज्य स्थापित हो चुका है ; वैश्विक यीसुवरीय साम्राज्य स्थापित होना बाकी है, जिसकी जिम्मेवारी उस विशिष्ट राज्य पर है और उस बावत वह ‘वेटिकन सिटी’ भिन्न-भिन्न प्रकार के षड्यंत्रों-कार्यक्रमों के साथ किस कदर सक्रिय है, सो आगे पठनीय है ।
तो इस तरह से ‘गॉड के इकलौते पुत्र’- जिसस क्राईस्ट (यीसु) की क्रिश्चियनिटी अर्थात यीसु की यीसाइयत व पोप की मिल्कियत को पूरी पृथ्वी पर स्थापित कर देने और संसार की समस्त अश्वेत प्रजा का यीसाईकरण या उन्मूलन कर सारी दुनिया को वेटिकन सिटी के ‘यीसुवरीय श्वेत साम्राज्य’ के अधीन कर लेने की षड्यंत्रकारी आसुरी योजना १५वीं शताब्दी से आकार लेती हुई अब इस २१वीं शताब्दी में एकबारगी सुरसाकार को भी पार कर जाने को उद्धत है । इस आसुरी योजना को साकार करने के बावत गुप-चुप तरीके से सक्रिय यीसाई-विस्तारवाद की पश्चिमी शक्तियों ने जल-थल-वायु समेत पूरी पृथ्वी को सामरिक युद्ध के बगैर ही जीत लेने की ऐसी भारी-भरकम भीषण तैयारी कर रखी है , जैसी अब तक के किसी भीषणत्तम युद्ध के लिए भी , देवों-असुरों में से किसी भी शक्ति के द्वारा नहीं की गई थी । जी हां , युद्ध किये बिना पूरी पृथ्वी को जीत लेने के लिए तैयारी इतनी बडी और व्यापक है कि बडे से बडे युद्ध जीतने वाली सेना के तीन ही अंग होने के बावजूद इस आसुरी सत्ता ने अपनी सेना को तीन अतिरिक्त अंगों से अतिसंगठित व अतिसुसज्जित कर रखा है, जिसकी चर्चा हम अगले अध्यायों में विस्तार से करेंगे । यह ‘षष्ठांगी सेना’ अत्याधुनिक अस्त्रों-शस्त्रों व प्रक्षेपास्त्रों से तो समृद्ध है ही , अनेक प्रकार के ‘शास्त्रों’ से भी सम्पन्न है । भाषा-नस्ल-जाति-रंग-वर्ण सब की उत्पत्ति-व्युत्पत्ति का ही नहीं , इनकी कथित ‘मुक्ति’ का भी ‘शास्त्र’ है इसके पास, जिसकी बदौलत यह किसी भी मानव-जाति व मानव-समाज का अपनी सुविधानुसार अतीत रच कर उसके देश-राष्ट्र का पुराना इतिहास बदल देती है और नया भूगोल गढ लेती है । और तो और , इसके पास ज्ञान की एक ऐसी तथाकथित ‘आसमानी किताब’ है कि उसके सहारे यह किसी भी भाषा का ‘नया व्याकरण’ तक रच देने एवं ‘नये शब्दकोष’ का निर्माण कर देने तथा उसके साहित्य को खंगाल कर उसमें ‘ईश्वर के इकलौते पुत्र’ से सम्बन्धित अनेक संदर्भ घुसा देने और सम्बन्धित साहित्यिक ग्रन्थों का यीसाईकरण कर देने के साथ-साथ तथाकथित ‘पांचवां वेद’ रच डालने में भी सक्षम है । भारत में ये सारे अनर्थकारी काम पिछले पांच सौ वर्षों से अंजाम दिए जा रहे हैं , जिनकी चर्चा हम अगले अध्यायों में करने वाले हैं ।
अभी तो केवल इतना ही संकेत पर्याप्त है कि ‘वेटिकन सिटी’ महज एक रुमाल के आकार का युरोपियन उप-नगर है, जो ‘श्वेत-प्रजा’ के ‘इटली’ नामक युरोपीय देश के ‘चिट्टाडेल वाटिकानो’ (chittadel vaticano ) शहर का एक छोटा सा कोणा मात्र है, जिसे दुनिया के समस्त ईसाई राज्यों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वतंत्र ‘ईश्वरीय राज्य’ की मान्यता प्रदान किया हुआ है । उस तथाकथित ईश्वरीय राज्य , जो वस्तुतः ‘यीसुवरीय’ राज्य है, उसका श्वेतवर्णी राजा- ‘पोप’ वहां के सेण्ट पिटर चर्च में उठते-बैठते सोते-जागते दिन-रात एक ही सपना देखते रहता है- सम्पूर्ण विश्व को श्वेत साम्राज्य के अधीन यीसाई-विश्व बना डालने के बावत मूर्ति-पूजकों के धर्मान्तरण व सनातन धर्म के उन्मूलन का सपना, जिसे साकार करने के बावत दुनिया के तमाम देशों में उसके राजदूत नियुक्त हैं, तो लाखों कार्यकर्ताओं का अत्यन्त संगठित संजाल भी समानान्तर सरकार के रुप में सक्रिय है । यह न केवल संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई पर्यवेक्षक है, बल्कि सारी दुनिया की हवलदारी करने वाली अमेरिकी सरकार का पथ-प्रदर्शक भी यही है ।