सनातन धर्म के विरुद्ध संग्राम की घोषणा से फिर प्रकट हुई योजना द्रविड-आन्दोलन ‘टाईम-बम’ बना

सनातन धर्म के विरुद्ध संग्राम की घोषणा से फिर प्रकट हुई योजना
द्रविड-आन्दोलन ‘टाईम-बम’ बना
----------------------------------------------------------------------------------

तमिलनाडू राज्य की सरकार का एक मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सार्वजनिक रुप से यह घोषणा कर रखी है कि “सनातन धर्म को नष्ट करना है क्योंकि यह एक बीमारी है और यह भी कि द्रविड आन्दोलन की शुरुआत सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए ही हुई थी ।” दरअसल तमिलनाडू में सनातन धर्म एवं ब्राह्मण वर्ण और हिन्दी भाषा का विरोध लगभग एक सौ वर्ष पहले से ही होता रहा है तथा इसके पीछे चर्च-संचालित ‘आर्य-द्रविड-विभेद आधारित राजनीति की पृष्ठ्भूमि कायम रही है, जिसकी शुरुआत ई०वी०रामासामी परियार की अगुवाई में हुई थी और अन्नादुरई ने उसे राजनीतिक आकार-विस्तार प्रदान किया था । अगर मंत्री अन्नादुरई के उपरोक्त बयान देखें तो उसमें भी उसी राजनीति की छाप दिखाई पडती है । उदयनिधि स्टालिन ने चेन्नई में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था- “कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें हमें सिर्फ खत्म करना है, केवल विरोध नहीं । मच्छर डेंगू कॉरोना व मलेरिया ऐसी चीजें हैं जिनका हम केवल विरोध नहीं कर सकते, उन्हें तो हमें खत्म ही कर देना चाहिए । सनातन धर्म भी ऐसी ही चीज है , हमें सनातन का विरोध नहीं बल्कि उसका उन्मूलन ही कर देना हमारा पहला काम है ।”
गौरतलब है कि आज के दक्षिण भारत में सक्रिय वहां की दोनों राजनीतिक पार्टियों- डी०एम०के०(द्रविड मुन्नेत्र कडगम) और ए०आई०डी०एम०के० (अखिल भारतीय द्रविड मुन्नेत्र कडगम) की राजनीति ‘गैर-ब्राह्मणवाद’ नामक एक ऐसी विभाजक अवधारणा पर टिकी हुई है जिसका उद्देश्य चर्च की उस विभाजनकारी योजना को क्रियान्वित करना है जिसके निशाने पर भारत राष्ट्र व सनातन धर्म एवं वृहतर हिन्दू समाज ; तीनों एक साथ हैं । मालूम हो कि ईसाई-विस्तारवाद के विभिन्न झण्डाबरदारों द्वारा ‘आर्य-द्रविड’ विभाजन का बीजारोपण कर देने के पश्चात उनके राजनीतिक अभिकर्ताओं ने अंग्रेजी शासन-विरोधी स्वतंत्रता-आंदोलन के दौरान ही दक्षिण भारत के तमिलनाडू प्रदेश को भारत से पृथक पाकिस्तान की तर्ज पर ‘द्रविडस्तान’ नामक अलग देश बनाने का एक आन्दोलन चलाया था हुआ था , आज भी किसी न किसी रूप में छद्म तरीके से चल ही रहा है । वहां की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां (डीएमके व एआईडीएमके) चर्च-मिशन की ‘आर्य-द्रविड’ विभाजक नीतियों से युक्त एक ही वैचारिक पृष्ठभूमि की ऊपज हैं , जो ब्राह्मण, संस्कृत व हिन्दी के विरोध का स्थाई अभियान चलाते रहती हैं और भारत राष्ट्र के विखण्डन एवं भारतीय राष्ट्रीयता, अर्थात सनातन धर्म के उन्मूलन को प्रवृत दिखती हैं । उदयनिधि की उपरोक्त घोषणा से ईसाई विस्तारवादी शक्तियों की यह गुप्त योजना ही एक बार फिर प्रकट हुई है । सरकार का एक मंत्री अगर खुलेआम ऐसी घोषणा करता हो, तो इससे यह समझा जा सकता है कि वहां के सरकारी तंत्र का इस्तेमाल सनातन धर्म के विरुद्ध किस कदर होता रहा होगा और आगे भी किस बेशर्मी से होता रहेगा ।
राज्य की शासनिक सत्ता का ऐसा सहयोग-संरक्षण पा कर वेटिकन-संचालित चर्च-मिशनरियों के तमाम तमिल प्यादे-पादरी सब अति उत्साहित हैं । उनका यह कहना-मानना बिल्कुल सही प्रतीत होता है कि “द्रविड-आंदोलन हमारा ‘टाईम बम’ है , हिन्दुत्व के खिलाफ ।” जाहिर है, इस ‘टाईम बम’ का निर्माण मैकॉले-मैसमूलर-कॉल्ड्वेल व विलियम जोन्स की चौकडी द्वारा उत्पादित आर्य-द्रविड विभेदों एवं भाषा विज्ञान व नस्ल विज्ञान के अनर्थकारी सिद्धांतों की दुरभिसंधि से हुआ है । इसका संचालन-सूत्र (रिमोट कण्ट्रोलर) वेटिकन-संचालित चर्च बुद्धिबाजों की उस चौकड़ी के हाथों में है , जिसने ‘आर्य-द्रविड’ विभेद पैदा कर समूचे दक्षिण भारत में आर्य-धर्म-संस्कृति के विरुद्ध ‘द्रविड-आंदोलन’ नामक ‘ईसाई-विस्तारवाद’ का अभियान चला रखा है और इस बावत उपरोक्त दोनों राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व को अपना हस्तक बना रखा है । तथाकथित ‘द्रविड आन्दोलन’ के प्रणेता पेरियार व अन्ना दुरई हों, या उनके बाद उसे राजनीतिक विस्तार देने वाले करुणानिधि व जे०जयललिता अथवा उनके उतरवर्ती मुख्यमंत्री- के एम०के०स्टालिन या उदयनिधि स्टालिन , सभी उस वेटिकन सिटी से संचालित चर्च के हस्तक ही रहे हैं । यही कारण है कि तमिलानाडू में चर्च-मिशनरियों के कारिंदों की तूती बोलती है और उनकी जुबान धर्म (सनातन) के विरुद्ध सदैव घृणा उगलती रहती है ।
तमिलनाडू में एजरा सरगुणाम चर्च का एक विशप है , जो सनातन के आराध्य देवताओं को ‘शैतान’ कहता है और हिंदुओं के जबरन ईसाइकरण की सार्वजनिक वकालत करता है । ‘स्वराज’ पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में उसने समूचे तमिल प्रदेश भर में पांच लाख चर्च खड़ा करने और करोड़ों तमिल हिंदुओं को क्रिश्चियन बना डालने के आरोपों को सगर्व स्वीकार किया हुआ है । यह वही सरगुनम है , जो एक बार ‘प्रयागराज-कुम्भ’ में जा कर धर्म (सनातन) के विरुद्ध घृणा से युक्त क्रिश्चियनिटी की पुस्तिकाएं वितरित करने की हिमाकत कर चुका है । बकौल ‘स्वराज्य’ , उसकी ‘ट्रेनिंग’ उस बिली ग्राहम नामक अमेरिकी पादरी के अधीन हुई थी, जो डार्विन के जैवीय विकास सिद्धांत का विरोधी था, और यहूदियों के खिलाफ नस्लवादी प्रतिपादनों के लिए बदनाम था । सरगुनम कोई सामान्य मिशनरी मात्र नहीं है , अपितु तमिलानाडू प्रदेश की राजनीति का एक प्रभावकारी सौदागर है , जो वहां की सरकारों को बनाने-गिराने की शतरंजी बिसात बिछाने में भी माहिर है । धर्म (सनातन) के विरुद्ध राजनीति का ‘रिलीजियस’ इस्तेमाल करते रहने में चर्च-मिशन के ऐसे एक नहीं, अनेक पादरी विशप सक्रिय हैं , जिनमें पादरी जगत गॉस्पर का नाम भी खासा उल्लेखनीय है । इस कैथोलिक पादरी का सीधा संबंध ‘द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) से है और उस पर उसका ऐसा जबरदस्त प्रभाव है कि द्रमुक जब-जब सत्तासीन होती रही है , तब-तब धर्म (सनातन) पर शासनिक प्रहार के नये-नये रुपों-नुस्खों का ईजाद होते रहा है । मन्दिरों से टैक्स वसुलने तथा चर्चों को सरकारी खजाने से अनुदान देने जैसे सरकारी फरमान और बाइबिल-वर्णित ‘एडम’ (दुनिया का पहला आदमी) को तमिल-भाषी बताने जैसे स्कूली पाठ्यक्रम का निर्माण ऐसे ही नायाब नुस्खें हैं । चर्च-संचालित शिक्षण-संस्थानों के लिए सरकारी अनुदान और उन शिक्षण-संस्थानों से हिन्दुओं के धर्मोन्मूलन एवं ईसाइकरण का अभियान भी इसी फेहरिस्त में शामिल है । चर्च के द्वारा सरकारी अनुदान से ऐसे प्रकाशन-संस्थान भी चलाये जाते हैं, जो तमिलों को क्रिश्चियनिटी की ओर आकर्षित करने और धर्म (सनातन) के प्रति घृणा भाव भरने की विभेदकारी प्रायोजित सामग्रियों से सराबोर साहित्य का प्रसार करते हैं । इन सब कामों में सक्रिय जगत गॉस्पर की अवज्ञा करने का दुस्साहस न द्रमुक-नेता कर पाते हैं, न अन्नाद्रमुक वाले ।
ऐसा ही एक पादरी- मोहन सी बजारस तो सनातन धर्म को मिटा देने की घोषणा करने वाले उदयनिधि स्टालिन का दोस्त ही है, जो जन्म से हिन्दू था ; किन्तु चर्च-मिशन के प्रभाव से क्रिश्चियनिटी अपना कर पादरी बन जाने के बाद भोले-भाले तमिलों को जीसस क्राईस्ट के फर्जी चमत्कार दिखा-दिखा कर क्रिश्चियन बनाने का अभियान चला रखा है । अपने इस अभियान के लिए उसने एक सोची-समझी रणनीति के तहत प्राचीन हिन्दू-तीर्थस्थल- ‘तिरुचेण्डुर’ के बगल में ही अपना दफ्तर खोल रखा है , जहां स्टालिन जैसे लोगों की बैठकें हुआ करती हैं । तमिलनाडू में मन्दिरों की व्यापक व्याप्ति से परेशान ये तमाम पादरीगण इसी कारण से इस प्रदेश को ‘शैतान का गढ’ कहा करते हैं और सनातन को मिटा डालने का राग आलापते रहते रहते हैं और स्टालिन जैसे नेता उनके साथ सुर में सुर मिलाते रहते हैं ।
दरअसल तमिलानाडू जो है सो वस्तुतः सनातन धर्म व हिन्दुत्व का गढ़ है , इसीलिए आसुरी शक्तियों में इसे जीत लेने की आतुरता व्याप्त है ; जबकि इसे उनकी जद में जाने से बचाए रखना देव-शक्तियों की भी अनिवार्य अपरिहार्यता है- सनातन की अक्षुण्णता के लिए । ऐसा इस कारण क्योंकि तमिलानाडू भारतवर्ष का एक ऐसा प्रदेश है जहां भारत राष्ट्र व सनातन धर्म की वे तमाम सांस्कृतिक धार्मिक आध्यात्मिक विरासतें व सनातन ज्ञान-विज्ञान की प्राचीन परम्पराएं आज भी मूल रूप में सुरक्षित हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं । अरबिया-मुगलिया आक्रमणों के कारण उत्तर भारत में मठ-मंदिरों का विध्वंस होते रहने से ज्ञान-विज्ञान के जो स्रोत नष्ट-भ्रष्ट हो गए सो प्रायः सब के सब आज भी तमिलानाडू में सुरक्षित हैं । श्री विष्णु जी के वराह अवतार एवं नृसिंह अवतार की पूजा परंपरा शेष भारत में जहां लुप्त हो चुकी हैं, वहीं दक्षिण भारत में आज भी प्रचलित हैं । सैकड़ों वर्षों के उपरांत अभी हाल ही में काशी के जगत-प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर में ‘कुंभाभिषेकम’ का आयोजन किये जाने के दौरान वहां के आचार्यों-पुरोहितों को इसकी विधि का ज्ञान देने वाला कोई साहित्य नहीं मिला तब , तमिलनाडू से ही एक आचार्य को ले जा कर उस प्राचीन परंपरा को वहां पुनर्जीवित करायी गई । इतना ही नहीं ; चिदंबरम नटराज सहित पंचमहाभूतों में से चार पंचभूतस्थल एवं दिव्य हिमाचलम तो आज भी तमिलानाडू में ही हैं जिनका महत्व सनातन में शीर्ष पर है । तमिलानाडू की इस प्राचीनता के व्यापक प्रभाव से उसके आसपास के सभी दक्षिण भारतीय भाषाई प्रदेशों यथा कन्नड (कर्नाटक) तेलगु (आंध्र-तेलंगाना) मलयालम (केरल) भी प्रभावित होते ही रहते हैं । ऐसे में जाहिर है- देवासुरसंग्राम के प्रथम निशाने पर आ चुके तमिल प्रदेश के भीतर सनातन धर्म के विरुद्ध उठ रही आवाजों को हल्के में लेना काफी खतरनाक सिद्ध होगा ।