ऋषि-द्वय दुनिया सेकहा गये,युग-परिवर्तन नियति का निश्चय

ऋषि-द्वय दुनिया सेकहा गये,युग-परिवर्तन नियति का निश्चय

आधुनिक भारत में संत रामकृष्ण परमहंस व संयासी विवेकानन्द के बाद दो महान ऋषि हुए- अरविन्द घोष और श्रीराम शर्मा आचार्य । अरविन्द की शिक्षा-दीक्षा बचपन से ले कर युवावस्था तक इंग्लैण्ड में विशुद्ध अंग्रेजी रीति से हुई, तो श्रीराम निहायत संस्कृत-निष्ठ सनातनी विद्वान मदनमोहन मालवीय से दीक्षित होकर ठेठ देहाती परिवेश में शिक्षार्जन किये । ये दोनों अपने-अपने सार्वजनिक जीवन के आरम्भ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सम्बद्ध क्रांतिकारी स्वतंत्रता-सेनानी रहे थे । जेल तो गए ही , अंग्रेजों की लाठियां भी खाये । दोनों उच्च कोटि के पत्रकार-सम्पादक थे । अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अरविन्द अंग्रेजी में ‘वन्देमातरम’ निकालते थे , तो श्रीराम हिन्दी में ‘सैनिक’ । किन्तु बाद में किसी दिव्यात्मा के सम्पर्क से दोनों योग-साधना के बदौलत चेतना के उच्च शिखर पर पहुंच कर दैवीय योजना के तहत अपनी-अपनी भूमिका को तदनुसार नियोजित कर राष्ट्रीय चेतना जगाने-उभारने के आध्यात्मिक उपचार में संलग्न हो गए । ‘सनातन हिन्दू धर्म’ को भारत की राष्ट्रीयता एवं ‘पूर्ण स्वराज’ को कांग्रेस का ध्येय घोषित कर राष्ट्रोत्थान की योग-साधना में सन्नद्ध हो महर्षि बने अरविन्द के पाण्डिचेरी आश्रम से अंग्रेज-विरोधी स्वतंत्रता-आन्दोलन को तपाया-गरमाया जाने लगा, तो वेदों की जननी-गायत्री व जनक-यज्ञ के वैज्ञानिक विश्लेषण-विस्तार में संलग्न श्रीराम शर्मा की तपोभूमि मथुरा से राष्ट्र-देवता की कुण्डलिनी-शक्ति के जागरण और युग-परिवर्तन का सरंजाम सजाया जाने लगा । मानवी चेतना की गहराई से ले कर चेतना के उच्च शिखर तक गहन शोध-मंथन कर परमात्म का साक्षात्कार पा लेने के कारण महर्षि कहे जाने वाले अरविन्द ने एक ओर अपने ज्ञान-दर्शन से मानवीय विकास की चरम अवस्था में अतिमानव(सुपरमैन) की सम्भाव्यता को सुनिश्चित बताया, तो दूसरी ओर अपनी दिव्य-दृष्टि से भारत की भवितव्यता को भी रेखांकित किया । उन्होंने कहा है- “ जब कभी वैचारिक अवांछनीयता अपनी सीमा लाँघ जाती है, तो आत्मबल सम्पन्न व्यक्तियों के बीच ‘सुपरचेतन सत्ता’ सामूहिक रूप में अवतरित होती है । इस सामूहिक चेतना का नाम ही अवतार है , जो इस बार विचार-शक्ति के रूप में अवतरित हो ‘निष्कलंक प्रज्ञावतार’ कहलाएगी ” । आगे उन्होंने कहा था- “ रामकृष्ण परमहंस के जन्म से लेकर १७५ साल की अवधि संधिकाल है, जिसके दौरान भारत को कई अवांछनीयतायें झेलनी पड सकती हैं ; किन्तु इस अवधि के बीतते ही भारत के भाग्य का सूर्योदय सुनिश्चित है , फिर तो इसकी सोयी हुई राष्ट्रीयता जाग जाएगी और बीतते समय के साथ भारत अपनी आध्यात्मिक समग्रता से सारी दुनिया पर छा जाएगा ” । देश को विभाजन की पीडादायी त्रासदी के साथ मिली तथाकथित स्वतंत्रता पर प्रतिक्रिया जताते हुए उस दिन राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश में महर्षि अरविन्द ने कहा था- “ भारत का विभाजन एक न एक दिन मिट जाएगा और यह राष्ट्र फिर से अखण्ड हो जाएगा” ।
आइए , अब बात करते हैं, युग-ऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य की , जिन्होंने विचार-शक्ति के प्रज्ञावतरण से परिवर्तन व नवसृजन को साकार करने के निमित्त व्यक्ति, परिवार, समाज व देश-दुनिया की तमाम अवांछनीयताओं के उन्मूलनार्थ नैतिक-वैचारिक क्रांति-युक्त ‘युग निर्माण योजना’ का सूत्रपात करते हुए युग-परिवर्तन का विश्वव्यापी आध्यात्मिक सरंजाम खडा कर अपने तप के ताप से समस्त वातावरण को तपाने का भागीरथ पुरुषार्थ किया । महामना मदन मोहन मालवीय से यज्ञोपवित धारण कर वेदविदित सदविचार-शक्ति ‘गायत्री’ की साधना के साथ-साथ स्वतंत्रता आन्दोलन में ‘मत्त’ हुए श्रीराम शर्मा ने अपने अलौकिक मार्गदर्शक से प्राप्त निर्देश और महात्मा गांधी से परामर्श के पश्चचात राजनीति से विलग हो कर भारत की सोयी हुई आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं जन-मानस के परिष्करण हेतु सत्प्रवॄत्ति-संवर्द्धन व दुष्प्रवृत्ति-उन्मूलन के निमित्त गायत्री-मंत्र के जप-यज्ञ-युक्त ‘विचार क्रांति अभियान’ व ‘युग निर्माण आन्दोलन’ का जो सूत्रपात किया था , सो विश्वव्यापी विस्तार के साथ फलित होता दीख रहा है । व्यष्टि-समष्टि-परमेष्टि से लेकर परिवार-समाज-राष्ट्र तक जीवन के हर अंग-प्रत्यंग में कल्याणकारी परिवर्तन लाने और हर विषय की हर समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हुए तत्सम्बन्धी तीन हजार से अधिक पुस्तकें लिख देश दुनिया भर में तीन हजार से भी अधिक शक्तिपीठों, प्रज्ञा-संस्थानों व चेतना-केन्द्रों की स्थापना के साथ लाखों गायत्री-साधक परिवर्तनकारी सेनानियों की फौज कायम कर अध्यात्म विज्ञान के सूक्ष्म व कारण स्तर से वातावरण को तपाने-झकझोरने वाले ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य ने अनेक बार अपनी अनेक पुस्तकों में लिखा है- “ युग परिवर्तन हो कर रहेगा , यह महाकाल की योजना है , इसे कोई टाल नहीं सकता । असत्य-अनीति-अन्याय-झूठ-पाखण्ड पर आधारित समस्त स्थापनायें-व्यवस्थायें भरभरा कर गिर जाएंगीं, दुर्जन-शक्तियों को मुंह की खानी पडेगी और सज्जन शक्तियों के संगठन से सत्य-नीति-न्याय-विवेक-सम्पन्न व्यवस्थायें खडी होंगीं । २१वीं सदी से युग-परिवर्तन की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी और वर्ष २०११ से परिवर्तन स्पष्ट दिखाई पडने लगेगा । भारत इस विश्वव्यापी परिवर्तनकारी योजना के क्रियान्वयन का ध्रूव-केन्द्र होगा ” ।
मालूम हो कि श्रीराम शर्मा अपने अलौकिक गुरू के मार्गदर्शन में चौबीस वर्षों तक गाय के गोबर से एकत्र उच्छिष्ट जौ की रोटी व गो-दुग्ध की छाछ का सेवन कर कठोर तप करते हुए गायत्री के चौबीस महापुरश्चरण करने के दौरान तीन बार हिमालय की दुर्गम यात्रा कर वहां विराजमान प्राचीन ऋषियों के निर्देशानुसार महाकाल की उपरोक्त परिवर्तनकारी ‘युग निर्माण योजना’ के क्रियान्वयन का सरंजाम खडा करने के पश्चात स्थूल शरीर त्याग सूक्ष्मीकृत हो चुके हैं । उन्हें उल्टी दिशा में प्रवाहित व्यक्ति-परिवार-समाज-राष्ट की चिन्तन-प्रवृति को उलट कर सीधा करने तथा सनातन धर्म के वेद-विदित सद्ज्ञान से समस्त विश्व-वसुधा को आलोकित करने के निमित्त उनके गुरू सर्वेश्वरानन्द ने एक “अखण्ड ज्योति” प्रदान की थी, जो शांति कुंज में आज भी अविराम प्रज्ज्वलित है । जबकि उन्हीं ऋषि-प्रणीत योजना के अनुसार अध्यात्म का वैज्ञानिक विश्लेषण करने वाली ‘अखण्ड ज्योति’ व ‘प्रज्ञा अभियान’ मासिक-पाक्षिक पत्रिका का प्रकाशन भी विगत ७० वर्षों से १० भाषाओं में अनवरत जारी है । आचार्य श्रीराम ने समस्त भारतीय आध्यात्मिक वांग्मय के रुपान्तरण एवं अन्य विविध विषयक क्रांतिधर्मी साहित्य-सृजन के साथ अध्यात्म विषयक अन्वेषण-मंथन के निमित्त ‘ब्रह्मवर्चस रिसर्च इंस्टिच्युट’ की अभिनव स्थापना कर जन-मानस को परिष्कृत-संस्कारित करने हेतु मथुरा में ‘गायत्री तपोभूमि’ एवं ‘हरिद्वार में ‘शांति-कुंज’ नामक अद्भूत ऋषि-अरण्यक बसा कर देश-दुनिया की समस्त अवांछ्नीयताओं को उखाड फेंकने की चुनौती दे रखी है । इस हेतु ‘महाकाल’ के इन पार्थीव निदेशालयों में लाखों गायत्री-साधकों, प्रज्ञा-परिजनों द्वारा विवेक-सदबुद्धि जगाने-उभारने और वातावरण को नवसृजनकारी तरंगों से तरंगित करने की शक्ति विखेरने वाले गायत्री मंत्र का सामूहिक जप-यज्ञ वर्षों से चल रहा है ।
सन १९९० की गायत्री जयन्ती को इस महान स्वतंत्रता सेनानी युग-ऋषि के पूर्व घोषित महाप्रयाण के बाद से भी इनका ‘युग निर्माण आन्दोलन’ प्रखर राष्ट्र-चिन्तक चिकित्सक मनोवैज्ञानिक डा० प्रणव पण्ड्या के नेतृत्व में वामनावतार की तरह समस्त विश्व-वसुधा को अपनी परिधि में लेता हुआ विस्तृत होता जा रहा है । डा० पण्ड्या को पिछले वर्ष राष्ट्रपति ने राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था । किन्तु, स्वतंत्रता सेनानी का पेंसन भी ठुकरा देने वाले युग-ऋषि के आदर्शों-मान्यताओं के अनुरूप ही इन्होंने भी यह राजनीतिक पद स्वीकार नहीं किया और राजनीति की दिशा-धारा बदलने वाली युग निर्माण योजना के क्रियान्वयन को ही महत्व दिया ।
इन दिनों देश-दुनिया में बदलाव की बह रही हवा के परिप्रेक्ष्य में महर्षि अरविन्द और युग-ऋषि श्रीराम की यह उक्ति रेखांकित करने योग्य है कि युग-परिवर्तन नियति की नीयत है, जो हो कर रहेगा । उपरोक्त ऋषि-द्वय के अनुसार भारत को चूंकि भावी विश्व का नेतृत्व करना है और सनातन धर्म से ही विश्व-वसुधा का कल्याण सम्भव है, इसलिए परिवर्तन की शुरुआत सनातनधर्मी भारत से हो रही है और राजनीति चूंकि समस्त समस्याओं की जड है, इस कारण पहला प्रहार राजनीति पर ही हो रहा है ; ठीक उसी समय से जब १७५ साल का संधिकाल २०११ में समाप्त हुआ, जो युग-ऋषि श्रीराम शर्मा का जन्मशताब्दी वर्ष था । प्रचण्ड बहुमत से एक अप्रत्याशित व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी का सत्तासीन होना और राजनीतिक अनीति-अनाचारपूर्ण धर्मनिरपेक्षता के थोथे पाखण्ड का धराशायी होना तथा उसके बाद से एक पर एक असम्भव सी प्रतीत होने वाली घटनाओं का घटित होना ; यथा- भारत की योग-विद्या को वैश्विक मान्यता मिलना, विश्व राजनीति में भारत की पैठ बढना, अमेरिका में ट्रम्प का राष्ट्रपति निर्वाचित होना , पाकिस्तान में बलुचिस्तान का आन्दोलन भडकना और अब अपने देश में राजनीतिक प्रदूषण फैलाते रहने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का सफाया होते जाना तथा वामपंथियों का अस्तित्व मिटते जाना आदि ऐसे संकेत हैं , जो यह बताते हैं कि नियति का परिवर्तन-चक्र सचमुच ही नियत समय से शुरू हो चुका है । ये तमाम परिवर्तन राजनीतिक पुरुषार्थ के परिणाम कम, आध्यात्मिक उपचारों के निहितार्थ के प्रतिफल ज्यादा हैं । मालूम हो कि करोडों नैष्ठिक साधकों की प्रत्यक्ष भागीदारी से युक्त विश्वव्यापी युग संधि महायज्ञ के दो-दो महापुरश्चरण भी २०वीं सदी के अवसान व २१वीं सदी के आरम्भ पर क्रमशः आंवलखेडा और हरिद्वार में सम्पन्न हो चुके हैं । वर्ष २०११ में युग-ऋषि की जन्म-सदी पर हरिद्वार में हुआ विश्व का सबसे बडा आध्यात्मिक-बौद्धिक आयोजन तो महाकाल के प्रज्ञावतार की परिवर्तन-लीला का पूर्वाभास ही था ।
• मार्च’ २०१७