कश्मीरी फिरकापरस्तों को कांग्रेसी सरकार से मिले थे हथियार

कश्मीरी फिरकापरस्तों को कांग्रेसी सरकार से मिले थे हथियार

जम्मू-कश्मीर का भारत संघ में विधिवत विलय हो जाने के साथ ही बिना किसी सांवैधानिक-शासनिक पद के ही शेख अब्दुल्ला को वहां के शासन का प्रधान बना कर उसकी इच्छानुसार कश्मीर-घाटी से बाहर के हिन्दू-बहुल क्षेत्रों में भारतीय सेना की तैनाती न कर उस क्षेत्र को ‘पाक-अधिकृत’ हो जाने देने का गुनाह कर चुकी कांग्रेसी सरकार ने जिहादी आतंकियों को सरकारी शस्त्रागार से ३०३ बोर की रायफलों का जखिरा भी प्रदान किया था , जिनका उपयोग हिन्दुओं के सफाये के लिए किया गया ; यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं । इस सत्य का खुलासा जम्मू-कश्मीर रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मेहरचन्द महाजन की पुस्तक ‘लुकिंग बैक’ और भारतीय सेना के एक अधिकारी लेफ्टिनेण्ट जनरल बी०एम० कॉल की पुस्तक ‘अनकही कहानी’ में विस्तार से हुआ है ।
मालूम हो कि शेख अब्दुल्ला ने राजनीतिक लाभ के लिए नेहरुजी की सलाह पर अपने ‘मुस्लिम कांफ्रेन्स’ नामक संगठन में मुट्ठी भर गैर-मुस्लिमों को शामिल करते हुए उसका नाम बदल कर ‘नेशनल कांफ्रेन्स’ कर दिया था, जिसके आम कार्यकर्ता सन १९४८ के पाकिस्तानी कबायली हमले के दौरान हिन्दुओं को लुटने तथा राजा की सत्ता को कमजोर करने के बावत जिहाद के नाम पर आक्रमणकारियों के साथ हो गए थे । नेहरुजी की कृपा से रियासत के शासन का प्रधान बन जाने के साथ ही शेख ने अपने फिरकापरस्त कार्यकर्ताओं को हथियारों से लैश कर देने की कुटिल चाल के तहत राज्य में शांति-सुरक्षा कायम करने के बहाने ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ नाम से निजी सेना किस्म के एक लडाकू-दस्ता का गठन कर उसे हथियारों से लैश करने हेतु भारत सरकार से ३०३ बोर की रायफलें मांगी थी । तब भारत के प्रधानमंत्री नेहरु ने इस तथ्य का विचार किये बिना कि उस ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ का औचित्य क्या है , उसे स्वीकृति प्रदान कर दी । किन्तु गृह मंत्री सरदार पटेल तो नेहरु के हर अनुचित निर्णय में कोई न कोई पेंच अवश्य लगा देते थे , ताकि देश का नुकसान कम से कम हो ; सो वे रायफलें कुछ इस तरह से भेजी गईं कि वे सीधे वहां तैनात भारतीय सेना के पास पहुंच गईं । रियासत के सांवैधानिक प्रधान मेहरचन्द महाजन को जब यह ज्ञात हुआ कि शेख अब्दुल्ला ने अपने ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ के लिए रायफलें मंगवाई है, तब उन्होंने सम्बन्धित सैन्याधिकारी को इस बावत सचेत कर दिया कि इनका उपयोग आखिर किसके विरुद्ध और कैसे किया जाएगा । शेख अब्दुल्ला को जब यह मालूम हुआ, तब बौखला कर उसने महाजन के विरुद्ध नेहरु को एक लम्बा शिकायती पत्र भेज दिया, जिसमें लिखा था कि जो रायफलें नेशनल कांफ्रेन्स के ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ हेतु भेजी गई थीं, सो महाजन द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दिला दी गई हैं और संघ के स्वयंसेवक उन रायफलों से मुसलमानों की हत्या कर रहे हैं । महाजन की पुस्तक- ‘लुकिंग बैक’ में जैसा कि लिखा है- नेहरु ने उस झुठी शिकायत को सच मान लिया और मेरे (महाजन के) विरुद्ध महाराजा कश्मीर को एक पत्र लिख दिया । महाराजा ने उत्तर देने के लिए वह पत्र मुझे (महाजन को) दे दिया, तब मैंने (महाजन ने) नेहरु को लिखा कि जो रायफलें भेजी गई हैं , सो तो राज्य में तैनात भारतीय सेना के पास हैं और एक भी रायफल संघ को नहीं दी गई है । मैंने (महाजन ने) उस पत्र में शेख अब्दुल्ला को चुनौती दी थी कि वह इस आरोप को सिद्ध करे । तब अगले पत्र में नेहरु ने स्वयं आरोप वापस लेते हुए खेद प्रकट किया कि उन्हें गलत सूचना दी गई थी ।
मेहरचन्द महाजन की आपबीती को बयान करने वाली उनकी पुस्तक ‘लुकिंग बैक’ से दो तथ्यों की पुष्टि साफ-साफ हो जाती है । पहला यह कि ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ कोई सरकारी संगठन-बल नहीं था, बल्कि शेख अब्दुल्ला के नेशनल कांफ्रेन्स का फिरकापरस्त लडाकू दस्ता था, जिसके लिए सीधे प्रधानमंत्री ने ३०३ बोर की रायफलों का जखीरा भेजवाया था । नेहरु को भेजे शिकायती पत्र में शेख ने लिखा भी था- “दैट द आर्म्स हैड बीन सेण्ट फॉर द यूज ऑफ नेशनल कांफेन्स वॉलिण्टियर” । दूसरा यह कि शेख अब्दुल्ला नेशनल कांफ्रेन्सी कार्यकर्ताओं के समर्थन-युक्त पाकिस्तानी कबायली आक्रमण का प्रतिकार करने और हिन्दुओं की रक्षा करने में जुटे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सरकारी दमन-कोपभाजन का शिकार बनाने की नीयत से उक्त शिकायती पत्र में ऐसा लिखा था कि “ दे (आर०एस०एस०) वेयर युजिंग दिज आर्म्स फॉर किलिंग टु मुस्लिम्स इन जम्मू” । किन्तु महाजन ने उन आरोपों को जब झुठा सिद्ध कर दिया और उनकी चतुराई के कारण नेशनल कांफ्रेन्स की ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ को रायफलों से लैश करने जैसी मनमानी में बाधायें उत्पन्न होने लगी, तब अब्दुल्ल और नेहरु दोनों ही महाजन को प्रधानमंत्री का पद छोड जाने के लिए विवश कर देने की ठान लिए । इस हेतु उनने महात्मा गांधी का भी सहयोग लिया और झुठी शिकायतों व निराधार आरोपों की ऐसी मुहिम चला दी कि महजान को अन्ततः स्वयं ही हट जाना पडा ।
उसके बाद के कारनामों का चिट्ठा लेफ्टिनेण्ट जनरल बी०एम०कॉल की पुस्तक ‘अनकही कहानी’ में दर्ज है , जिसके मुताबिक रियासत का एक प्रकार से निरंकुश प्रधान बन जाने और मार्ग का रोडा हट जाने पर शेख अब्दुल्ला ने अपने ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ के जिहादी युवकों के बीच वे तमाम रायफलें बंटवा दी । कॉल ने लिखा है “मुस्लिम युवकों के बीच रायफलें बांट दी गई थीं, जिसके बल पर वे लोग आतंक फैलाते व दंगा करते फिर रहे थे । बहुत सी हिन्दू-लडकियों-स्त्रियों को पकड कर उनका जबरिया निकाह किया जाने लगा और अन्य बहुत सारे अपराध अंजाम दिए जाने लगे । पीडितों द्वारा सुरक्षा की गुहार लगाए जाने पर सेना के कतिपय सिपाहियों ने जब धर-पकड शुरु की तब कॉर्पस के रायफलधारी बकरवाल युवकों से उनकी मुठभेड हो गई” । फिर शेख अब्दुल्ला की शिकायत पर उन सिपाहियों के विरुद्ध ही जांच समिति गठित कर दी गई , जिसका प्रधान लेफ्टिनेण्ट जनरल बी०एम०कॉल को बनाया गया था । पुस्तक- ‘अनकही कहानी’ के अनुसार- कॉल द्वारा की जाने वाली जांच से जब सच उजागर होने लगा तब शेख ने नेहरु को धमकी भरा पत्र लिख दिया कि “सेना के इन सिपाहियों एवं ऐसे अधिकारियों को अगर दण्डित नहीं किया जाएगा, तो कश्मीर की जनता पर इसकी भयानक प्रतिक्रिया होगी और तब कश्मीर का भारत के साथ रहना कठिन हो जाएगा” । पुस्तक में लेफ्टिनेण्ट कॉल ने लिखा है- “ मुझे नेहरु जी द्वारा दिल्ली बुला लिया गया । मिलते ही वे मुझे डांटने लगे । मैंने कहा- आप सच्ची बात नहीं जानते , तो वे बोल उठे- मेरे लिए इतना ही जानना पर्याप्त है कि तुम अब्दुल्ला को पसंद नहीं हो । अब्दुल्ला ने तुम्हें वहां से हटा देने के लिए मुझे कहा है , क्योंकि तुम्हारा वहां रहना उसके काम में बाधा डालता है । हॉलाकि मैं समझ रहा हूं कि तुम्हारा कुछ विशेष दोष नहीं है, फिर भी उसकी मांग को ठुकराना मेरे लिए कठिन था ।” अब आप समझ सकते हैं कि नेहरु-कांग्रेस की सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कायदे-कानून व राष्ट्र-हित की अनदेखी करते हुए और सैन्याधिकारियों को भी अपमानित-उपेक्षित करते हुए किस तरह से पृथकतावादी आतंक को साधन व सहयोग देने का काम किया हुआ है । सवाल है कि ‘कश्मीर वॉलिण्टियर कॉर्पस’ जब कोई सरकारी संगठन-बल नहीं था, तब उसे रायफलें आखिर क्यों मुहैय्या करवायी गईं और उन रायफलों फिर का क्या हुआ ? आज वे किनके पास हैं ?
• सितम्बर’२०१९