हिन्दू धर्म के वैश्विक पुनरुत्थान की सुगबुगाहट

हिन्दू धर्म के वैश्विक पुनरुत्थान की सुगबुगाहट

भारत से बाहर की दुनिया से आयीं दो खबरें ध्यान देने योग्य हैं । पहली खबर दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम-बहुल आबादी वाले सबसे बडे मुस्लिम देश- ‘इण्डोनेशिया’ से है । खबर है कि इण्डोनेशिया गणराज्य के संस्थापक-राष्ट्रपति सुकर्णों की बेटी सुकमावती सुकर्णोंपुत्री ने इस्लाम को छोड कर सनातन हिन्दू धर्म अपना लिया है । उन्होंने गत २६ अक्तुबर २०२१ को बाली-स्थित सुकर्णों केन्द्र में ‘सुधी वदानी’ कार्यक्रम के तहत समारोहपूर्वक हिन्दू धर्म की दीक्षा ले ली है । गौरतलब है कि सुकुमावती ने मजहब छोड कर धर्म अपनाने का यह निर्णय ७० वर्ष की उम्र में लिया । उनके इस निर्णय को पांचवीं इण्डोनेशियाई राष्ट्रपति मेगावती सुकर्णोंपुत्री सहित उनके तमाम रिश्तेदारों एवं इण्डोनेशिया के अनेक लोगों का भी समर्थन प्राप्त है और अब वे लोग भी इस्लाम छोडने की सोच रहे हैं । मालूम हो कि जावा सुमात्रा बाली आदि अनेक द्वीप-समूहों से युक्त इण्डोनेशिया दुनिया का एक ऐसा देश है जो राजनीतिक रुप से इस्लमिक गणराज्य है किन्तु सांस्कृतिक रुप से सनातन हिन्दुत्व-सम्पन्न है । इस्लाम के प्रादुर्भाव से पूर्व १५वीं शताब्दी तक वह सम्पूर्ण द्वीप समूह सनातनधर्मी था और २०वीं शताब्दी में आधुनिक गणराज्य बनने से पहले से ‘जावा’ नाम से जाना जाता था । सुकर्णोंपुत्री के अब हिन्दू हो जाने की इस घटना को वहां के लोग अपने उन पूर्वजों की एक विशेष भविष्यवाणी के घटित होने की शुरुआत के रुप में देख रहे हैं, जो तब अपने राज-पाट का इस्लामीकरण होने से दुखी हो कर कहे थे । इण्डोनेशिया के जनमानस में आज भी १५वीं शताब्दी के अपने राजा के मुसलमान बन जाने से दुःखी राज-पुरोहित सबदापालो की भविष्यवाणी के प्रति गहरी आस्था है व्याप्त है । सबदापालो इण्डोनेशिया के सबसे शक्तिशाली ‘मजापहित साम्राज्य’ के राजा पांचवें ब्रविजय के राज-पुरोहित हुआ करते थे । सन १४७८ ई० में ब्रविजय ने जब इस्लाम स्वीकार कर लिया और उसके साथ ही समस्त इण्डोनेशिया का इस्लामीकरण होने लगा तब सबदापालो ने भविष्यवाणी करने से पहले राजा को राज्य के पतन-पराभव का शाप दे दिया था जिसे चरितार्थ होते वहां के निवासियों ने देखा । इण्डोनेशियाई ऐतिहासिक ग्रंथ- ‘कल्पवृष’ में वर्णित आख्यान के अनुसार राज-पुरोहित ने भरे राज-दरबार में राजा ब्रविजय से कहा था- “ महाराज ! आप समझिए कि आप धर्म छोड कर मजहब (इस्लाम) अपनाते हैं तो आपकी संतानों को भारी नुकसान होगा... जावा-सुमात्रा के निवासी अपनी धरती छोडने को विवश हो जाएंगे...गोरे लोग देश पर कब्जा कर लेंगे और देशवासियों को अनेक प्राकृतिक आपदायें झेलनी पडेंगी । सबदापालो के शब्द बडे मार्मिक थे- मैं जावा की भूमि पर रानी और सभी डांगहयांग (देवी-देवताओं) का सेवक हूं ... मेरे पूर्वज- वेकू मनुमानस तथा सकुत्रम और बंबांग सकरी से ले कर पीढी दर पीढी उन जावानीस राजाओं के पुरोहित रहे हैं, जिनके धर्म में कभी कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ था...किन्तु आप ने उनके महान गौरव को धूमिल कर दिया , अतएव मैं अब यहां से जा रहा हूं और ५०० साल बाद जावा के चारों ओर जब धार्मिकता-आध्यात्मिकता बहाल हो जाएगी तब लौटुंगा । तब उस आध्यात्मिकता-धार्मिकता को अपनाने से जो मना करेंगे वे राक्षसों का भोजन बन कर कम हो जाएंगे...मैं तब तक संतुष्ट नहीं होउंगा जब तक जावा में सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा नहीं होगी ।”
आपको यह जान कर अचरज होगा कि ठीक पांच सौ वर्ष बाद सम्पूर्ण इण्डोनेशिया में मंदिरों के निर्माण का एक अभियान से चल पडा जिसके परिणामस्वरुप सन १९७८ के बाद वह मंदिरों का देश कहा जाने लगा ।






हिंदू पुजारी सबदापालों की भविष्यवाणियाँ
सबदापालन इंडोनेशिया के सबसे शक्तिशाली मजापहित साम्राज्य के राजा ब्रविजय पाँचवीं के दरबार में एक सम्मानीय पुजारी थे। जब देश का इस्लामीकरण होना शुरू हुआ और 1478 में ब्रविजय पाँचवीं इस्लाम में परिवर्तित हो गए, तब सबदापालन ने राजा को शाप दिया था। उन्होंने देश में प्राकृतिक आपदा आने और राजनीतिक भ्रष्टाचार का शाप देते हुए 500 साल बाद यहाँ लौटने की कसम खाई थी। साथ ही पुजारी ने इस्लाम के चंगुल से इस देश को मुक्त करने और फिर से यहाँ हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ेगी, ऐसी भविष्यवाणी की थी।
कल्पवृष के अनुसार,
उन्होंने भविष्यवाणी की थी,

राजा जयभय की भविष्यवाणियाँ
जयभय 1135 से 1157 ईस्वी तक किंगडम ऑफ केदिरी के शासक थे और पूर्वी जावा साम्राज्य में अपार समृद्धि लाए। उस समय एक भविष्यवाणी करने वाले हिंदू राजा जयभय को ‘रतु आदिल’ यानी सिर्फ राजा माना जाता था। उन्होंने उस समय द्वीप पर सामाजिक व्यवस्था बनाए रखी, जब वह संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे। उनकी भविष्यवाणियाँ आधुनिक इंडोनेशिया में आज भी सांस्कृतिक महत्व रखती हैं। जयभया ने हिंदू साहित्य का भी समर्थन किया और कवियों को एम्पू पनुलुह (Empu Panuluh) और एम्पू सेदाह (Empu Sedah) के रूप में संरक्षण दिया।
उनके शासनकाल के दौरान जावा में लोगों का मानना था कि हिंदू शासक भगवान विष्णु का पुनर्जन्म था। जयभय ने उन दावों को भी वैध बनाने की कोशिश की थी कि वह हिंदू देवताओं में से एक के वंशज हैं। विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, हिंदू राजा को भगवान ब्रह्मा के परपोते के रूप में माना गया था। जयभय ने ‘भविष्यवाणी श्लोक’ लिखा था, जिसे बाद में ‘सेराट जयभय’ के नाम से जाना जाने लगा। इसे मौखिक पाठों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया गया और सबसे पुरानी लिखित प्रति का 1835 में अनुवाद किया गया था।
उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों में से एक है कि लंबे समय तक गोरे लोगों द्वारा जावा के लोगों का उपनिवेशीकरण होगा। दिलचस्प बात यह है कि उनकी मृत्यु के लगभग 400 साल बाद 1595 में जावा पर डच ने कब्जा कर लिया था। जयभय ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि ‘पीले रंग वाले पुरुष’ गोरे लोगों से इस द्वीप को मुक्त करा लेंगे। यह सच निकला जब जापानियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंडोनेशिया पर आक्रमण किया और डच का साम्राज्य खत्म कर दिया। हिंदू शासक ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि पीले लोग बेहद कम कम समय तक उन पर शासन करेंगे। हालाँकि, उनकी यह भविष्यवाणी झूठी निकली। इसी तरह उनकी भविष्यवाणी कि वह भगवान विष्णु का पुनर्जन्म हैं, वो भी गलत थी।



अमेरिका के विभिन्न राज्यों के राज्यपालों, कांग्रेस सदस्यों और सीनेटरों के कार्यालय ने इस बाबत घोषणा कर दी है। घोषणा में कहा गया है कि अक्टूबर महीने को हिंदू विरासत महीना के तौर पर अमेरिका में सेलिब्रेट किया जाएगा। अमेरिकी राज्यों की तरफ से जारी घोषणाओं में उल्लेख किया गया है कि, "हिंदू समुदाय ने विश्वास के साथ अमेरिकी समाज की सेवा की है और अमेरिकी समाज में हिंदू समाज को लेकर काफी ज्यादा विश्वास है और हिंदू समुदाय को अमेरिका में आशा की किरण के तौर पर देखा जाता है, हिंदू समाज ने अमेरिका के साथ अपने विश्वासों को साझा किया है और सेवा के माध्यम से अपने समुदायों को बेहतर बनाया है''। राज्य सरकारों की तरफ से घोषणा में ये भी कहा गया है कि, दुनिया भर में हजारों अनुयायियों के जीवन में सुधार और प्रेरणा हिंदू धर्म ने लाया है लिहाजा, हिंदू धर्म ने अपने अद्वितीय इतिहास और विरासत के माध्यम से हमारे राज्य और राष्ट्र में बहुत योगदान दिया है।''
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की करीब-करीब सभी राज्य सरकारों ने अक्टूबर महीने को 'हिंदू विरासत महीना' घोषित कर दिया है और अब सिर्फ केन्द्रीय अमेरिकी सरकार के द्वारा घोषणा किया जाना बाकी है। अमेरिका में रह रहे हिंदू समाज ने अमेरिकी सरकार से अपील की है, वो अक्टूबर महीने को 'हिंदू विरासत महीना' घोषित कर दे। अमेरिकी हिंदू समाज के लोगों ने कहा कि, वे चाहते हैं कि राष्ट्रपति जो बाइडेन एक कार्यकारी आदेश द्वारा औपचारिक रूप से अक्टूबर के महीने को हिंदू विरासत माह के रूप में घोषित करें।
अमेरिका स्थिति एक हिंदू संगठन के मुताबिक, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से एक अपील करते हुए कहा गया है कि अमेरिका में रहने वाले करीब 30 लाख शक्तिशाली अमेरिकन-हिंदू, अमेरिकी समुदाय की हितों और आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए और भारत के साथ अच्छे ताल्लुकात को और मजबूत करते हुए, जो मूल रूप से हिंदुस्तानी हैं, हम आपसे (राष्ट्रपति) अनुरोध करते हैं कि औपचारिक रूप से एक कार्यकारी आदेश देते हुए अक्टूबर महीने को 'हिंदू विरासत माह' के तौर पर मनाने का आदेश दें। विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका (वीएचपीए) के अध्यक्ष अजय शाह ने कहा कि, यह जानकर आश्चर्य होता है कि लोग सनातन वैदिक धर्म के बारे में कितना कम जानते हैं। "यह हमारे दर्शन और फिलॉसफी पर दुनिया को शिक्षित करने का अच्छा समय है।
विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका के अध्यक्ष अजय शाह ने कहा कि, उन्होंने जुलाई के मध्य में अन्य हिंदू समूहों के साथ मिलकर अमेरिका की राज्य सरकार के प्रमुखों को 20 से ज्यादा पत्र भेजे थे, जिसमें अक्टूबर को हिंदू विरासत माह के रूप में घोषित करने का अनुरोध किया गया था। 'हिंदू विरासत माह' उत्सव उस विविधता को प्रदर्शित करेगा जो हिंदू सभ्यता के लिए इतनी मौलिक है। वहीं, विश्व हिंदू परिषद अमेरिका के उपाध्यक्ष संजय कौल, जो इस कार्यक्रम के आयोजकों में से एक हैं, उन्होंने कहा कि, ''हिंदू विरासत और संस्कृति हजारों साल पुरानी है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम इसे दुनिया के साथ साझा करें और इसे अपनी अगली पीढ़ियों को दें ताकि वे अपनी जड़ों पर गर्व कर सकें''।
आयोजकों के मुताबिक, अक्टूबर महीने में होने वाले समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम, फैशन शो, वेबिनार, बहु-दिवसीय सम्मेलन, वॉकथॉन और कई अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। ये आयोजन कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया जाएगा, जिसमें व्यक्तिगत और आभासी दोनों तरह से कार्यक्रमों का आयोजन होगा। वर्ल्ड हिंदू काउंसिल ऑफ अमेरिका के उपाध्यक्ष डॉ जय बंसल ने कहा कि, हिंदू समुदाय स्वभाव से ही विनम्र है। हालांकि, अमेरिका में रहने वाले हिंदुओं की दूसरी और तीसरी पीढ़ी धीरे-धीरे अमेरिकी समाज में पूरी तरह से मिल गई है और अपनी अलग पहचान बनाने में लगी है, लिहाजा अब समय आ गया है कि हिंदू समुदाय अपने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बारे में बात करे और हर पहलू में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।
एक महीने तक चलने वाले इस उत्सव को लेकर अमेरिकन हिंदू छात्र परिषद के अध्यक्ष अर्णव केजरीवाल ने कहा कि, ''अमेरिकी अनुभव हमारी प्रत्येक अनूठी संस्कृतियों, परंपराओं और इतिहास को साझा करने और सीखने के बारे में है।'' उन्होंने कहा कि, ''हमें एक समर्पित इतिहास और जागरूकता महीने के दौरान इतने सारे समुदायों को अपनी अनूठी कहानियों को एक साथ जानने और उसे विस्तार देने का मौका मिलेगा और मैं हिंदू अमेरिकी समुदाय से निकली अलग अलग कहानियों को जानने और समझने के लिए काफी उत्साहित हूं''। वहीं, विश्व हिंदू परिषद के महासचिव अमिताभ वीडब्ल्यू मित्तल ने कहा कि, हिंदू दर्शन क्या है, यह जानने के लिए कोई एक किताब नहीं है, क्योंकि यह लगातार विकसित हो रहा है और मानव सभ्यता में इसका योगदान अतुलनीय है।
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