हिमालय की आध्यात्मिक दवा से बह रही बदलाव की हवा
व्यक्ति, परिवार , समाज व देश-दुनिया में व्याप्त तमाम अवांछनीयताओं के उन्मूलनार्थ नैतिक-वैचारिक क्रांति-युक्त युग निर्माण योजना का सूत्रपात करते हुए युग-परिवर्तन का विश्वव्यापी आध्यात्मिक सरंजाम खडा कर अपने तप के ताप से समस्त वातावरण को तपाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी व आधुनिक ऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य के कृत्य व कथ्य फलित-घटित होने लगे हैं । महामना मदन मोहन मालवीय से यज्ञोपवित धारण कर ‘गायत्री-साधना’ के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में ‘मत्त’ हुए श्रीराम शर्मा ने अपने अलौकिक मार्गदर्शक से प्राप्त निर्देश और महात्मा गांधी से परामर्श के पश्चचात राजनीति से विलग हो कर भारत की सोयी हुई आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं जन-मानस के परिष्करण हेतु सत्प्रवॄत्ति-संवर्द्धन व दुष्प्रवृत्ति-उन्मूलन के निमित्त ‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा; हम सुधरेंगे युग सुधरेगा’ मंत्र के साथ जिस विचार-क्रांति अभियान व युग निर्माण आन्दोलन का सूत्रपात किया था सो विश्वव्यापी विस्तार के साथ फलित होता दीख रहा है । व्यष्टि-समष्टि-परमेष्टि से लेकर परिवार-समाज-राष्ट्र तक जीवन के हर अंग-प्रत्यंग में कल्याणकारी परिवर्तन लाने और हर विषय की हर समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हुए तत्सम्बन्धी तीन हजार से अधिक पुस्तकें लिख देश दुनिया भर में तीन हजार से भी अधिक शक्तिपीठों व चेतना केन्द्रों की स्थापना के साथ लाखों परिवर्तनकारी सेनानियों की फौज कायम कर उनके मार्गदर्शन-प्रशिक्षण के निमित्त हरिद्वार की देवभूमि पर ‘शांति-कुंज’ व ‘ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान’ के रूप में युग-परिवर्तन का विशाल सरंजाम खडा कर अध्यात्म विज्ञान के सूक्ष्म व कारण स्तर से वातावरण को तपाने-झकझोरने वाले ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य ने अनेक बार अपनी अनेक पुस्तकों में लिखा है- “ युग परिवर्तन हो कर रहेगा, यह महाकाल की योजना है , इसे कोई टाल नहीं सकता , २१वीं सदी से उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी और वर्ष २०११ से परिवर्तन स्पष्ट दिखाई पडने लगेगा । भारत इस विश्वव्यापी परिवर्तनकारी योजना के क्रियान्वयन का ध्रूव-केन्द्र होगा ” ।
क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी महर्षि अरविन्द ने भी भारत की भवितव्यता के सम्बन्ध में रामकृष्ण परमहंस के जन्म से १७५ साल की अवधि को ‘संधि-काल’ बताते हुए ऐसा ही लिखा है कि उस काल-खण्ड के बीतते ही भारत की सोयी हुई राष्ट्रीयता जाग जाएगी, भारत के भाग्य का सूर्योदय होगा और आगामी कुछ ही दशकों में भारत अपनी समस्त आध्यात्मिक समग्रता के साथ सम्पूर्ण दुनिया पर छा जाएगा , विभाजन की रेखायें मिट जाएंगी और यह देश फिर से अखण्ड हो जाएगा । इससे पहले स्वामी विवेकानन्द ने भी ऐसा ही कहा था- भारत फिर से खडा होगा और अंततः सम्पूर्ण विश्व-वसुधा का नेतृत्व करेगा ।
इन तीनों योगियों-ऋषियों-संयासियों के कथोपकथन में एक बात सामान्य है और वह है- भारत की आध्यात्मिक चेतना के पुनर्जागरण से होगा परिवर्तन । जन-मन-मानस-मस्तिष्क के सृजन-परिष्करण में आध्यात्मिक चेतना की भूमिका ‘बीज’ के समान है । विवेकानन्द ने स्पष्ट कहा भी था कि भारत में आध्यात्मिक जागरण के बिना कोई भी आन्दोलन कतई सम्भव नहीं है । यही कारण था कि अपने भाषणों-विचारों से दुनिया भर में धूम मचा देने वाले विवेकानन्द राजनीतिक गतिविधियों में कतई शामिल नहीं हुए , बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का ही संचार करते रहे, जिसके परिणामस्वरूप कई राजनीतिक प्रतिभाओं का जन्म हुआ । सुभाष चन्द्र बोस विवेकानन्द के विचारों की ही ऊपज थे । महर्षि दयानन्द का धार्मिक-आध्यात्मिक अभियान- ‘आर्य समाज’ नहीं होता तो अंग्रेज-विरोधी राष्ट्रीयता-युक्त स्वतंत्रता आन्दोलन खडा नहीं होता । कांग्रेस के ‘लाल-बाल-पाल’ सहित तमाम राष्ट्रवादी नेता आर्यसमाजी ही थे । स्वतंत्रता आन्दोलन को जन-आन्दोलन और कांग्रेस को जन-संगठन बनाने के लिए मोहनदास करमचन्द गांधी को भी महात्मा बनना पडा तथा भाषण के बजाय प्रवचन का सहारा लेना पडा और वर्धा, पवनार साबरमति आदि विभिन्न स्थानों पर आश्रम स्थापित कर ऋषि-तुल्य जीवन जीने का आदर्श प्रस्तुत करना पडा । उसी साबरमति आश्रम में सन १९३५ में महात्मा गांधी से मिले थे श्रीराम शर्मा, जो उन दिनों आगरा जनपद में कांग्रेस के सक्रिय व क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे । मदनमोहन मालवीय के निर्देशानुसार गायत्री साधना करते थे । साधना-उपासना के दौरान उन्हें एक अलौकिक मार्गदर्शक स्वामी सर्वेश्वरानन्द से प्रायः मर्गदर्शन प्राप्त होते रहता था । महात्मा गांधी से मंत्रणा के पश्चात वे राजनीति से विमुख हो अपने अलौकिक गुरू के मार्गदर्शन में भारत की आध्यात्मिक चेतना के जागरण हेतु धर्म-अध्यात्म में व्याप्त रुढियों-पाखण्डों के निराकरण और समाज में व्याप्त दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन व सत्प्रवृत्तियों के सवंर्द्धन हेतु गायत्री साधना के कठोर तप करने लगे । गाय के गोबर में से उच्छिष्ट जौ की रोटी और गोदुग्ध की छाछ का सेवन कर चौबीस वर्षों तक तप करते हुए गायत्री के चौबीस महापुरश्चरण करते हुए तीन बार हिमालय की दुर्गम यात्रा किए । हिमालय में विराजमान प्राचीन ऋषियों की संसद ने उन्हें महाकाल की परिवर्तनकारी योजना का संचालन-सूत्र सौंपा । प्राचीन भारत की ऋषि-परम्परा के पुनर्प्रतिष्ठापन और धर्म-अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रतिपादन की ऋषि-प्रणीत योजना के अनुसार उन्होंने ‘अखण्ड ज्योति’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन और समस्त भारतीय वांग्मय के हिन्दी-अंग्रेजी रुपान्तरण एवं अन्य विविध विषयक क्रांतिधर्मी साहित्य सृजन का काम करते हुए मथुरा में गायत्री तपोभूमि की स्थापना कर हरिद्वार में ब्रह्मवर्चस रिसर्च इंस्टिच्युट के साथ ‘शांति-कुंज’ नामक ऋषि-अरण्यक स्थापित कर समाज में व्याप्त समस्त अवांछ्नीयताओं को उखाड फेंकने की चुनौती दे डाली । समग्र परिवर्तन के निमित्त ‘युग निर्माण योजना’ प्रस्तुत करते हुए अनीति अन्याय अनाचार आडम्बर पाखण्ड अन्ध विश्वास अस्पृश्यता जात-पात वंशवाद नेग-दहेज मृतक-भोज अपव्यय अपसंस्कृति फैशनपरस्ती असमानता विषमता स्वार्थपरता ईश्वरीय अनास्था-अविश्वास अनियंत्रित भोग-उपभोग दुराचरण प्रदूषण तथा जाति-लिंग-भाषा-प्रांत विषयक भेदभाव के विरूद्ध जन जागरण और तत्सम्बन्धी सत्प्रवृत्तियों के संवर्द्धन हेतु प्रशिक्षित-संकल्पित युग-शिल्पी साधकों के समय श्रम पुरुषार्थ का योजनाबद्ध सतत नियोजन शुरू किया जो आज भी जारी है । इस बीच देश की आजादी के पश्चात उन्हें शासन-सत्ता में आकर्षक पद की पेशकस की गई तो उसे उन्होंने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया , स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन लेने से भी मना कर दिया और स्वयं राजनीति में भाग नहीं लेने व जन-जागरण से राजनीति की उल्टी दिशा को भी उलट कर सीधा करने के अपने कार्यक्रम की महत्ता जताते रहे । सन १९९५ की गायत्री जयन्ती को उनके पूर्व घोषित महाप्रयाण के बाद से भी उनका युग निर्माण आन्दोलन प्रखर राष्ट्र चिन्तक चिकित्सक मनोवैज्ञानिक डा० प्रणव पण्ड्या के नेतृत्व में वामनावतार की तरह समस्त विश्व-वसुधा को अपनी परिधि में लेता हुआ विस्तृत होता जा रहा है । धर्मतंत्र से लोकशिक्षण-विषयक विविध परिवर्तनकारी कार्यक्रमों के आयोजन और तत्सम्बन्धी विचार-साहित्य-सम्प्रेषण से समाज के मुर्द्धन्यों-सज्जनों को अनीति-अनौचित्य के विरूद्ध जागृत-संगठित करने तथा अवांछित चाल-चलन बदलने व सन्मार्गी सदाचरण अपनाने और उल्टे को उलट कर सीधा करने के बहुविध प्रयत्नों-प्रकल्पों को विस्तार देने वाले डा० पण्ड्या को पिछले वर्ष राष्ट्रपति ने राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था । किन्तु, युग-ऋषि के आदर्शों-मान्यताओं के अनुरूप ही उन्होंने भी यह राजनीतिक पद स्वीकार नहीं किया और राजनीति की दिशा-धारा बदलने वाली युग निर्माण योजना के क्रियान्वयन को ही महत्व दिया ।
यह सब बताने का मेरा अभिप्राय सिर्फ और सिर्फ यह है कि देश दुनिया में परिवर्तन की एक लहर सी जो चल रही है उसके पीछे एक अदृश्य शक्ति-नियति की आध्यात्मिक योजना सक्रिय है । उपरोक्त तीनों मनीषियों के अनुसार भारत को चुंकि भावी विश्व का नेतृत्व करना है इसलिए परिवर्तन की शुरुआत भारत से ही हो रही है और राजनीति चूंकि समस्त समस्याओं की जड है इस कारण पहला प्रहार राजनीति पर ही हो रहा है ; ठीक उसी समय से जब १७५ साल का संधिकाल २०११ में समाप्त हुआ । प्रचण्ड बहुमत से एक अप्रत्याशित व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी का सत्तासीन होना और राजनीतिक अनीति-अनाचारपूर्ण धर्मनिरपेक्षता के थोथे पाखण्ड का धराशायी होना तथा उसके बाद से एक पर एक असम्भव सी प्रतीत होने वाली घटनाओं का घटित होना ; यथा- भारत की योग-विद्या को वैश्विक मान्यता मिलना, विश्व राजनीति में भारत की पैठ बढना, दुनिया भर में इस्लाम-विरोधी वातावरण कायम होना, अमेरिका में ट्रम्प का राष्ट्रपति निर्वाचित होना , पाकिस्तान में बलुचिस्तान का आन्दोलन भडकना और अब अपने देश में तमाम धर्मनिरपेक्षतावादी दलों के भाजपा-विरोधी गठबन्धन के बावजूद भाजपा का विजय-रथ अवरूद्ध न हो पाना तथा वामपंथियों का अस्तित्व मिटते जाना आदि ऐसे संकेत हैं , जो यह बताते हैं कि नियति का परिवर्तन-चक्र अपने पूर्व निर्धारित समय से सचमुच शुरू हो चुका है । विविध विषयक वैचारिक-राजनीतिक प्रदूषण से पीडित समाज व देश-दुनिया के कल्याणारथ हिमालय-स्थित ऋषि-सत्ता के द्वारा ईजाद की गई एक अदृश्य प्रकार की आध्यात्मिक दवा के परिणाम से इन दिनों बदलाव की हवा सी बह रही है । जो लोग और दल इस परिवर्तनकारी हवा के अनुरूप अपना चाल-चलन नहीं बदलेंगे वे मिट जाएंगे ।
• मार्च’ २०१७
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