कांग्रेस का १२८ साल पुरानी होने का दावा भी खारिज


कांग्रेस का १२८ साल पुरानी होने का दावा भी खारिज

राजनीति और राजनीतिक दलों की चर्चा के दौरान अपने देश की केन्द्रीय सत्ता पर आरुढ कांग्रेस का नाम आते ही आम तौर पर हमारी आंखों के सामने लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल, मदन मोहन मालवीय, सरदार बल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद और के० एम० मुंशी सरिखे विद्वानों-अधिवक्ताओं-नेताओं के नेतृत्व का गौरव प्राप्त कर चुकी स्वतंत्रता-संघर्ष् कालीन् कांग्रेस की अहिंसक छवि मचलने लगती है / उस कांग्रेस की अहिंसक छवि, जिसे तब के एक महात्मा ने “हिन्द-स्वराज” की अपनी अवधारणा के साथ सत्य-अहिंसा-सेवा-संयम-स्वदेशी की पंचाग्नि में खुद ही तप कर अपने उस तप के ताप से गांव-गांव में कर दिया था विस्तृत / किन्तु वर्तमान सत्तारुढ कांग्रेस, वह कांग्रेस नहीं है, जो कभी चरखा के खादी उत्पादों और रामधुन के पदों से हुआ करती थी परिभाषित / यह वह कांग्रेस भी नहीं है, जो ब्रिटिशकालीन भारत की कोटि-कोटि जनता के एकमात्र प्रतिनिधि-संगठन के रुप में थी नामित-गौरवान्वित / यह वह कांग्रेस भी नहीं है, जिसे भारत की आजादी के तुरंत बाद महात्माजी ने भंग कर ‘लोकसेवक संघ’ बना डालने के बावत की थी सिफारिश / बल्कि, यह वह कांग्रेस है जो महात्माजी की सिफारिश के अनुसार भंग नहीं किये जाने के बावजूद एक खास कांग्रेसी नेता व उनके सिपहसालारों-चमचाओं के हाथों आतंकित-अपहृत-मृत होती हुई कायान्तरित होकर राजसत्ता से हो गई ग्रसित और उसके अपहर्ता-नेता इसे वही स्वतन्त्रता-संघर्षकालीन ऐतिहासिक कांग्रेस बता-बता कर समूचे देश को कर रहे हैं भ्रमित / एक अंग्रेज हाकीम ह्यूम के हाथों स्थापित व कभी विदेशी-अंग्रेजी शासन की ही हस्तक रही यह वह कांग्रेस है, जो आंग्रेजों की कुटिल दुरभिसंधि के परिणामस्वरुप स्वतन्त्रता-संघर्षकाल में जिन्ना और नेहरु के हाथों आतंकित होकर स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद प्रधानमंत्री नेहरु के हाथों हो गई अपहृत एवं ७० के दशक में इन्दिरा गांधी के हाथों मृत होकर कायान्तरित हो राजसत्ता से हो गई ग्रसित /
किन्तु इधर हाल के कुछ वर्षों से विशेष कर १६वीं लोकसभा चुनाव के मद्देनजर २०१० के आरम्भ से ही देश भर में एक बहुत बडा झूठ प्रचारित किया-कराया जाता रहा कि यह वही कांग्रेस है जो सन १८८५ में हुई थी स्थापित / इसी आधार पर वर्ष २०१० में इसकी १२५वीं जयन्ती भी मनाई गई देश भर में धूमधाम से / बीतते समय के साथ एक-एक साल की बढत के अनुसार पूरे चुनाव-प्रचार के दौरान यह १२८ वर्ष पुरानी बताई जाती रही / सम्भव है आगे भी ऐसा ही बताया जाता रहेगा / किन्तु यह ऐसा सरासर झूठ और मिथ्या दुष्प्रचार है जिसकी हवा निकल चुकी है / जबकि सच तो यह है कि इस वर्तमान कांग्रेस की उम्र है मात्र ४४ साल /
मालूम हो कि आजादी-प्राप्ति के बाद महात्माजी ने जब यह लिखित निर्देश दे डाला कि कांग्रेस देश को स्वतन्त्रता दिलाने का लक्ष्य हासिल कर चुकी है इसलिये अब इसे देश की राजसत्ता पर आसीन होने अथवा होते रहने की राजनीति करने के लिये राजनीतिक संगठन के रुप में बनाये रखने कोई औचित्य नहीं है , क्योंकि देश में सत्ता से दूर हरिजनोद्धार और ग्रामोत्थान के बडे-बडे काम करने को पडे हैं , इसलिये कांग्रेस को भंग कर उसे “हरिजन सेवक संघ” बना दिया जाये ; तब नेहरु ने सत्ता हासिल करने व भविष्य में भी करते रहने की उस सीढी का काम तमाम होते देख उनके उस निर्देश को मानने से इंकार कर दिया इंकार. उन्होंने महसूस किया कि महात्मा जी के तप-त्याग से चमत्कृत कांग्रेस ही एक ऐसा चुम्बकीय उपकरण है , जिसके सम्मोहन से जनता को सम्मोहित कर महात्माजी के नहीं रहने पर आगे भी राजसत्ता हासिल करते रहना आसान हो जायेगा, इसलिये उन्होंने उसे भंग करने से तो कर ही दिया इंकार , उसे हथिया लेने की भी कोशिश करने लगे लगातार. महात्माजी जब परलोक सिधार गये , तब कांग्रेस के सिर पर चढ कर बोलने लगा नेहरु का तत्सम्बन्धी स्वेच्छाचार / उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन प्रधान् पुरुषोतम दास ट्ण्डन के विरुद्ध छेड दिया अभियान और सन १९५० बीतते-बीतते येन-केन-प्रकारेन टण्डन के हाथों से छीन कर अपने हाथों में ले ली कांग्रेस की कमान. ( “ सफेद-आतंक ह्यूम से माईनो तक ” नामक मेरी नयी पुस्तक में इस प्रकरण का विस्तार से है खुलासा ) इस तरह से नेहरु ने महात्मावादी कांग्रेस का कर लिया अपहरण और तब फिर उस संगठन मे महात्मावादी कांग्रेसियों को दरकिनार कर अपने चापलूसों की फौज से उस पर कायम कर लिया अपना एकाधिकार. इतना ही नहीं उन्होंने अपने जीते-जी अपनी बेटी इन्दिरा को ही बना दिया उस अपहृत कांग्रेस का सूत्रधार.
फिर नेहरुजी के मरणोपरांत उनकी बेटी इन्दिरा तो पूरी कांग्रेस पर करने लगी एकदम मनमाना मुगलिया शासन. तब वंशवाद के उस आघात से १९६९ आते-आते बचे-खुचे लगभग सारे महात्मावादी कांग्रेसी, यथा- एस० निजलिंगप्पा, मोरारजी देसाई व एस० के० पाटिल आदि ऐसे हो गये मर्माहत - घायल कि वह अपहृत कांग्रेस भी हो गयी मरणासन्न. तब इन्दिराजी ने उस घायल-मरणासन्न कांग्रेस को छोड, अपने तमाम नेहरुवादी कांग्रेसियों-चापलूसों को साथ ले पृथक हो कर कायम कर लीं अपनी नयी कांग्रेस - विल्कुल अपने नाम से – “इन्दिरा कांग्रेस” अर्थात- कांग्रेस-इ ( congress I ) और मोरारजी भाई आदि तमाम महात्मावादी कांग्रेसियों को उस मरणासन्न अपहृत कांग्रेस के साथ छोड दी. फिर मीडिया के सहयोग और अपनी सरकार के दुरुपयोग से इन्दिराजी यह प्रचारित कराती रहीं कि “इन्दिरा-कांग्रेस” ही है असली कांग्रेस , जबकि वास्तव में मोरारजी भाइयोंकी जो थी असली कांग्रेस सो तो नेहरुजी के हाथों अपहृत होने के बाद इन्दिराजी के प्रहार से घायल होकर चारो खने चित होकर पडी थी मरणासन्न. वह घायल कांग्रेस लगभग एक दशक तक मृत्यु-शय्या पर पडी-पडी भुगतती रही नेहरु-इन्दिरा के हाथों हुए अपहरण-दमन की मार जो १९८० में गठित इन्दिरा-विरोधी जनता पार्टी में तिरोहित-विसर्जित हो अन्ततः छोड ही दी संसार / तब से ही इस दुनिया में कहीं भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नामक राजनीतिक संगठन का नहीं है कोई भी वजूद / बावजूद इसके, १९६९ में गठित कायान्तरित इस “इन्दिरा-कांग्रेस” को ही “वही कांग्रेस” बता-बता के उसके जीवित बचे होने की भ्रांति फैला कर देश भर के नेहरुवादी बुद्धिजीवी और इन्दिरा गांधी सहित तमाम कांग्रेसी उस राष्ट्रीय कांग्रेस के अपहरण व कतल का सबूत मिटाते रहे हैं / ऐसे में इन नेताओं पर तो ठगी-जालसाजी का आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिये / क्योंकि, एक परिवार विशेष के राजनीतिक व्यवसाय का प्रतिष्ठान बनी इस ४४ वर्षीया कांग्रेस को देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों के तप-त्याग से निर्मित व गौरवपूर्ण ऐतिहासिक् विरासतों से युक्त बताकर निज स्वार्थवश झूठ के सहारे जन-साधारण को ठगना व भ्रमित करना किसी अपराध से कम नहीं है / देश की किसी संस्थागत अदालत भले ही इस मामले पर कोई सुनवाई न हो रही हो किन्तु अभी-अभी सम्पन्न हुए इस चुनाव के दौरान जनता की अदालत में फैसला कर रहे मतदाताओं ने इस सच्चाई को भी जन-समझ कर कांग्रेसियों के इस दावे को भी सिरे से खारिज कर दिया /
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